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रविवार

इंटरनेट : इतिहास और विकास (INTERNET: History and development)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 10, 2025    

इंटरनेट सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि एक प्लेटफार्म है। इसका पूरा नाम ‘इंटरनेशनल नेटवर्क’ है। इंटरनेट के माध्यम से अलग-अलग स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों को आपस में जोडकर सूचना एवं जानकारी सम्प्रेषित करने की विशेष प्रणाली विकसित की गई है। यह नेटवर्को का नेटवर्क है, जिसके माध्यम से समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं व किताबों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर न केवल प्रकाशित किया जा सकता है, बल्कि पढ़ा भी जा सकता है, जो कहीं भुगतान के बदले तो कहीं बिलकुल मुफ्त उपलब्ध हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक ‘ग्लोबल नेटवर्क’ है, जिसमें हजारों छोटे नेटवर्क परस्पर सम्पर्क के लिए प्रोटोकॉल भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रोटोकॉल नियमों का संकलन वह भाषा है, जिसे नेटवर्क में परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट को ‘सूचना राजपथ’ व ‘अंर्तजाल’ कहा जाता हैं। 

इंटरनेट से सूचनाओं का प्रवाह विभिन्न नेटवर्को के जरिए अंतरिक्ष में स्थित एक काल्पनिक पथ से होता है, जिसे ‘साइबर स्पेस’ कहा जाता है। इस आधार पर इंटरनेट के अध्ययन को ‘साइबरनेटिक्स’ विधा के अंतर्गत् रखा गया है। ‘साइबरनेटिक्स’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो ग्रीक भाषा के ‘काइबरनैतीज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- कर्णधार। अर्थात् जो नाव का कर्ण नियंत्रित करें, दिशा दें। 


इतिहास और विकास  


द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप इंटरनेट का आविष्कार हुआ। उस समय अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक एक ऐसे कमाण्ड कंट्रोल की संरचना विकसित करना चाहते थे, जिस पर सोवियत संघ के परमाणु हमले का प्रभाव न पड़ेे। इसके लिए अमेरिकी वैज्ञानिको ने विकेंद्रित सत्ता वाला नेटवर्क बनाया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को बराबर का दर्जा दिया गया। इस नेटवर्क का उद्देश्य परमाणु हमले की स्थिति में अमेरिकी सूचना संसाधनों का संरक्षण करना था।

अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की पहल पर 2 सितंबर, 1969 को ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया’ और ‘लॉस एंजिल्स’ में मौजूद दो कम्प्यूटरों के बीच पहली बार आंकड़ों का आदान-प्रदान किया गया। इसके बाद ‘एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ (एआरपीए) ने एक परियोजना शुरू की, जिसमें अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के रिसर्च सेंटरों को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ा गया। इस परियोजना की सफलता के बाद अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालय भी स्वयं को नेटवर्क में शामिल करने की मांग करने लगे। सन् 1970 में एआरपीए ने अपने नेटवर्क को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया। पहला, एमआईएल नेट और दूसरा, एआरपीए नेट। एमआईएल नेट से प्रतिरक्षा विभाग तथा एआरपीए नेट से गैर-प्रतिरक्षा विभाग के संस्थानों को जोड़ा गया। 


रे टॉम लिनसन ने पहली बार सन् 1972 में ई-मेल का प्रयोग किया और यूजर आईडी बनाने के लिए / का प्रयोग किया। सन् 1973 में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल/इंटरनेट प्रोटोकाल (टीसीपी/आईपी) को डिजाइन किया गया। इससे उपभोक्ताओं को फाइल डाउनलोड करने में मदद मिलने लगी। सन् 1983 में इंटरनेट दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का साधन बन गया। तब तक इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 562 हो गयी थी। सन् 1984 में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढकर 1024 हो गयी। इस प्रकार, एआरपीए नेट की सफलता को देखते हुए अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ ने सन् 1986 में एनएसएफ नेट की शुरूआत की, जिसके माध्यम से विज्ञान से संबंधित रिसर्च सेंटरों को आपस में जोड़ा गया। यह नेटवर्क भी सफल रहा और धीरे-धीरे एआरपीए नेट का स्थान लेने में कामयाब रहा।


भारत में इंटरनेट क विकास

भारत में इंटरनेट का आगमन एजूकेशनल एण्ड रिसर्च नेटवर्क के प्रयासों से 1987-88 में हो गया था, लेकिन तब सीमित संख्या में कुछ सभ्रांत लोग ही इसका उपयोग करते थे। 15 अगस्त, 1995 को विदेश संचार निगम लिमिटेड (VNSL) ने गेटवे सर्विस के तहत पहली बार भारतीय कम्प्यूटरों को दुनिया के कम्प्यूटरों से जोड़ा। तब कहीं जाकर इंटरनेट आम लोगों को उपयोग के लिये उपलब्ध हो सका। परिणामतः राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों के 32 हजार इंटरनेट उपभोक्ता हो गये। इसका शीघ्र ही मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर, पुणे, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, पटना आदि शहर में विस्तार किया गया। प्रारंभ में सॉफ्टवेयर निर्यातक, सलाहकार, वैज्ञानिक, प्रशिक्षण संस्थान और व्यावसायिक संस्थान इंटरनेट उपभोक्ता थे। नवम्बर 1998 में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी हुआ। 12 नवम्बर, 1998 को ‘सत्यम इनफो’ और ‘सी-डॉट’ के बीच लाइसेंस का समझौता हुआ। ‘सत्यम इनफो’ भारत की दूसरी ( VSNL के बाद) और निजी क्षेत्र की पहली इंटरनेट प्रदाता कम्पनी है, जो ‘सत्यम ऑनलाइन’ के नाम से देश के प्रमुख शहरों में इंटरनेट सुविधा प्रदान करती है। 1998 के अंत तक देश में करीब 7 लाख इंटरनेट उपभोक्ता थे। यह संख्या 31 दिसंबर, 2000 तक बढक़र 18 लाख हो गयी।   

भारत सरकार ने मार्च 2002 में देश के सभी जिला मुख्यालय को इंटरनेट से जोडऩे की योजना शुरू की।  इसके बाद इंटरनेट शहर की सीमा को तोडक़र गांवों में पहुंच गया। मार्च 2009 में टेलीकॉम रेङ्गयूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया कि इंटरनेट के क्षेत्र में देश में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। तब देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या एक करोड़ से अधिक बतायी गयी थी। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मार्च 2009 तक देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 120.85 लाख थी और वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत थी।  एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 90 करोड हो जायेगी। 

कन्वर्जेन (Convergence)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 10, 2025    

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कन्वर्जेंस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न प्रकार की तकनीकों, प्रणालियों और सेवाओं का एकीकरण होता है। इसके परिणाम स्वरूप उनके बीच की पारंपरिक सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। यह डिजिटल युग की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो तकनीकी नवाचारों, नेटवर्किंग और डेटा प्रबंधन की प्रगति के साथ तेजी से विकसित हो रही है। कन्वर्जेंस ने न केवल तकनीकी के क्षेत्र को बल्कि सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित किया है। 

अंग्रेजी भाषा के Convergence का शाब्दिक अर्थ ‘अभिसरण’, ‘मिलन’ या ‘एक साथ आना’ होता है। सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में यह विभिन्न तकनीकों, उपकरणों और सेवाओं के एकीकरण को संदर्भित करता है, जिससे सभी एक सामान्य मंच पर कार्य कर सकें। टेलीफोन, टेलीविजन और कंप्यूटर अलग-अलग उपकरण हैं। सभी अलग-अलग कार्यो के लिए उपयोग किए जाते थे, लेकिन कन्वर्जेंस ने सभी को एक ही डिवाइस या प्लेटफॉर्म पर एकीकृत कर दिया है।

इस प्रकार, कन्वर्जेंस तकनीकी का उपकरण होने के कारण स्मार्टफोन केवल कॉल करने के लिए उपयोग  नहीं किया जाता है, बल्कि इससे इंटरनेट ब्राउजिंग, वीडियो स्ट्रीमिंग, गेमिंग और यहाँ तक कि कार्यालयी कार्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है। कन्वर्जेंस का यह प्रभाव न केवल व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए बल्कि व्यवसायों, उद्योगों और समाज के लिए भी क्रांतिकारी रहा है। यह तकनीकी सीमाओं को तोड़ता है और नवाचार के नए द्वार खोलता है।

कन्वर्जेंस के प्रकार

सूचना प्रौद्योगिकी में कन्वर्जेंस को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी एकीकरण को दर्शाते हैं।

  1.  टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस: टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस तब होता है जब विभिन्न प्रकार के उपकरण और तकनीकें एक ही डिवाइस या प्लेटफॉर्म में एकीकृत हो जाती हैं। उदाहरण- स्मार्टफोन एक ऐसा उपकरण है जो टेलीफोन, कैमरा, म्यूजिक प्लेयर और कंप्यूटर के कार्यों को एक साथ करता है। पहले, ये सभी कार्य अलग-अलग उपकरणों द्वारा किए जाते थे। यह उपयोगकर्ताओं के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि एक ही डिवाइस से कई कार्य किए जा सकते हैं। साथ ही, यह उपकरणों की लागत और जटिलता को कम करता है। टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस को संभव बनाने में हार्डवेयर की प्रगति (जैसे अधिक शक्तिशाली प्रोसेसर) और सॉफ्टवेयर की लचीलापन (जैसे मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  2. नेटवर्क कन्वर्जेंस: नेटवर्क कन्वर्जेंस में विभिन्न प्रकार के नेटवर्क जैसे टेलीफोन नेटवर्क, इंटरनेट और केबल टीवी नेटवर्क, सभी एक ही नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कार्य करते हैं। जैसे- VoIP (Voice over Internet Protocol) तकनीक, जो इंटरनेट के माध्यम से वॉयस कॉल को संभव बनाती है। यह नेटवर्क कनवर्जेंस का प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा IPTV (Internet Protocol Television½ ने पारंपरिक केबल टीवी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ला दिया है। इस प्रकार, नेटवर्क कन्वर्जेंस ने डेटा, वॉयस और वीडियो को एक ही IP आधारित नेटवर्क पर एकीकृत किया है, जिससे लागत कम हुई है और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। उच्च गति के ब्रॉडबैंड नेटवर्क, जैसे 5G और फाइबर ऑप्टिक्स ने नेटवर्क कन्वर्जेंस को बढ़ावा दिया है।
  3. इंडस्ट्री कन्वर्जेंस: इंडस्ट्री कन्वर्जेंस तब होता है जब IT का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है, जिससे उनके बीच की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। स्वास्थ्य सेवा में टेलीमेडिसिन का उपयोग, जहाँ मरीज और डॉक्टर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ते हैं। शिक्षा में ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स ने पारंपरिक कक्षा शिक्षण को डिजिटल रूप दिया है। इंडस्ट्री कन्वर्जेंस के कारण उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ता है और नए बिजनेस मॉडल्स का विकास होता है। उदाहरण- मनोरंजन और गेमिंग उद्योग, जो क्लाउड गेमिंग और स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ एकीकृत हो रहे हैं। AI, IoT और बिग डेटा एनालिटिक्स ने इंडस्ट्री कन्वर्जेंस को संभव बनाया है।
  4. डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस: डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस में विभिन्न डेटा स्रोतों और सॉफ्टवेयर एप्लिकेशनों का एकीकरण होता है। क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे । AWS या Google Cloud डेटा स्टोरेज, AI और IoT सेवाओं को एक ही मंच पर प्रदान करते हैं। यह व्यवसायों को तेजी से निर्णय लेने, डेटा प्रबंधन को सरल बनाने और स्केलेबल समाधानों को लागू करने में सक्षम बनाता है। बिग डेटा, मशीन लर्निंग APIs ने डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस को गति दी है।

कन्वर्जेंस के लाभ और चुनौतियां

कन्वर्जेंस ने IT और उससे संबंधित अन्य क्षेत्रों में निम्नलिखित लाभ प्रदान किए हैं।

  1. दक्षता में बढ़ोत्तरी: एकीकृत प्रणालियाँ और उपकरण अपने उपयोगकर्ताओं के समय और संसाधनों की बचत करते हैं। उदाहरण के लिए एक स्मार्टफोन से कई कार्य करने की क्षमता उपयोगकर्ताओं के लिए समय बचाती है और व्यवसायों के लिए परिचालन लागत कम करती है।
  2. नवाचार: कन्वर्जेंस ने नए उत्पादों और सेवाओं के विकास को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए स्मार्ट होम डिवाइसेज (जैसे  Amazon Echo) ने IoT और AI को एकीकृत करके घरेलू स्वचालन को संभव बनाया है।
  3. बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव: कन्वर्जेंस से उपयोगकर्ताओं को एक सहज और एकीकृत अनुभव मिलता है। उदाहरण के लिए एक ही ऐप से वीडियो कॉल, मैसेजिंग और फाइल शेयरिंग करना संभव हो गया है।
  4. लागत में कमी: नेटवर्क और उपकरणों का एकीकरण लागत को कम करता है। उदाहरण के लिए  कॉल्स पारंपरिक टेलीफोन कॉल्स की तुलना में सस्ते होते हैं।
  5. स्केलेबिलिटी: क्लाउड-आधारित समाधान और एकीकृत नेटवर्क व्यवसायों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सेवाओं को स्केल करने की सुविधा प्रदान करते हैं।

उपरोक्त लाभों को प्रदान करने के बावजूद कन्वर्जेंस को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  

  1. सुरक्षा जोखिम: एकीकृत प्रणालियों में साइबर हमलों का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए एक स्मार्ट डिवाइस हैक होने पर उपयोगकर्ता की गोपनीय जानकारी खतरे में पड़ सकती है।
  2. जटिलता: विभिन्न तकनीकों और प्रणालियों का एकीकरण जटिल हो सकता है। उदाहरण के लिए विभिन्न डिवाइसों और सॉफ्टवेयर के बीच अंतर संचालनीयता सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है।
  3. नियामक चुनौतियाँ: कन्वर्जेंस ने डेटा गोपनीयता और नियामक अनुपालन से संबंधित नई चुनौतियाँ पैदा की हैं। उदाहरण के लिए GDPR जैसे नियम डेटा प्रबंधन के लिए सख्त दिशा-निर्देश लागू करते हैं।
  4. तकनीकी निर्भरता: एकीकृत प्रणालियों पर अत्यधिक निर्भरता तकनीकी विफलताओं के जोखिम को बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिए यदि एक क्लाउड सर्वर डाउन हो जाता है, तो कई सेवाएँ प्रभावित हो सकती हैं।

निष्कर्ष

सूचना प्रौद्योगिकी में कन्वर्जेंस ने तकनीकी, व्यावसायिक, और सामाजिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। यह विभिन्न तकनीकों, नेटवर्कों और उद्योगों के बीच की सीमाओं को धुंधला करके अधिक एकीकृत और कुशल समाधान प्रदान करता है। हालांकि, इसके साथ आने वाली चुनौतियाँ, जैसे सुरक्षा और जटिलता, को संबोधित करना भी आवश्यक है। भविष्य में, नई तकनीकों के साथ कन्वर्जेंस और अधिक गति पकड़ेगा, जो नवाचार और उपयोगकर्ता अनुभव को और बेहतर बनाएगा।


न्यू मीडिया की विशेषताएं (Characteristics of New Media)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 03, 2025    

 न्यू मीडिया एक अद्भूत संचार माध्यम है, जिसका अनुसरण व अनुकरण दुनिया भर के लोग कर रहे हैं। वास्तविक दृष्टि से न्यू मीडिया समाज का ’वास्तविक आईना’ है, क्योंकि इसके प्रचलन से पूर्व व्यवसायिक संचार माध्यमों- समाचार पत्र, रेडियो व टेलीविजन के दफ्तरों में कार्यरत चंद लोग ही तय करते थे कि किस समाचार को कब और कैसे सम्प्रेषित करना हैं, जिसमें पाठकों, श्रोताओं व दर्शकों की कोई सहभागिता नहीं थी, किन्तु वर्तमान में ऐसी स्थिति नहीं है। न्यू मीडिया ने व्यवसायिक संचार माध्यमों को बेपर्दा करने तथा वास्तविकता से पर्दा हटाने का कार्य किया जा रहा है, जो न्यू मीडिया की निम्नलिखित विशेषताओं के कारण संभव हो रहा है:- 

  1. Integrated (एकीकृतद्ध) : न्यू मीडिया की पहली विशेषता Integrated है, क्योंकि इंटरनेट आधारित होने के कारण सभी संचार माध्यम (प्रिण्ट माध्यम- समाचार पत्र, पत्रिका व पुस्तक, इलेक्ट्रानिक माध्यम- रेडियो, टेपरिकॉर्डर व टेलीविजन तथा अन्य माध्यम- टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, पेजर, टेलीप्रिन्टर व टेलीग्राफ इत्यादि) आपस में एकीकृत हो गये हैं। उदाहरण- कम्प्यूटर, एण्ड्रायड व विण्डोज फोन आदि, जिनका मल्टी-उपयोग हो रहा है। 
  2. Digital (डिजिटल): यह न्यू मीडिया की दूसरी विशेषता है। इससे उपभोक्ताओं को गुणवत्तायुक्त संगीत सुनने, मनपसंद टैक्स्ट तलाशने तथा उसे संशोधित करने की सहुलियत मिलने लगी है। शाब्दिक दृष्टि से Digital शब्द का निर्माण अंग्रेजी भाषा के Digit (अंक) से हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि न्यू मीडिया की सम्पूर्ण सामग्री डिजिट में होती है। उदाहरण- इंटरनेट रेडियो बजाने सुई घुमाकर स्टेशन सर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि निर्धारित डिजिट वाले स्टेशन कोड लिखकर सर्च करते ही प्रसारित कार्यक्रम सुनाई देने लगता है। 
  3. Interactive (सहभागी): न्यू मीडिया की तीसरी प्रमुख विशेषता Interactive है। Interactive से तात्पर्य द्वि-चरणीय संचार प्रक्रिया से है। न्यू मीडिया पर प्रसारित सामग्री टैक्स्ट आधारित हो या ऑडिया-वीडिया के रूप में। सभी के अंदर अपने पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों को तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सहभागी बनने की सुविधा होती है। उदाहरण- फेसबुक, ब्लॉग, वेब पोर्टल्स इत्यादि, जो अपने उपभोक्ताओं को फीडबैक व्यक्त करने की सुविधा देते हैं। 
  4. Hypertextual (हाइपरटैक्टुअल): यह न्यू मीडिया की प्रमुख विशेषता है। Hypertextual की सुविधा केवल न्यू मीडिया पर ही उपलब्ध होती है, जिसकें अंतर्गत छोटे से संकेत के अंदर बड़ी से बड़ी जानकारी छुपी होती है। उदाहरण- वेब पोर्टर्ल्स के टैक्स्ट होता है कि- भारतीय संविधान के लेखक डा. भीमराव अम्बेदकर है। इसमें भारतीय संविधान और डा. भीमराव अम्बेदकर दोनों Hypertextual हो सकते हैं, जिन्हें क्लिक करते ही क्रमशः भारतीय संविधान और डा. भीमराव अम्बेदर से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी स्क्रिन पर प्रदर्शित होने लगती है।
  5. Virtual (वर्जुअल):  न्यू मीडिया की पांचवी विशेषता Virtual है, क्योंकि इसके माध्यम से किसी भी सूचना, जानकारी या संदेश को ऐसे सम्प्रेषित किया जाता है, जो वर्जअल होता है किन्तु पाठक, श्रोता व दर्शक को वास्तविक जानकारी देता है। उदाहरण-  ट्रेन दुर्घटना या प्लेन क्रैश होने की जानकारी को एनिमेशन के साथ सम्प्रेषित किया जाता है, जिसमें दुर्घटना स्थल की वास्तविक फोटोग्राफ या विजुअल नहीं होते हैं, बल्कि कॉल्पनिक फोटोग्राफ व विजुअल की सहायता से जानकारी देने का प्रयास किया जाता है।
  6. Network (नेटवर्क): न्यू मीडिया की छठी विशेषता नेटवर्क का है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति व विभिन्न संगठनों के सदस्य आपस में जुड़े होते हैं तथा सभी के मित्रता, आर्थिक लेनदेन, समान विचारधारा, समान अभिरूचि इत्यादि का सम्बन्ध होता है। न्यू मीडिया के नेटवर्क से जुड़े लोग एक-दूसरे के साथ जानकारी, अनुभव, विचार इत्यादि न केवल साझा करते हैं, बल्कि पक्ष व विपक्ष में विचार-विमर्श भी करते हैं। यह सुविधा न्यू मीडिया के अतिरिक्त किसी अन्य माध्यम पर उपलब्ध नहीं है। यदि उपलब्ध भी है तो उसमें काफी समय लगता है तथा काफी खर्चीला है।
  7. Simulated (सीमुलेटेड): यह न्यू मीडिया की सातवीं प्रमुख विशेषता है, जिसके अंतर्गत उपभोक्ताओं को अपनी कल्पना को आकार देने तथा दूसरों से साझा करने की सुविधा मिलती है।


शुक्रवार

न्यू मीडिया की अवधारणा (Concepts of New Media)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 25, 2025    

 सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) की मौजूदा शताब्दी में न्यू मीडिया की सहायता से विचारों, भावनाओं, जानकारियों व अनुभूतियों का बगैर सेंसरशिप के अत्यंत तीब्र गति से सम्प्रेषण हो रहा है। इसकी सर्वप्रथम परिकल्पना 19वीं शताब्दी में ’लोकतंत्रिक सहभागी मीडिया सिद्धांत’ के प्रतिपादक जर्मनी के मैकवेल ने की थी। हालांकि, उस वक्त दुनिया में इंटरनेट का आविष्कार नहीं हुआ था, लेकिन जर्मनी में लोकतंत्र का शुभारंभ जरूर हो चुका था। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में लोक प्रसारण अर्थात सर्वाजनिक प्रसारण के अंतर्गत समाज के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक समेत विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तरीय सुधार की अपेक्षा की गई थी, जिसे सार्वजनिक प्रसारण संगठनों ने पूरा नहीं किया। इसका मुख्य कारण मीडिया पर औद्योगिक घरानों का नियंत्रण, औद्योगिक घरानों का शासन-प्रशासन के साथ निकट सम्बन्ध, आर्थिक व सामाजिक दबाव तथा अभिजातपूर्ण व्यवहार था। ऐसी स्थिति में मैकवेल ने जनता की आवाज को सामने लाने के लिए वैकल्पिक मीडिया अर्थात न्यू मीडिया की परिकल्पना की। 


 19वीं शताब्दी के मध्य में न्यू मीडिया के रूप में अवतरित टेलीविजन ने संचार विशेषज्ञों को आश्चर्य चकित कर दिया। टोरंटो स्थित ’मीडिया स्टडीज सेंटर’ के संस्थापक मार्शल मैकलुहान ने 20वीं शताब्दी के मध्य में ’समाज पर टेलीविजन का प्रभाव’ विषयक अध्ययन किया तथा सन् 1964 में ’अंडरस्टैडिंग मीडिया: द एक्सटेंशन ऑफ मैन’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की। इनका मानना है कि संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए माध्यमों का विकास व विस्तार होना बेहद जरूरी है, क्योंकि संचार माध्यमों के विकास व विस्तार के साथ संदेश का प्रचार व प्रसार भी होगा। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि ’माध्यम ही संदेश है’ (Medium is the Message)  है। 

मार्शल मैकलुहान ने टेलीविजन को प्रचार-प्रसार का उन्मादी माध्यम बताया है। इन्होंने रेडियो को ‘ट्रइबल ड्रम‘ (Tribal Dram)] फोटो को दीवार रहित वैश्यालय (Brothel-without Walls) तथा टेलीविजन को यांत्रिक दुल्हन (Mechanical Bride) की संज्ञा दी है तथा वैश्विक गांव (Global Village) की परिकल्पना की है। जिसको तत्कालीक संचार विशेषज्ञों ने 'गप' कहकर मजाक उड़ाया। न्यू मीडिया के रूप में अवतरित टेलीविजन वर्तमान शताब्दी में लाभ-हानि के सिद्धांत पर औद्योगिक घरानों द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिसमें कार्यरत संपादक, समाचार वाचक, स्क्रीप्ट लेखक, संवाददाता, कैमरामैन व तकनीकी सहायक अपने नियोक्ता के इशारों पर गेट-कीपर का कार्य कर रहे हैं। शासन-प्रशासन को संचालित करने वाले राजनीतिज्ञ तथा सरकारी संगठनों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी अपने-अपने तरीके से औद्योगिक घरानों को नियंत्रित करते हैं। विज्ञापनदाता भी अपने हित के लिए टेलीविजन चैनलों की विषय वस्तु को प्रभावित करते हैं। परिणामतः टेलीविजन चैनलों की विषय वस्तु आम जनों पर केंद्रीत नहीं होती है। यदि होती भी है तो उसमें प्रभावशाली व्यक्तियों का हित छुपा होता है। अतः टेलीविजन चैनल मैकवेल के न्यू मीडिया की परिकल्पना पर खरा नहीं उतरा है। 

शीत युद्धोंपरांत अवतरित इंटरनेट आधारित न्यू मीडिया किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि वर्तमान शताब्दी में इसका उपयोग कर किसी सूचना या जानकारी को पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने में सम्प्रेषित किया जा सकता है। ताजातरीन समाचारों व जानकारियों को प्राप्त करने के लिए समाचार पत्र प्रकाशित होने का इंतजार करने की आवश्यकता भी नहीं है, जो न्यू मीडिया के कारण संभव हुआ है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि ...आखिर न्यू मीडिया किसे कहते हैं तथा 21वीं शताब्दी में क्यों प्रासंगिक है? 

न्यू मीडिया : अधिकांश लोग न्यू मीडिया का अर्थ इंटरनेट आधारित पत्रकारिता से लगाते हैं, लेकिन न्यू मीडिया समाचारों, लेखों, सृजनात्क लेखन या पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया को परम्परागत मीडिया के आधार पर परिभाषित ही नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसके दायरे में मात्र समाचार पत्रों व टेलीविजन चैनलों की वेबसाइट्स मात्र नहीं आती हैं, बल्कि नौकरी ढूढ़ने व रिश्ता तलाशने वाली वेबसाइट्स, विभिन्न उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री करने वाले वेब पोर्टल्स, स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में प्रवेश, पाठ्य-सामग्री, परीक्षा-परिणाम से सम्बन्धित जानकारी देने वाली वेबसाइट्स, ब्लॉग्स, ई-मेल, ई-नीलामी, ई-पुस्तक, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, चैटिंग, ऑडियो-वीडियो शेयरिंग, यू-ट्यूब तथा सोशल नेटवर्किंग साइट्स (फेसबुक, ऑरकूट, ट्वीटर, लिक्ड-इन इत्यादि) से सम्बन्धित वेबसाइट्स व साफ्टवेयर भी न्यू मीडिया के अंतर्गत आते हैं।

शाब्दिक दृष्टि से न्यू मीडिया अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों New और Media के योग से बना है। New शब्द का अर्थ ’नया’ अर्थात ’नवीन’ तथा Media शब्द का अर्थ ’माध्यम’ होता है। इस दृष्टि से न्यू मीडिया अपने समय का सर्वाधिक नवीन माध्यम है। न्यू मीडिया का वर्तमान काल में जैसा स्वरूप है, वह न तो अतीत (भूत) काल में था और न तो भविष्यकाल में रहेगा, क्योंकि प्रारंभ में जब टेलीविजन आया था, तब उसे भी न्यू मीडिया कहा गया था। संचार व मीडिया विशेषज्ञों ने न्यू मीडिया को अपने-अपने तरीके से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:- 

  • लेव मैनोविच के अनुसार- न्यू मीडिया डिजिटल तकनीकों पर आधारित है, जो मॉड्यूलर डेटा, स्वचालन, और परिवर्तनशीलता (Variability) की विशेषताओं के साथ सूचना का उत्पादन और प्रसार करता है।
  • मैनुएल कास्टेल्स के अनुसार- न्यू मीडिया एक नेटवर्क समाज का हिस्सा है, जो विकेंद्रित संचार और सूचना के वैश्विक प्रवाह को सक्षम बनाता है।
  • हेनरी जेनकिन्स के अनुसार- न्यू मीडिया ‘कन्वर्जेन्स कल्चर’ को दर्शाता है, जहां विभिन्न मीडिया रूप (टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो) एक मंच पर एकीकृत होकर इंटरैक्टिव अनुभव प्रदान करते हैं।
  • क्ले शिर्की के अनुसार- न्यू मीडिया उपयोगकर्ता-जनित सामग्री और सामाजिक उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्तियों को सामग्री निर्माण और साझाकरण में सक्रिय भूमिका मिलती है।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में कहा जा सकता है कि न्यू मीडिया से तात्पर्य उन डिजिटल और इंटरनेट आधारित संचार माध्यमों से है, जो परंपरागत मीडिया (जैसे प्रिंट, रेडियो, टेलीविजन) से भिन्न हैं। यह इंटरैक्टिव, उपयोगकर्ता-केंद्रित, और प्रौद्योगिकी-संचालित होता है, जो सूचना के उत्पादन, वितरण और उपभोग को नया रूप देता है


मंगलवार

वेब 3.0 (Web 3.0)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     नवंबर 05, 2024    

 सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार की अनंत संभावनाओं को देखते हुए बड़े ही आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाली पीढ़ी का मीडिया अभूतपूर्व होगा। वेब की दो पीढ़ी विकसित हो चुकी है- वेब 1.0 और वेब 2.0। वर्तमान समय में वेब 3.0 की कल्पना की जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक वेब 3.0 इतनी आधुनिक होगी कि इसके सामने आज की तकनीक और इंटरनेट स्पीड कुछ भी नहीं होगी।

अपने दौर का सर्वाधिक लोकप्रिय अमेरिकी टीवी धारावाहिक ‘स्टार ट्रेक’ में भविष्य की न्यू मीडिया के नजारों को देखा जा चुका है। क्या आने वाला मीडिया ‘स्टार ट्रेक’ जैसी गल्प और कल्पनाओं को साकार कर देगा। इसका जवाब फौरन हां में भले ही न दिया जा सके, लेकिन इसे बिल्कुल न कहकर नकारा भी नहीं जा सकता है। 

संभवतः इन्हीं कारणों से वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली ने सिमैंटिक वेब की कल्पना की होगी। इस शब्दावली के जन्मदाता भी टिम बर्नर्स ली ही हैं। उन्होंने इसे वेब 3.0 का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना है। टिम बर्नर्स ली का कहना है कि सिमैंटिक वेब ही आगामी न्यूनता की ओर ले जाएगा। अतः वेब 3.0 को समझने से पहले सिमंटिक वेब को जानना जरूरी है।

सिमैटिक का सामान्य अर्थ शब्दार्थ विज्ञान है। यह एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें अर्थ का निष्पादन किया जाता है। इसे समझने की प्रक्रिया को सिमेंटिक कहा जाता है। वेब के संदर्भ में सिमेंटिक का अर्थ है वर्ल्ड वाइड वेव का ऐसा विस्तार है, जहां लोग एप्लीकेशंनों और वेबसाइटों की परिधियों से आगे जाकर कंटेंट को शेयर कर सकते हैं। इसे काल्पनिक विजन माना जाता है। सिमैंटिक वेब को डाटा का वेब (वेब ऑफ डाटा) भी कहा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वेब गतिविधि को नया बदलाव देगा। आज कई सिमैंटिक तकनीकें बनाई जा रही हैं, कई एप्लीकेशनों की खोज की जा रही है, ताकि वेब को और सहज, सुगम और सरल बनाया जा सके। ऐसा भी कहा जा सकता है कि सिमैंटिक वेब, कंप्यूटर को मनुष्य मस्तिष्क के समतुल्य करने की एक शुरुआत है।

टिम बर्नर्स ली, जेम्स हैंडलर और ओरा लासिला ने मई 2001 में मशहूर विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक अमेरिकन में सिमैंटिक वेब के बारे में सबसे पहले अपना शोध प्रकाशित किया था। टिम और अन्य के मुताबिक, ‘‘सिमैंटिक वेब, मौजूदा वेब का एक विस्तार है जिसमें सूचना को एक सटीक परिभाषित अर्थ दिया गया है, जिसमें कंप्यूटर ज्यादा कारगर है और जहां लोग सहयोग के साथ काम कर सकते हैं।‘‘

टिम बर्नर्स ली ने सिमैंटिक वेब को परिभाषित करते हुए कहा कि यह एक डाटा वेब है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मशीनों द्वारा परिवर्तित और परिष्कृत किया जा सकता है। उनके मुताबिक यह वेब एक साथ संदर्भ और सामग्री (कॉन्टेक्स्ट एंड कंटेंट) को पढ़ने और समझने की क्षमता वाला होगा।

यह सामग्रियों को फिल्टर कर सकेगा और यूजर के समक्ष सिर्फ वही सामग्री पेश करेगा जो सबसे प्रासंगिक हो, सबसे प्रासंगिक सोर्स से आई हों और सबसे ताजा हो। इस काम के लिए यूजर को अपनी सामग्री के संदर्भ वाली सूचना मुहैया करानी होगी, जिसका कि एक तरीका टैगिंग है।

कुल मिलाकर विचार ये है कि वेब, यूजर के इनपुट और कंटेंट के चरित्र-चित्रण का इस्तेमाल करेगा जो आगे चलकर नतीजतन सिमैंटिक और अर्थ आधारित गुणात्मक सर्च को संभव बनाएगा। इसके लिए एक नए प्रोटोकॉल, आरडीएफ रिसोर्स डिस्क्रिप्शन फ्रेमवर्क पर वर्ल्ड वाइल्ड वेब कंजेटियम डब्ल्यूसी काम कर रहा है। इसी प्रोटोकाल के जरिए वेब की हर तरह की सूचना या डाटा को कोड किया जाएगा। इसमें एक समान भाषा विकसित की जाएगी जो गुणात्मक सर्च को संभव कर सकेगी। 


सोमवार

वेब 2.0 प्रौद्योगिकी: अर्थ एवं एप्लीकेशन्स (Web 2.0 technologies: Meaning and applications)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     नवंबर 04, 2024    

 21वीं सदी का दूसरा दशक इंटरनेट के बेतहाशा वृद्धि का दशक है। इंटरनेट का भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में बोलबाला है। परिणामतः इंटरनेट के उपभोक्ताओं की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इंटरनेट इस तरह से शक्तिशाली जनसंचार माध्यम बनता चला गया। हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन और वाईफाई हॉट स्पॉट्स ने इंटरनेट को और अधिक मोबाइल व गतिशील बना दिया है। वेब के इस इंटरैक्टिव संसार को ‘वेब 2.0 प्रौद्योगिकी’ के नाम से जाना जाता है, जहां यूजर सूचनाएं न केवल अपलोड व डाउनलोड, बल्कि शेयर भी कर रहे हैं। 

वेब 2.0 शब्द सामान्यतः ऐसे वेब प्रोग्रामों/एप्लीकेशन्स के लिए प्रयुक्त होता है, जो पारस्पारिक क्रियात्मक जानकारी बांटने, सूचनाओं के आदान प्रदान करने, उपयोगकर्ता को ध्यान में रख कर डिजाइन बनाने और वर्ल्ड वाइड वेब से जोड़ने की सुविधा प्रदान करते हैं। वेब 2.0 के उदाहरणों में वेब आधारित कम्यूनिटी/समुदाय, होस्ट सर्विस, वेब प्रोग्राम, सोशल नेटवर्किंग साइट, वीडियो शेयरिंग साइट, विकी, ब्लॉग, तथा मैशप (दो या अधिक स्त्रोतों से जानकारी एकत्रित करके बनाया गया वेब पेज) व फोक्सोनोमी (टैगिंग) शामिल हैं। एक वेब 2.0 साइट अपने उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ वेबसाइट की सामग्री देखने या बदलने की अनुमति देती है, जबकि नॉन-इंटरएक्टिव वेब साइटों के द्वारा उपयोगकर्ता किसी जानकारी को केवल उतना ही देख सकते हैं, जितनी जानकारी उन्हें देखने के लिए उपलब्ध कराई जाती है।

यह शब्द 2004 में ओ रेली मीडिया वेब 2.0 सम्मेलन के कारण टिम ओ रेली से जुड़ा हुआ है। हालांकि इस शब्द से वर्ल्ड वाइड वेब के नए संस्करण का पता चलता है, यह किसी तकनीकी विशेषताओं को अपडेट करने का उल्लेख नहीं करता, अपितु एक एंड यूजर/उपयोगकर्ता और सॉफ्टवेयर डेवलपर द्वारा वेब को प्रयोग करने के तरीकों में आये बदलावों को परिलक्षित करता है। 

वर्तमान समय में कई बड़ी मीडिया कंपनियां इंटरनेट व्यवसाय में उतर आई। कई लोकप्रिय वेब ठिकानों का अधिग्रहण नामी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। 2005 में ‘न्यूज कॉरपोरेशन’ ने ‘माईस्पेस’ का अधिग्रहण किया। इसी प्रकार, 2006 में ‘गूगल’ ने ‘यूट्यूब’ को खरीदा। 

तेजी से विकसित होते इंटरनेट ने वेब 2.0 का रास्ता बनाया है। इंटरनेट के इस विकास का सारथी बना है ब्रॉडबैंड। ब्रॉडबैंड से आशय उस विधि और प्रणाली या उस तरीके से है जिसके जरिए हम ऐसे इंटरनेट से जुड़ते हैं जिसमें सूचनाएं त्वरित गति से अपलोड व डाउनलोड की जा सकती है। जैसे- पहले डायलअप मोडेम के जरिए इंटरनेट खुलता था, अब अत्यंत तीव्र स्पीड बाले बॉडबैंड कनेक्शन आ गए हैं, जिन्हें हम 3जी (थर्ड जनेरेशन) व 4जी के नाम से जानते हैं। कई कम्पनियां कुछ बड़े देशों में 5जी शुरू करने की तैयारी में हैं। तेज इंटरनेट कनेक्शन यानी शक्तिशाली ब्रॉडबैंड के जरिए बड़ी से बड़ी फाइलें चुटकियों में इंटरनेट पर भेजी जा सकती हैं। डायलअप मोडेम में कभी एक संगीत की या फिल्म की फाइल खोलने में घंटों लग जाते थे, कनेक्शन एरर आ जाता था, लेकिन अब ब्रॉडबैंड ने उसकी गति में असाधारण तेजी ला दी है। घंटों का काम अब मिनटों या सेकेण्डों में होने लगा है।

ब्रॉडबैंड के लिए उपभोक्ताओं को अपने फोन के जरिए सैटेलाइट मोडेम, एक केबल मोडेम या डिजिटल सब्स्क्राइबर लाइन (डीएसएल) की दरकार होती है। डेस्कटॉप के साथ अब तो इंटरनेट कनेक्शन जोड़ने के लिए फोन की बाध्यता भी नहीं रह गई है। मीडिया कंपनियां कंप्यूटर के सीपीयू के साथ लगे यूएसबी सॉकेट में फिट होने लायक डूंगल निकाल चुकी हैं।

ब्रॉडबैंड की दुनिया में बेतार अर्थात वायरलेस तकनीक के कारण क्रांति आयी। आज के वेब को वायरलेस वेब भी कहा जाता है। मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है। इसमें और विस्तार देखा जा रहा है, लिहाजा इंटरनेट को मोबाइल तकनीक के साथ सामंजस्य बैठाने योग्य बना दिया गया है। लैपटॉप कंपयूटर इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वाईफाई तकनीक यानी वायरलैस फिडेलिटी तकनीक ने इंटरनेट को बेतार कर दिया है। आने वाले दिनों में यह तय माना जा रहा है कि डूंगल या किसी और माध्यम की जरूरत इंटरनेट के लिए नहीं रहेगी। वह मोबाइल फोन के नेटवर्क की तरह कमोबेश हर जगह उपलब्ध रहेगा।

मोबिलिटी यानी गतिशीलता आज के जनसंचार की एक प्रमुख विशेषता बन गई है। वाईफाई इस दिशा में पहला कदम माना जाता है। इसके आगे वाईमैक्स तकनीक है जो बेतार इंटरनेट को समस्त महानगरीय, शहरी, उपशहरी क्षेत्रों तक सुगम बना देगा। वाईफाई डिवाइस को कनेक्ट करने के लिए मद्धम शक्ति (लो-पावर) रेडियो सिग्नलों का इस्तेमाल करता है, वहीं वाईमैक्स वाईफाई जैसा ही है लेकिन कम दूरी या डेढ़ सौ से दो सौ फुट की दूरी को कवर करने के बजाय 16 किलोमीटर जितनी लम्बी दूरियों को अपने दायरे में लेता है। इस तरह वाइमैक्स नेटवर्क आज के सेलफोन नेटवर्क की तरह व्यापक होगा। 

ब्रॉडबैंड की इसी व्यापकता ने वेब 2.0 को संभव किया है। विकसित होता इंटरनेट और इसका नया इंटरैक्टिव इस्तेमाल ही वेब 2.0 के रूप में जाता है। ये एक प्रारंभिक शब्दावली है और इसकी कई व्याख्याएं की जा सकती हैं लेकिन आमतौर पर दूसरी पीढ़ी यानी टूजी वेब सेवाओं को ये नाम दिया गया है। इसके तहत शेयरिंग और सहयोग आधारित सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें (फेसबुक, ट्विटर आदि), यूजर जनेरेटड वेबसाइटें जैसे यू ट्यूब (इसकी थीम ही है-ब्रॉडकास्ट योअरसेल्फ यानी खुद को प्रसारित करो) और सामूहिक भागीदारी की विकिपीडिया जैसी वेबसाइटें आती हैं। डब्ल्यूएपी, वैप मोबाइल फोन जैसी वायरलेस तकनीक में इंटरनेट संभव हो गया है। मल्टीमीडिया मैसेजिंग सिस्टम (एमएमएस) मोबाइल फोन में उपलब्ध ऐसी तकनीक है जिसके जरिए टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और तस्वीर सबकुछ भेजा जा सकता है। मोबाइल और सेलफोन-रेडियो, डिजिटल कैमरा, रिकॉर्डर, एमपी-3 प्लेयर, मूवी प्लेयर, वीडियोस्ट्रीमिंग डिवाइस, टीवी प्रोग्राम, जीपीएस, इंटरनेट-एक साथ कई रूपों में काम कर रहे हैं। 

पहली पीढ़ी के वेब यानी वेब 1.0 में यूजर कंटेंट को उपभोग करते थे लेकिन वेब 2.0 में यूजर कंटेंट बना रहे हैं और उसे परस्पर शेयर भी कर रहे हैं। वेब 1.0 स्थिर था, वेब 2.0 डायनेमिक यानी गतिशील है। ऐसा नहीं है कि वेब 2.0 की गतिशीलता और तीव्रता और बहुआयामिता सिर्फ उपभोक्ताओं, यूजरों और ऑडियंस के लिए ही है और सबकुछ जनहित में ही है। वेब 2.0 एक व्यावसायिक उपक्रम के रूप में बहुत सफल है और बड़ी-बड़ी कंपनियां वेब के इस नए अवतार से भली भांति परिचित हैं। वे वेबसाइटों पर विज्ञापनों के जरिए या सोशल मीडिया नेटवर्कों में अप्रत्यक्ष रूप से राजस्व बटोरेने के लिए उत्सुक रहती हैं। वेब का बाजार बहुत तीव्र गति से फल-फूल रहा है। इंटरनेट एडवर्टाइजिंग एक बड़ा बिजनेस बन गया है। अरबों-खरबों डॉलरों का कारोबार इंटरनेट से जुड़ा है।


रविवार

वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 20, 2024    

इंटरनेट पर वर्ल्ड वाइड वेब प्रयोग कर विविध जानकारी प्राप्त की जा सकती है। संक्षेप में इसे WWW या ‘वेब’ कहा जाता है। इसका उपयोग कर इंटरनेट उपभोक्ता उन वेब पेजों को आसानी से देख सकते हैं जिनमें टेक्स्ट, तस्वीर, वीडियो तथा अन्य मल्टीमीडिया होता है। इस तकनीकी को स्विट्जरलैंड के कम्प्यूटर वैज्ञानिक जॉन बर्नर्स-ली ने 25 दिसंबर, 1990 को विकसित किया, जिन्हें टिम बर्नर्स के नाम से भी जाना जाता है।  8 जून, 1955 को ब्रिटेन में जन्मे टिम बर्नर्स ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हैकिंग के आरोप में पकड़े गये थे। स्वीट्जरलैंड स्थित यूरोपियन नाभकीय अनुसंधान संगठन में नौकरी के दौरान उन्होंने देखा कि अलग-अलग कम्प्यूटर में अलग-अलग तरह की सूचनाएं हैं। तभी उनके मन में विचार आया कि- सभी सूचनाओं को एक साथ सभी कम्प्यूटरों पर क्यों नहीं देखा जा सकता है? 

टिम बर्नर्स ने ‘इंफो डॉट सीईआरएन डॉट सीएच’ नाम से पहला इंटरनेट सर्वर बनाया, जो लालफीताशाही के चलते दुनिया के सामने नहीं आ सका और गुमनामी के अंधेरे में खो गया। इसके बावजूद टिम का हौसला कम नहीं हुआ और उन्होंने इंटरनेट कम्यूनिटी की दिशा में प्रयास जारी रखा। अंततः सन् 1991 में उनकी मेहनत सफल हुई। उनके द्वारा तैयार किया गया वर्ल्ड वाइड वेब ब्राउजर और इंटरनेट सर्वर दुनिया के सामने आ गया। तब यूरोपियन नाभकीय अनुसंधान संगठन ने दोनों पर अपना अधिकार जताया, क्योंकि उसकी कम्पनी में टिम बर्नर्स कार्यरत थे। 30 अप्रैल, 1993 को वर्ल्ड वाइड वेब ब्राउजर और इंटरनेट सर्वर तकनीकी की विश्वव्यापी उपयोगिता को देखते हुए WWW को अपने अधिकार से मुक्त करना पड़ा।   

इस तकनीकी से उपभोक्ताओं को जहां सूचना सम्प्रेषण का बेहतर माध्यम मिला, वहीं इंटरनेट पर सूचनाओं का भंडार आ गया। 24 मई, 1994 को यूरोपियन नाभकीय अनुसंधान संगठन ने वर्ल्ड वाइड वेब पर पहली कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें टिम बर्नर्स ने इंटरनेट का दुरूपयोग रोकने के लिए एक संगठन बनाने की मांग रखी। परिणामतः जुलाई 1994 में ‘मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (MIT) ने संगठन बनाने की मेजबानी की। यूरोप में यूरोपियन नाभकीय अनुसंधान संगठन और अमेरिका में MIT को इस संगठन का मुख्यालय बनाया गया। इसका उद्देश्य वेब तकनीकी और सुविधाओं को बेहतर बनाना और दुरूपयोग रोकना है। हालांकि बाद में यूरोपियन नाभकीय अनुसंधान संगठन ने स्वयं को इस संगठन से अलग कर लिया, तब फ्रांस के ‘नोनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च’ को ‘कम्प्यूटर साइंस एण्ड कंट्रोल’ का नया मुख्यालय बनाया गया। वर्ल्ड वाइड वेब का कार्यालय अमेरिका के वर्जीनिया में है। किसी भी साइट को खोलने के लिए उस पते की जानकारी कूटभाषा में इस कार्यालय तक पहुंचानी पड़ती है, जो उस http (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल) के माध्यम से जाती हैं।

सोमवार

भारत में इंटरनेट क विकास (Development of Internet in India)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 07, 2024    

भारत में इंटरनेट का आगमन एजूकेशनल एण्ड रिसर्च नेटवर्क के प्रयासों से 1987-88 में हो गया था, लेकिन तब सीमित संख्या में कुछ सभ्रांत लोग ही इसका उपयोग करते थे। 15 अगस्त, 1995 को विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) ने गेटवे सर्विस के तहत पहली बार भारतीय कम्प्यूटरों को दुनिया के कम्प्यूटरों से जोड़ा। तब कहीं जाकर इंटरनेट आम लोगों को उपयोग के लिये उपलब्ध हो सका। परिणामतः राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों के 32 हजार इंटरनेट उपभोक्ता हो गये। इसका शीघ्र ही मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर, पुणे, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, पटना आदि शहर में विस्तार किया गया। प्रारंभ में सॉफ्टवेयर निर्यातक, सलाहकार, वैज्ञानिक, प्रशिक्षण संस्थान और व्यावसायिक संस्थान इंटरनेट उपभोक्ता थे। नवम्बर 1998 में भारत सरकार ने निजी क्षेत्र के इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी किया। इसके बाद 12 नवम्बर, 1998 को सत्यम इनफो और सी-डॉट के बीच लाइसेंस का समझौता हुआ। सत्यम इनफो भारत की दूसरी (VSNL के बाद) और निजी क्षेत्र की पहली इंटरनेट प्रदाता कम्पनी बनी, जो सत्यम ऑनलाइन के नाम से देश के प्रमुख शहरों में इंटरनेट सुविधा प्रदान करती है। 1998 के अंत तक देश में करीब 7 लाख इंटरनेट उपभोक्ता थे। यह संख्या 31 दिसंबर, 2000 तक बढक़र 18 लाख हो गयी।   

भारत सरकार ने मार्च 2002 में देश के सभी जिला मुख्यालय को इंटरनेट से जोडऩे की योजना शुरू की।  इसके बाद इंटरनेट शहर की सीमा को तोडक़र गांवों में पहुंच गया। मार्च 2009 में टेलीकॉम रेग्यूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया कि इंटरनेट का विस्तार 5.3 प्रतिशत की दर से हो रहा है। तब देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या एक करोड़ से अधिक हो गयी थी। मार्च 2009 तक देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 120.85 लाख थी।  इसके अलावा मोबाइल हैंडसैट के माध्यम से वायरलैस इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या 11.80 करोड़ थी। मार्च 2024 में भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 95.4 करोड़ हो गई है. जो पिछले साल के मुकाबले 7.3 करोड़ ज्यादा है। यह बढ़ोत्तरी 8.30 प्रतिशत की दर से हुई है।

इंटरनेट की उपयोगिता रू इंटरनेट ने सूचना क्रांति के रूप में मानव को अपने प्रभाव में ले लिया है। इसका जीवन के सभी क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है। इंजीनियर हो या डाक्टर, वैज्ञानिक हो या शोधार्र्थी, व्यापारी हो या विद्यार्थी, अधिवक्ता हो या प्रवक्ता, राजनीतिज्ञ हो मीडिया कर्मी सभी व्यापक रूप से इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। कहने का तात्पर्य है कि मनोरंजन, चिकित्सा, शिक्षा, व्यवसाय सभी इंटरनेट के कारण कम्प्यूटर के अंदर समा गये हैं।

मानव सभ्यता के इतिहास में इंटरनेट के अतिरिक्त इतना तेजी से विकास और विस्तार करने वाला अन्य उदाहरण नहीं है, जिसकी व्यापक जन उपयोगिता हो। इंटरनेट पर मानव के उपयोग के लिए निम्नलिखित सुविधाएं उपलब्ध हैं :-   

  1. शेयरों के बाजार भाव की जानकारी के साथ क्रय-विक्रय, 
  2. रेलगाड़ी व वायुयान में उपलब्ध सीटों की जानकारी के साथ आरक्षण,
  3. दुनिया के किसी भी देश में मित्र बनाने और उसे त्वरित गति से संदेश भेजने, 
  4. घर में बैठकर सस्ते दर पर मन पसंद सामान खरीदने,  
  5. समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के ऑनलाइन संस्करण पढऩे,  
  6. विश्वविद्यालयों, कालेजों व स्कूलों में प्रवेश, परीक्षा व परिणाम की जानकारी तथा
  7. नौकरी व रिश्ता तलाश करने की सुविधा।

संचार माध्यम के रूप में इंटरनेट की उपयोगिता इतनी अधिक बढ़ गई है कि इसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। समाचारों के संकलन से सम्प्रेषण तक के कार्याे में इंटरनेट का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, मीडिया संस्थानों को इंटरनेट संचालित विभिन्न प्रकार के नेटवर्काे से समाचार प्राप्त होते हैं। समाचार चाहे संवाददाता द्वारा भेजा गया हो या समाचार एजेंसियों द्वारा। सभी के कम्प्यूटर इंटरनेट से जुड़े होते हैं। इंटरनेट के अभाव में इतना त्वरित गति से न तो समाचार संकलन संभव है और न तो सम्प्रेषण।


गुरुवार

इंटरनेट (Internet)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 03, 2024    

इंटरनेट सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि एक प्लेटफार्म है। इसका पूरा नाम इंटरनेशनल नेटवर्क है। इंटरनेट की सहायता से अलग-अलग स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों को आपस में जोडक़र सूचना या जानकारी को सम्प्रेषित करने की विशेष प्रणाली विकसित की गई है। यह नेटवर्काे का नेटवर्क है, जिसकी सहायता से समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं व किताबों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर न केवल प्रकाशित किया जा सकता है, बल्कि पढ़ा भी जा सकता है, जो कहीं भुगतान के बदले तो कहीं बिलकुल मुफ्त उपलब्ध हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक ग्लोबल नेटवर्क है, जिसमें हजारों छोटे नेटवर्क परस्पर सम्पर्क के लिए प्रोटोकॉल भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रोटोकॉल नियमों का संकलन वह भाषा है, जिसे नेटवर्क में परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट को ‘सूचना राजपथ’ व ‘अंतर्रजाल‘ कहा जाता हैं। 

इंटरनेट से सूचनाओं का प्रवाह विभिन्न नेटवर्काे के जरिए अंतरिक्ष में स्थित एक काल्पनिक पथ से होता है, जिसे ‘साइबर स्पेस’ कहा जाता है। इस आधार पर इंटरनेट के अध्ययन को ‘साइबरनेटिक्स’ विधा के अंतर्गत् रखा गया है। ‘साइबरनेटिक्स’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो ग्रीक भाषा के ‘काइबरनैतीज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- कर्णधार। अर्थात् जो नाव का कर्ण नियंत्रित करें व दिशा दें। 

इंटरनेट का इतिहास (History of Internet) 

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद (1960 के दशक में) अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप इंटरनेट का आविष्कार हुआ। उस समय अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग (पेंटागन) के वैज्ञानिक एक ऐसे कमाण्ड कंट्रोल को विकसित करना चाहते थे, जिस पर सोवियत संघ के परमाणु हमले का प्रभाव न पड़ेे। इसके लिए अमेरिकी वैज्ञानिको ने विकेंद्रित सत्ता वाला नेटवर्क बनाया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को बराबर का दर्जा दिया गया। इस नेटवर्क का उद्देश्य परमाणु हमले की स्थिति में अमेरिकी सूचना संसाधनों का संरक्षण करना था। 


अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की पहल पर 2 सितंबर, 1969 को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और लॉस एंजिल्स में मौजूद दो कम्प्यूटरों के बीच पहली बार आंकड़ों का आदान-प्रदान किया गया। इसके बाद ‘एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ (ARPA) ने एक परियोजना शुरू किया, जिसमें अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के रिसर्च सेंटरों को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ा गया। इस परियोजना की सफलता के बाद अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालय भी स्वयं को नेटवर्क में शामिल करने की मांग करने लगे। 1970 में ARPA ने अपने नेटवर्क को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया। पहला, MIL NET और दूसरा, ARPA NET। प्रतिरक्षा विभाग को MIL NET से तथा गैर-प्रतिरक्षा विभाग के संस्थानों को ARPA NET से जोड़ा गया। 


रे टॉम लिनसन ने 1972 में पहली बार ई-मेल का प्रयोग किया और यूजर आईडी बनाने के लिए @ का प्रयोग किया। 1973 में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल/इंटरनेट प्रोटोकाल (TPC/IP) को डिजाइन किया गया। इससे उपभोक्ताओं को फाइल डाउनलोड करने में मदद मिलने लगी। 1982 में इंटरनेट दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का साधन बन गया। तब तक इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 562 हो गयी थी, जो 1984 में बढ़कर 1024 हो गयी। इस प्रकार, ARPA NET की सफलता को देखते हुए अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ ने 1986 में NSF NET की शुरूआत की, जिसके माध्यम से विज्ञान से संबंधित रिसर्च सेंटरों को आपस में जोड़ा गया। यह नेटवर्क भी सफल रहा और धीरे-धीरे ARPA NET का स्थान लेने में कामयाब रहा। 


1988 में मॉरिस नामक पहला वायरस इंटरनेट पर आया। 1989 में पहली बार मैकगिल यूनिवर्सिटी के पीटर ड्यूश ने इंटरनेट का इंडेक्स (अनुक्रमणिका) बनाने का प्रयास किया। यूरोपियन लेबोरेट्री फॉर पार्टिकल फीजिक्स के बर्नर्स-ली ने इंटरनेट पर सूचना के विवरण के लिए नई तकनीक विकसित किया, जिसे  WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) कहा गया।  वेब मूलतः हाईपरटेक्स्ट पर आधारित है, जो कि किसी इंटरनेट उपभोक्ता को इंटरनेट की विभिन्न साइट्स पर एक डाक्यूमेंट को दूसरे से जोड़ता है। 1990-91 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इंटरनेट को जनसाधारण को उपयोग के लिए उपलब्ध कराया गया।

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