हेराल्ड डी. लॉसवेल अमेरिका के प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री हैं, लेकिन इनकी दिलचस्पी संचार शोध के क्षेत्र में थी। इन्होंने ने सन् 1948 में संचार का एक शाब्दिक फार्मूला प्रस्तुत किया, जिसे दुनिया का पहला व्यवस्थित प्रारूप कहा जाता है। यह फार्मूला प्रश्न के रूप में था। लॉसवेल के अनुसार- संचार की किसी प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे बेहतर तरीका निम्न पांच प्रश्नों के उत्तर को तलाश करना। यथा-
- कौन (who)
- क्या कहा (says what)
- किस माध्यम से (in which channel),
- किससे (To whom) और
- किस प्रभाव से (with what effect)।
इसे निम्नलिखित रेखाचित्र के माध्यम से समझा जा सकता है :-
इन पांच प्रश्नों के उत्तर से जहां संचार प्रक्रिया को आसानी से समझे में सहुलित मिलती है, वहीं संचार शोध के पांच क्षेत्र भी विकसित होते हैं, जो निम्नांकित हैं :-
1. Who Communicator
Analysis संचारकर्ता विश्लेषण
2. Saya what Massige Analysia अंतर्वस्तु विश्लेषण
3. In Which channel Mediam
Analysis माध्यम विश्लेषण
4. To whom Audience Analysis श्रोता विश्लेषण
5.with what effect Impact Analysis प्रभाव विश्लेषण
हेराल्ड डी. लॉसवेल ने शीत युद्ध के दौरान अमेरिका में प्रचार की प्रकृति, तरीका और प्रचारकों की भूमिका विषय पर अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि आम जनता के विचारों, व्यवहारों व क्रिया-कलापों को परिवर्तित या प्रभावित करने में संचार माध्यम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसी आधार पर लॉसवेल ने अरस्तु के संचार प्रारूप के दोषों को दूर कर अपना शाब्दिक संचार फार्मूला प्रस्तुत किया, जिसमें अवसर के स्थान पर संचार माध्यम का उल्लेेख किया। लॉसवेल ने अपने संचार प्रारूप का निर्माण बहुवादी समाज को केंद्र में रखकर किया, जहां भारी संख्या में संचार माध्यम और विविध प्रकार के श्रोता मौजूद थे। हेराल्ड डी. लॉसवेल ने अपने संचार प्रारूप में फीडबैक को प्रभाव के रूप में बताया है तथा संचार प्रक्रिया के सभी तत्त्वों को सम्मलित किया है।
लॉसवेल फार्मूले की सीमाएं : स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी, शिकागो के सदस्य रह चुके हेराल्ड डी.लॉसवेल का फार्मूले को संचार प्रक्रिया के अध्ययन की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय लोकप्रियता मिली है। इसके बावजूद संचार विशेषज्ञों इसे निम्नलिखित सीमा तक ही प्रभावी बताया है :-
- लॉसवेल का फार्मूला एक रेखीय संचार प्रक्रिया पर आधारित है, जिसके कारण सीधी रेखा में कार्य करता है।
- इसमें फीडबैक को स्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं गया है।
- संचार की परिस्थिति का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
- संचार को जिन पांच भागों में विभाजित किया गया है, वे सभी आपस में अंत:सम्बन्धित हंै।
- संचार के दौरान उत्पन्न होने वाले व्यवधान को नजर अंदाज किया गया है।
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(यह चौथी सत्ता ब्लाग के मॉडरेट द्वारा लिखित पुस्तक- 'भारत में जनसंचार एवं पत्रकारिता' का संपादित अंश है। उक्त पुस्तक को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तक निर्माण योजना के अंतर्गत हरियाणा ग्रंथ अकादमी, पंचकूला ने प्रकाशित किया है। पुस्तक के लिए 0172-2566521 पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी तथा 09418130967 पर लेखक से सम्पर्क किया जा सकता है।)
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