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सोमवार

रेडियो के मजबूत और कमजोर पक्ष (Strengths and Weaknesses of Radio)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 04, 2025    

रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो 20वीं सदी की शुरुआत से ही सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत रहा है। इसकी सादगी, व्यापक पहुँच और कम लागत ने इसे विश्व भर में लोकप्रिय बनाया है। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अन्य आधुनिक संचार माध्यमों की पहुँच सीमित है। भारत जैसे देश में जहाँ विविधता भरी आबादी और भौगोलिक चुनौतियाँ हैं, रेडियो ने सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन, डिजिटल युग में इंटरनेट, टीवी, और स्मार्टफोन के बढ़ते प्रभाव के कारण रेडियो को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी, रेडियो के मजबूत एवं कमजोर पक्ष निम्नलिखित हैं:-

  • मजबूत पक्ष  (Strengths)

  1. विस्तृत पहुँच: रेडियो की सबसे बड़ी ताकत इसकी व्यापक पहुँच है। यह उन क्षेत्रों में भी प्रभावी है जहाँ इंटरनेट, टेलीविजन या बिजली की सुविधा सीमित है। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जहाँ स्मार्टफोन या ब्रॉडबैंड कनेक्शन उपलब्ध नहीं हैं, रेडियो... समाचार, मनोरंजन और जानकारी का एकमात्र स्रोत हो सकता है। उदाहरण के लिए भारत में आकाशवाणी और सामुदायिक रेडियो स्टेशन ग्रामीण समुदायों तक स्थानीय भाषाओं में जानकारी पहुँचाते हैं। रेडियो कम लागत वाले उपकरणों (जैसे ट्रांजिस्टर रेडियो) के माध्यम से हर वर्ग, आयु और शिक्षा स्तर के लोगों तक पहुँचता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो पढ़-लिख नहीं सकते, क्योंकि यह केवल श्रवण पर आधारित है। भारत के दूरदराज के गाँवों में, जहाँ साक्षरता दर कम है, वहां रेडियो के माध्यम से स्वास्थ्य, कृषि और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है।
  2. कम लागत और सुलभता: रेडियो प्रसारण और रिसीविंग डिवाइस दोनों ही अन्य संचार माध्यमों की तुलना में बहुत किफायती हैं। एक साधारण रेडियो सेट की कीमत स्मार्टफोन या टीवी की तुलना में बहुत कम होती है, और इसे बैटरी या सौर ऊर्जा से भी चलाया जा सकता है। प्रसारण की लागत भी अपेक्षाकृत कम है, जिसके कारण छोटे समुदाय भी अपने रेडियो स्टेशन शुरू कर सकते हैं। रेडियो सेट्स की कम कीमत और रखरखाव की आसानी इसे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सुलभ बनाती है। साथ ही, रेडियो प्रसारण के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता नहीं होती, जैसा कि इंटरनेट या टीवी के लिए होता है। 
  3. आपातकालीन संचार में विश्वसनीय: आपदा या संकट की स्थिति में जब बिजली, इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क बाधित हो जाते हैं, रेडियो का उपयोग विश्वसनीय संचार साधन के रूप में किया जाता है। यह त्वरित और प्रभावी ढंग से महत्वपूर्ण जानकारी (जैसे- मौसम की चेतावनी, राहत कार्यों की सूचना या सरकारी निर्देश) लोगों तक पहुँचाता है। रेडियो की बैटरी-आधारित प्रकृति और सिग्नल की व्यापक रेंज इसे प्राकृतिक आपदाओं (जैसे- बाढ़ व भूकंप) के दौरान उपयोगी बनाती है। 2004 के हिंद महासागर सुनामी या 2013 के उत्तराखंड बाढ़ के दौरान रेडियो ने लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचने और राहत कार्यों की जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  4. स्थानीय और सांस्कृतिक प्रासंगिकता: रेडियो स्थानीय भाषाओं, संस्कृति, और समुदायों की जरूरतों के अनुरूप सामग्री प्रदान करता है। सामुदायिक रेडियो स्टेशन विशेष रूप से स्थानीय मुद्दों (जैसे- कृषि तकनीक, स्वास्थ्य जागरूकता, और शिक्षा) पर ध्यान केंद्रित होते हैं। यह स्थानीय कलाकारों, संगीत और परंपराओं को बढ़ावा देने में भी मदद करता है। रेडियो स्थानीय समुदायों को उनकी भाषा और सांस्कृतिक संदर्भ में जानकारी और मनोरंजन प्रदान करता है, जिससे यह समावेशी और प्रासंगिक बनता है। हिमाचल प्रदेश में सामुदायिक रेडियो स्टेशन, जैसे ‘रेडियो नग्गर’ स्थानीय समुदायों के लिए उनकी भाषा में कार्यक्रम प्रसारित करता है।
  5. मोबिलिटी और लचीलापन: रेडियो की पोर्टेबल प्रकृति इसे एक अत्यंत लचीला माध्यम बनाती है। इसे घर, खेत, गाड़ी या यात्रा के दौरान कहीं भी सुना जा सकता है। छोटे और हल्के रेडियो सेट्स इसे आसानी से ले जाने योग्य बनाते हैं। रेडियो का उपयोग बिना किसी जटिल सेटअप के किया जा सकता है, और यह उन लोगों के लिए भी सुलभ है जो निरंतर गतिशील रहते हैं, जैसे किसान या मजदूर। ट्रक चालक लंबी यात्राओं के दौरान रेडियो पर समाचार और संगीत सुनते हैं, जो उन्हें सूचित और मनोरंजित रखता है।
  6. मनोरंजन और शिक्षा का स्रोत: रेडियो मनोरंजन (संगीत, नाटक, कहानियाँ) और शिक्षा (स्वास्थ्य जागरूकता, कृषि सलाह, सरकारी योजनाएँ) दोनों प्रदान करता है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी है जहाँ शिक्षा का स्तर कम है। रेडियो के शैक्षिक कार्यक्रम लोगों को नई जानकारी और कौशल सिखाने में मदद करते हैं, जबकि मनोरंजन कार्यक्रम तनाव कम करने और सामाजिक जुड़ाव बढ़ाने में सहायक हैं। आकाशवाणी के ‘कृषि जगत’ जैसे कार्यक्रम किसानों को मौसम, फसल प्रबंधन और नई कृषि तकनीकों की जानकारी देते हैं।
  7. वास्तविक समय की जानकारी: रेडियो तत्काल समाचार, खेल स्कोर, यातायात अपडेट और मौसम की जानकारी प्रदान करने में सक्षम है। यह इसे एक गतिशील और समयबद्ध माध्यम बनाता है। रेडियो की त्वरित प्रसारण क्षमता इसे समाचार और अपडेट के लिए एक विश्वसनीय स्रोत बनाती है। क्रिकेट मैचों के दौरान लाइव कमेंट्री या यातायात की स्थिति पर अपडेट रेडियो के माध्यम से तुरंत उपलब्ध होते हैं।

  • कमजोर पक्ष (Weaknesses)

  1. केवल श्रव्य माध्यम: इसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि रेडियो केवल श्रव्य माध्यम पर है। इसमें दृश्य तत्व (विजुअल्स) की कमी के कारण जटिल जानकारी (जैसे- ग्राफिक्स, चार्ट या वीडियो) को समझाना मुश्किल होता है। दृश्य सामग्री के बिना कुछ विषयों (वैज्ञानिक अवधारणाएँ या जटिल डेटा विश्लेषण) को समझाना कठिन होता है। एक नक्शे या ग्राफ को केवल शब्दों में वर्णन करना टीवी या इंटरनेट की तुलना में कम प्रभावी होता है।
  2. सीमित इंटरैक्टिविटी: रेडियो एकतरफा संचार माध्यम है, जिसमें श्रोताओं की तत्काल प्रतिक्रिया या भागीदारी की गुंजाइश सीमित होती है। हालांकि कुछ रेडियो स्टेशन फोन-इन प्रोग्राम या एसएमएस के माध्यम से इंटरैक्शन की सुविधा देते हैं, जो इंटरनेट या सोशल मीडिया की तुलना में बहुत कम है। श्रोताओं के पास अपनी राय व्यक्त करने या सवाल पूछने का सीमित अवसर होता है।
  3. आधुनिक माध्यमों से प्रतिस्पर्धा: इंटरनेट, टीवी और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग ने रेडियो की लोकप्रियता (खासकर शहरी क्षेत्रों में) को प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी यूट्यूब, पॉडकास्ट और लाइव स्ट्रीमिंग सेवाओं की ओर अधिक आकर्षित हो रही है। हालांकि, पॉडकास्ट की ऑन-डिमांड सेवा रेडियो के निर्धारित समय के प्रसारण से अधिक सुविधाजनक हो सकती है।
  4. सीमित कार्यक्रम प्रसारित: रेडियो पर सीमित कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। कई रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित कार्यक्रमों का दोहराव होता है। एक ही गाने को कई बार बजाया जाता है। सीमित विषयों पर बार-बार चर्चा की जाती है, जो श्रोताओं के मन में ऊबन पैदा करते हैं। प्रसारण सामग्री की कमी या दोहराव के कारण श्रोता अन्य माध्यमों की ओर आकर्षित होते हैं। 
  5. सिग्नल और तकनीकी समस्याएँ: रेडियो सिग्नल की गुणवत्ता... मौसम, भौगोलिक स्थिति या तकनीकी बाधाओं पर निर्भर करती है। पहाड़ी क्षेत्रों, घने जंगलों या दूरदराज के इलाकों में सिग्नल कमजोर हो सकता है। सिग्नल की खराब गुणवत्ता या रेंज की कमी रेडियो की प्रभावशीलता को कम हो जाती है।
  6. विज्ञापन पर निर्भरता: कई वाणिज्यिक रेडियो स्टेशन अपनी आय के लिए विज्ञापनों पर निर्भर होते हैं, जिसके कारण कार्यक्रमों के बीच बार-बार विज्ञापन प्रसारित करते हैं। यह श्रोताओं के लिए कष्टप्रद होता है। अत्यधिक विज्ञापन का प्रसारण रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और श्रोताओं के अनुभव को भी खराब करता है।
  7. पुरानी तकनीक और सीमित नवाचार: डिजिटल युग में रेडियो की पारंपरिक तकनीक (AM/FM) को कुछ हद तक पुराना माना जाने लगा है। हालांकि, डिजिटल रेडियो और इंटरनेट रेडियो ने इस कमी को कुछ हद तक दूर किया है, लेकिन ये सुविधाएँ अभी भी सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं। आधुनिक तकनीकों की तुलना में रेडियो की तकनीकी सीमाएँ इसे कम आकर्षक बनाती हैं।

निष्कर्ष

रेडियो एक सुलभ, किफायती और विश्वसनीय संचार माध्यम है, जो विशेष रूप से ग्रामीण और कम संसाधन वाले क्षेत्रों में प्रभावी है। इसकी व्यापक पहुँच, कम लागत और आपातकालीन संचार में विश्वसनीयता इसे आज भी प्रासंगिक बनाती है। हालांकि, इसकी ऑडियो-आधारित प्रकृति, सीमित इंटरैक्टिविटी और डिजिटल माध्यमों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा इसे कुछ मामलों में कम प्रभावी बनाती है।

आधुनिक युग में रेडियो की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए नवाचार आवश्यक है। डिजिटल रेडियो, इंटरनेट स्ट्रीमिंग और सामुदायिक रेडियो जैसे कदम इस दिशा में सकारात्मक हैं। यदि रेडियो बदलते समय के साथ तालमेल बिठा सके, तो यह भविष्य में भी सूचना और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना रहेगा।


रविवार

ग्रामीण श्रोता कार्यक्रम (Rural Audience Programmes)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 20, 2024    

 आकाशवाणी का एक विशेष अनुभाग ग्रामीण श्रोताओं के लिए कार्य करता है। इसके लिए आकाशवाणी के सभी केंद्रों पर खेती गृहस्थी एकांश नामक यूनिट है। इस यूनिट का कार्य अपने कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण श्रोताओं के लिए उपयोगी जानकारी पहुंचाना है। इसके लिए एकांश में कृषि के अनुभवी और प्रशिक्षित व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है। इस एकांश को अपने प्रसारण क्षेत्र में आने वाले कृषि अधिकारियों, कृषि महाविद्यालयों के विशेषज्ञों, अनुभवी किसानों आदि के माध्यम से जानकारी एकत्र कर श्रोताओं तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। यह एकांश केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा संचालित ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की विस्तारपूर्वक जानकारी भी श्रोताओं तक पहुंचाने का कार्य करता है। किसानों व ग्रामीणों के लिए गोष्ठियों का आयोजित करता है। समय-समय पर ऐसी चौपाल लगाता है, जहाँ अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ बैठकर ग्रामीण अपनी समस्याओं से अवगत कराते हैं तथा समाधान के लिए विचार-विमर्श करते हैं। इस दौरान मनोरंजक वातावरण बनाने के लिए गीत-संगीत भी बजाया जाता है। 

इनके अतिरिक्त स्टूडियो में बैठकर कृषि वैज्ञानिकों और अनुभवी किसानों से श्रोताओं द्वारा भेजे गये प्रश्नों का निराकरण करने के साथ ही उनसे साक्षात्कार के माध्यम से ही उनसे नवीन तकनीकी आदि के बारे में उपयोगी जानकारी प्राप्त की जाती है। इस एकांश के प्रसारण के अधिकतर नाम बदलते रहे। इन्हें कभी ‘चौपाल‘, कभी किसान भाइयों के लिए कभी ‘चले गांव की ओर‘ आदि नाम दिये गये। आजकल अधिकतर केन्द्र इसे खेती-गृहस्थी के नाम से प्रसारित करते रहे है।

ग्रामीण श्रोताओं के लिए तैयार प्रत्येक कार्यक्रम को अपनी पहचान के लिए एक संकेत घुन होती है, श्रव्य के रूप में श्रोताओं तक पहुँचती है। आकाशवाणी में किसानों एवं ग्रामीण वर्ग के श्रोताओं के लिए प्रसारण हेतु निश्चित कार्यक्रम के पहले प्रसारित होने वाली संकेत धुन में बैलगाड़ियों को चलने की ध्वनि का प्रवाह के साथ उस क्षेत्र की लोक धुन को सम्मिलित किया जाता है। यह धुन ग्रामीण श्रोता कार्यक्रम की पहचान है।

सन् 1965 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा कृषि और शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से खेती-गृहस्थी एकांश का प्रायोगिक तौर पर दस केन्द्रों से प्रारंभ किया गया। यह केन्द्र जालंधर, लखनऊ, कटक, रायपुर, गुना, हैदराबाद, बैंगलूर, तिरूचि, दिल्ली, पटना थे। वर्तमान में विज्ञापन सेवा केन्द्रों को छोड़कर लगभग सभी केन्द्र खेती-गृहस्थी एकांश पर काम करते हैं, जिनके कार्यक्रमों की गुणवत्ता के लिए अपेक्षित प्रसारण सामग्री का अभाव भी दिखाई देता है।

आकाशवाणी के कई केन्द्रों में जहां खेती-गृहस्थी एकांश अधिक सक्रिय है, वहीं किसी विशेष फसल के समय चक्र को ध्यान में रखकर विशेष प्रसारण श्रृंखला का आयोजन भी किया जाता रहा है। उदाहरण स्वरूप यदि गेहूं की खेती से सम्बन्धित प्रसारण की श्रृंखला प्रारंभ की जाती है, जिसमें कृषि विशेषज्ञों और कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से गेहूं की खेती के लिए भूमि की तैयारी और बुआई से लेकर कटाई व भण्डार तक संपूर्ण प्रक्रिया को श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रसारित किया जाता है।


रेडियो संगीत (Radio Music)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 20, 2024    

रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों में संगीत की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत होती है। शेष प्रसारण समाचार व उच्चारित शब्दों का होता है। संगीत प्रसारण के लिए भी समय का विभाजन है, जैसे- शास्त्रीय संगीत के लिए 30 प्रतिशत, सुगम संगीत के लिए 20 प्रतिशत, लोक संगीत के लिए 12 प्रतिशत, फिल्म संगीत के लिए 20 प्रतिशत, पाश्चात्य संगीत के लिए चार प्रतिशत और शेष अन्य के लिये। 

भारतीय संगीत की प्रतिष्ठित परंपरा के अनुसार शास्त्रीय संगीत के लिए परंपरागत प्रावधान है, जिसके तहत सुनिश्चित किया गया है कि शास्त्रीय संगीत को दिन में कब बजाया जा सकता है। रेडियो पर शास्त्रीय संगीत के प्रसारण के लिए 30 मिनट का समय सुनिश्चित किया गया है। शास्त्रीय संगीत को सजीव बनाए रखने में आकाशवाणी का महत्वपूर्ण योगदान है। आकाशवाणी में संगीत को सुरक्षित रखने और सम्मान प्रदान करने के लिए लगातार प्रयत्न होते रहे है। हिन्दुस्तानी व कर्नाटक शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहन देने के लिए 1952 से 1961 तक विभिन्न चरणों में योजनाएँ बनाकर क्रियान्वित किया गया। इसके तहत आकाशवणी के सभी केंद्रो पर स्वर परीक्षण समितियों के गठन का निर्णय लिया गया। ये समितियाँ हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत के लिए अलग-अलग बनाई गई। इनमें विशेषज्ञ संगीतकारों के साथ ही आकाशवाणी के अधिकारी को स्वर परीक्षण समिति में सम्मलित किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। स्थानीय केन्द्रों के स्वर परीक्षण के अतिरिक्त केन्द्रीय स्तर पर म्यूजिक ऑडिसन बोर्ड का गठन किया गया। यह व्यवस्था वर्तमान समय में भी लागू है। 

आकाशवाणी में शास्त्रीय संगीत का अपना महत्व है। शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत गायन और वादन से संबंधित कलाकार स्वर परीक्षण समिति के समक्ष विभिन्न राग-रागनियों पर आधारित प्रस्तुतियाँ देते है। स्वर, लय और ताल में खरे उतरने पर उन्हें योग्य घोषित किया जाता है।


बुधवार

फोन-इन कार्यक्रम (Phone-in Programmes)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 09, 2024    

रेडियो पर प्रसारित होने वाला फोन-इन कार्यक्रम श्रोताओं की भागीदारी का सर्वसुलभ कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के माध्यम से आकाशवाणी केन्द्र में बैठे विशेषज्ञ से श्रोताओं का सीधा सम्पर्क स्थापित हो जाता है और वे न केवल प्रश्न पूछ सकते हैं, बल्कि सीधी बातचीत भी कर सकते हैं। फोन इन कार्यक्रम के तहत श्रोता अपने सवालों को कार्यक्रम से थोड़ा पहले रिकार्ड करा सकते हैं। प्रश्नों को स्टूडियो में विशेषज्ञों को सुना दिया जाता है और वे जवाब दे देते हैं। इस प्रकार प्रश्न तथा उत्तर साथ-साथ प्रसारित कर दिए जाते हैं।

प्रश्नों को पूर्व में रिकार्ड कर लेने पर यह सुविधा रहती है कि हम प्रश्नों का जायजा ले सकते हैं और अनावश्यक तथा विवादास्पद अंशों को संपादित किया जा सकता है। कभी-कभी सीधे प्रश्नों में शरारती तत्त्व बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। साधारण श्रोता प्रश्न तथा उत्तर को एक साथ सुन सकता है तथा जानकारी प्राप्त कर सकता है। आजकल कुछ उपकरणों के द्वारा प्रश्नों को सीधे भी पूछा जा सकता है। पूर्व में रिकार्ड करने की आवश्यकता नहीं होती। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि वहाँ आज दूरभाष सेवाएं उपलब्ध है।

सार्वजनिक क्षेत्र के जितने भी विषय हो सकते हैं उन सभी के संबंध में फोन-इन कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। विद्युत प्रदाय, जन प्रदाय, दुग्ध प्रदाय, स्वच्छता तथा सफाई, दूरभाष सेवाएं, रेल सुविधाएं, यातायात सेवाएं, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएं, पुलिस सेवा, शिक्षा सुविधाएं, नगर निगम, आयकर विभाग, सड़क अवस्था, सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, ग्रामीण विकास, खेल सुविधाएं, नागरिक आपूर्ति, आम चुनाव, रसोई गैस आपूर्ति, प्राकृतिक आपदाएं, राहत कार्य, उद्योग-व्यापार समस्याएं, भवन-निर्माण बोर्ड, आदि विषय इसके अंतर्गत शामिल किए जा सकते हैं।

इन विषयों के अलावा जन-जागरण तथा जनचेतना संबंधी अनेक विषयों को इस कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। सहकारी संस्थानों और सार्वजनिक महत्त्व की सेवाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा इन विषयों को बार-बार उठाया जाता है। इन प्रसारणों में रेडियो माध्यम पर श्रोताओं का विश्वास बढ़ा है तथा इस माध्यम को जन समस्याओं को सुलझाने का कारगर मंच माना जा रहा है। अब रेडियो मात्र मनोरंजन का साधन नहीं है वरन् जीवन का एक अंग बन चुका है। 

पिछले कुछ वर्षों में इन्टरनेट की सुविधा के कारण माध्यमों को द्विपक्षीय बनाने में सहायता प्राप्त हुई है तथा जनता और सरकार में सीधा संवाद स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त हुई है, लेकिन निकट भविष्य में उपग्रह संचार सेवा और माईक्रोवेव की और अधिक सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण गांव तक आसानी से माध्यमों को जोड़ा जा सकेगा। कन्वर्जेस तकनीक के आने के पश्चात् अनेक माध्यमों को एक ही श्रोता से नियंत्रित किया जा सकेगा तथा प्रसारण का लाभ अधिक आसानी से उपलब्ध हो सकेगा। 

आजकल अनेक निजी प्रसारण चैनल श्रोताओं को लुभाने के लिए अनेक मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं तथा विज्ञापनों द्वारा अपना बाजार विकसित करने की चेष्टा कर रहे हैं। रेडियो अभी भी एक जनसेवा है तथा आम आदमी के विकास की, पक्षधर है। इस सेवा में यदि गुणात्मक परिवर्तन किए जाएं तो फिर से रेडियो की वापसी संभव है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी रेडियो सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है, क्योंकि यह सस्ता और सर्वसुलभ है। किसान खेत, खलिहान, कुएं या ट्यूबवेल पर बैठकर भी सुन सकता है। विद्युत आपूर्ति के अभाव में भी इस सेवा का लाभ लिया जा सकता है। निजी क्षेत्र में अनेक कम्पनियों ने एफ.एम. रेडियो प्रारम्भ किए हैं, जहां श्रोताओं के साथ दूरभाष से वार्तालाप किया जाता है तथा मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

अभी फोन-इन कार्यक्रम में अनेक सुधार हो रहे हैं तथा श्रोता अपनी पसंद के गीत तथा कार्यक्रम सुन सकते हैं। आजकल विविध भारती तथा प्राइमरी चौनल से भी ‘फोन करें गीत सुनें‘ कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है और एफ.एम. रेडियो से निरंतर फोन द्वारा श्रोताओं से संपर्क स्थापित किया जाता है। फिर भी श्रोताओं की भागीदारी बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि श्रोताओं में आत्म-विश्वास जगा है तथा गांव-खेतों में भी लोग मोबाइल लिए हुए देखे जा सकते हैं। हर श्रोता, रेडियो से प्रसारित इन कार्यक्रमों में भाग लेना चाहता है तथा अपनी भागीदारी से वह अपने आप को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझता है। फरमाइशी कार्यक्रमों का क्षेत्र भी बढ़ गया है तथा अब श्रोताओं को फरमाइश के लिए महीनों तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। अब श्रोता निष्क्रिय नहीं रहना चाहता, क्योंकि उसकी बात सुनने के लिए एक माध्यम है। रेडियो समाज में एक हेल्प लाईन का कार्य करने के लिए फिर से चर्चा में है और नए आयामों के साथ श्रोता की मांग पूरी करने में लगा है।


गुरुवार

रेडियो समाचार (Radio News)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 03, 2024    

रेडियो... आम आदमी का जन-माध्यम है। जब रेडियो पर समाचार-बुलेटिन का नियमित प्रसारण शुरू हुआ, तब ऐसा लगा की समाचार पत्र समाप्त हो जायेगें। ऐसा तो नहीं हुआ, किन्तु शहर से लेकर गांव-देहात तक अनपढ़े और कम पढ़े- लिखें व्यक्ति भी रेडियो समाचार का इंतजार करने लगे। रेडियो राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के साथ-साथ मौसम की जानकारी, दुर्घटनाएं, प्राकृतिक आपदा, कानून व्यवस्था, सरकार द्वारा समय-समय पर जारी घोषणाओं व योजनाओं, खेलकूद गतिविधियों इत्यादि की जानकारी समाचार के रूप में सम्प्रेषित करता है। 

देश-विदेश के समाचारों को देश की अधिकांश आबादी तक पहुंचाने के लिए रेडियो के पास व्यापक नेटवर्क है। रेडियो ने देश के सभी राज्यों की राजधानियों व समाचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण शहरों में पूर्णकालिक व अंशकालिक संवाददाता नियुक्त किया है, जो संकलित समाचारों को ई-मेल, मोबाइल या अन्य संचार माध्यमों की मदद से क्षेत्रीय समाचार कक्ष तक पहुँचा देते हैं। इन समाचारों को क्षेत्रीय समाचार कक्ष में संपादित कर प्रसारण योग्य बनाया जाता है। इस दौरान, राष्ट्रीय महत्व के समाचारों को राष्ट्रीय समाचार कक्ष में भेज दिया जाता है, जहां क्षेत्रीय भाषाओं के समाचारों का अनुवाद किया जाता है। रेडियो राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समाचार समितियों से भी समाचार लेता है। केंद्रीय समाचार कक्ष में समाचारों के चयन व अनुवादकों को वितरण का कार्य उप-संपादक करता है। उप-संपादक से प्राप्त समाचारों को संपादक रेडियो की आचार-संहिता के अनुसार संपादित करता है। 

आकाशवाणी पटना के समाचार संपादक संजय कुमार ने अपनी पुस्तक ‘रेडियो पत्रकारिता‘ में लिखा है कि रेडियो समाचार तैयार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है:- 

समाचार... 

  1. सीधा व सरल भाषा में हो, 
  2. कम से कम शब्दों में हो, और 
  3. वाक्य सरल और छोटे हों। 

रेडियो समाचार की संरचना 

रेडियो समाचार एक निश्चित समय सीमा के अंदर प्रसारित किया जाता है। रेडियो 10 मिनट का समाचार बुलेटिन प्रसारित कर श्रोताओं की स्मरण शक्ति को चुनौति देता है। डा. अर्जुन तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘आधुनिक पत्रकारिता‘ में लिखा है कि दस मिनट में अधिक से अधिक 11 समाचार बुलेटिन पर ही श्रोता अपना ध्यान केंद्रीत रख सकते है। 10 मिनट में 1200 से 1300 शब्दों का समाचार बुलेटिन प्रसारित किया जा सकता है। अच्छा समाचार वह होता है, जिसमें कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक सूचनाओं का समावेश हो। सामान्यतः एक रेडियो समाचार 20 से 30 शब्दों में होता है। इसी शब्द सीमा के अंदर 5W& 1H (what, why, when, where, who & how) का उल्लेख किया जाता है। रेडियो समाचार में सबसे पहले मुख्य समाचार या हेडलाइन्स होती है, जिसे प्रसारित समाचारों का निचोड कहा जाता है। इसके बाद समाचारों का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। कम महत्वपूर्ण समाचारों को स्थान नहीं मिलता है। अंत में खेलकूद से सम्बन्धित समाचार प्रसारित होता है। इस प्रकार, समाचार कक्ष में तैयार किये गये समाचारों को प्रसारित करने से पहले संपादक को समाचार निदेशक से अनुमति लेनी पड़ती है। फिर उसे प्रसारण कक्ष में भेज दिया जाता है, जहां समाचार वाचक समाचारों को माइक्रोफोन के सामने पढ़ देता है।


सोमवार

रेडियो परिचर्चा ( Radio Discussion)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 30, 2024    

रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों परिचर्चा का विशेष महत्व है, क्योंकि परिचर्चा में किसी विषय या समस्या के सभी पक्षों को सुनने के बाद निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है। परिचर्चा भी रेडियो वार्ता की तरह उच्चारित शब्दों का कार्यक्रम है, जिसे उर्दू में बहस और अंग्रेजी में Discussion कहते है। परिचर्चा को भेंटवार्ता, परिसंवाद, विचार-विनिमय, विचार-विमर्श, विचार-गोष्ठी आदि नामों से भी जाना जाता है। परिचर्चा कार्यक्रम में दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में बाचतीत करते हैं। इनमें से कोई एक संचालक (सूत्रधार) की भूमिका में होता है। संचालक विषय प्रवेश का कार्य करता है। परिचर्चा में एक-दूसरे से सवाल पूछना प्रतिबंधित होता है। सभी परिचर्चाकार एक-दूसरे की बातों को सुनते हुए अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हैं। एक-दूसरे से तर्क-वितर्क करते हैं। संचालक के कहने पर ही अपनी बात को कहना शुरू करते हैं। परिचर्चा के निष्कर्ष को संचालक कार्यक्रम के अंत व्यक्त करता है। परिचर्चा किसी विषय पर विविध पक्षों की प्रस्तुति की विधा है, जिसका प्रसारण सामान्यतः 30 मिनट का होती है। परिचर्चा किसी भी विषय पर प्रसारित की जा सकती हैं। परिचर्चा का विषय समसामयिक, प्रासंगिक, अतीत से जुड़ा हुआ या भविष्य की संभावित समस्या पर आधारित हो सकता है। परिचर्चा का लेखन से कोई संबंध नहीं है। यह बिना आलेख के आयोजित की जाती है, लेकिन परिचर्चा को विषय केे दायरे में बांधकर रखने के लिए अधिकांश परिचर्चाकार नोट्स बना लेते हैं। एक सफल परिचर्चा आयोजित करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:- 

  1. परिचर्चा के विषय का चुनाव काफी सोच-समझकर करना चाहिए। विषय में समसामयिक, प्रासंगिकता इत्यादि के होने से श्रोताओं की अभिरूचि बनी रहती है। 
  2. परिचर्चाकार विषय या क्षेत्र के विशेषज्ञ होने चाहिए। परिचर्चाकारों में सभी पक्षों का समान रूप से प्रतिनिधित्व हो। 
  3. परिचर्चा की सफलता केवल परिचर्चाकारों पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि संचालक पर भी निर्भर करती है, क्योंकि संचालक स्वयं भी परिचर्चा में भाग लेता है तथा परिचर्चाकारों के बीच संतुलन बनाने का कार्य भी करता है। 
  4. परिचर्चाकारों की भाषा सरल और सर्वग्राह्य होनी चाहिए। परिचर्चाकारों के अंदर दूसरों की बातों को ध्यान से सुनने का गुण भी हो। संचालक के अनुमति के बगैर किसी भी परिचर्चाकार को नहीं बोलना चाहिए। 
  5. रेडियो परिचर्चा का मुख्य उद्देश्य श्रोताओं को शिक्षित करना होता है। अतः परिचर्चा का विषय तथा परिचर्चाकार उद्देश्य के अनुकूल होना चाहिए। 
  6. परिचर्चा में हास्य-व्यंग्य का विशेष महत्त्व होता है। 10 मिनट बाद परिचर्चा की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है, जिससे उसकी रोचकता कम होने लगती है। ऐसे अवसर पर हास्य-व्यंग्य से नई स्फूर्ति आती है। हालांकि हास्य-व्यंग्य एक सीमा तक ही होनी चाहिए। 
  7. परिचर्चा की रिकॉर्डिंग तकनीकी दृष्टि से उच्चस्तरीय होनी चाहिए। रिकॉर्डिंग से पूर्व परिचर्चा के सभी प्रतिभागी मिल बैठकर परिचर्चा के स्वरूप पर विचार कर लेनी चाहिए। इससे संचालक को अपना कार्य करने में काफी सहुलियत मिलती है।


रविवार

रेडियो वार्त्ता (Radio Talk)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 22, 2024    

 रेडियो संचार का सर्व सुलभ तथा सबसे सस्ता माध्यम है। इस पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों रूपरेखा  तीन माह के लिए बनाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक साल का कार्यक्रम चार तिमाही खण्डों  में विभाजित होता है। जैसे- जनवरी से मार्च, अप्रैल से जून, जुलाई से सितम्बर और अक्तूबर से दिसम्बर।  किसी भी तिमाही खण्ड के दौरान प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से सम्बन्धित कार्य योजना की तैयारी  लगभग डेढ़ माह पूर्व शुरू कर दी जाती है, जिससे कार्यक्रम निर्माण से सम्बन्धित व्यक्तियों, कलाकारों आदि के साथ समय से अनुबन्ध हो सके। रेडियो पर समसामयिक विषयों पर वार्ता, परिचर्चा, समाचार, लाइव कमेंट्री, नाटक, संगीत, परिवार कल्याण, फोन-इन कार्यक्रम, ग्रामीण श्रोता कार्यक्रम, युवाओं, महिलाओं, किसानों ओर सैनिकों के लिए कार्यक्रम इत्यादि का प्रसारण किया जाता है।  

वार्त्ता (Talk)

 रेडियो प्रसारण की महत्वपूर्ण विधा है- वार्त्ता है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘वृतांत‘ या ‘बातचीत’ होता है। वार्ता को अंग्रेजी में Talk  कहते हैं। सामान्यतः जब दो लोग आपस में बातचीत करते हैं तो उसे वार्ता कहा जाता है, लेकिन रेडिया वार्ता एक पक्षीय होता है। 1927 में जब रेडियो का प्रसारण प्रारंभ हुआ, तब आकाशवाणी के बम्बई केंद्र से 23 वार्ताओं का प्रसारण हुआ। इनमें सात भारतीय भाषाओं के थे, शेष अन्य अंग्रेजी भाषा के।  रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में वार्त्ता को सबसे सरल फारमेंट माना जाता है, क्योंकि इसमें  एक ही व्यक्ति अपने विचारों को रखता है। रेडियो वार्ता का दूसरा पक्ष श्रोता होता है, जो वार्ताकार की  बातों को सुनता है। रेडियो वार्त्ता की सफलता में वार्त्ताकार पर निर्भर करती है, क्योंकि उसे अपनी वार्ता से श्रोताओं के मन में स्वयं के साथ वार्त्ता करने का भाव उत्पन्न करना पड़ता है, जो सामान्य कार्य नहीं है। इसके लिए वार्त्ताकार को भाषा-शैली और वाक्य संरचना पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। अधिकांश लोग समाचार-पत्र लेखन और रेडिया लेखन को एक ही मानते हैं, जबकि दोनों में उतना ही बड़ा अंतर होता है, जितना पढ़ने और बोलने में है। रेडियो पर प्रसारित होने वाले वार्ता का सीधा सम्बन्ध श्रोता से होता है। 


स्टूडियो में बैठा वार्त्ताकार माइक्रोफोन से सामने अपनी वार्ता को वैसे पढ़ता है जैसे वह श्रोता के सामने बैठा हो। यह भाव उत्पन्न करने में वार्त्ताकार कामयाब होता है तो वार्त्ता को सफल माना जाना है। रेडियो वार्ता को स्पोकन वर्ड कहा जाता है। वार्ता का आलेख तैयार करते समय भाषा शैली का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। वार्त्ता की भाषा शैली श्रोता समुदाय के अनुरूप होती है। सामान्यतः वार्ता  में सरल, प्रचलित और कर्णप्रिय शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 


रेडियो वार्त्ता निम्न प्रकार के होते हैं :- 

  1. सूचनात्मक वार्त्ता : विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, खेल, ज्योतिषशास्त्र, खगोलशास्त्र आदि विषयों पर आधारित वार्ता सूचनानात्मक वार्ता की श्रेणी में आते हैं। 
  2. ज्ञानात्मक वार्त्ता : जब अनुभवी वैज्ञानिक, इतिहासकार, खगोलशास्त्री, अर्थशास्त्री आदि विवेचना प्रस्तुत करते हैं, तब निश्चय ही वह मात्र सूचनाओं का संग्रह नही होता अपितु ये वार्ताएं श्रोताओं की तर्कशक्ति, सोच और विश्लेषण को भी प्रभावित करती है। ऐसी वार्ताओं को ज्ञानात्मक वार्ता कहा जाता है। 
  3. साहित्यिक वार्त्ता : जब किसी साहित्यिक विषय को अपनी विशेष शैली में वार्ताकार अपनी बात कहता है तो वह साहित्यिक वार्ता कहलाती है। इस वार्ता में साहित्यिक भाषा तथा सटीक शब्दों का चयन अनिवार्य शर्त है। इनकी भाषा सारगर्भित, सहज तथा सुगम होनी चाहिए। 
  4. व्यंग्यात्मक वार्त्ता : रेडियो की आचार संहिता के अनुसार किसी व्यक्ति, संगठन, समुदाय, धर्म या जाति पर सीधे प्रहार नहीं किया जा सकता। किन्तु परोक्ष रूप से किसी का नाम लिए बिना व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें अक्सर सामाजिक वर्जनाओं, राजनैतिक फूहड़पन तथा पाखंड का पर्दाफाश करने के लिए कटाक्ष से भरे वाक्यों, व्यग्यों तथा मुहावरों आदि का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। 

डा. सुरेश यादव ने अपनी पुस्तक "प्रसारण पत्रकारिता" में लिखा है कि- प्रारंभिक प्रसारण के दिनों  में आकाशवाणी से वार्ता का प्रसारण सुनिश्चित किया गया। इसका परिभाषिक स्वरूप न तो निबन्ध के समरूप था और न किसी साहित्यिक स्वरूप की सीमा में बंधता था। श्रोताओं से बतियाना, बोलचाल व बातचीत करना यहीं इसका परिभाषिक स्वरूप था।  


रेडियो पर वार्त्ता प्रसारण के लिए 15 मिनट का समय निर्धारित किया गया है। वर्तमान समय में लघु वार्त्ता का भी प्रचलन आ गया है। इसके अंतर्गत किसी भी विषय में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जाती है। लघु वार्त्ता का प्रसारण आकाशवाणी के लगभग सभी केंद्र करते हैं। इसका प्रसारण कहीं चिंतन के नाम से किया जाता है तो कहीं प्रभात किरण के नाम से, तो कहीं आज का विचार शीर्षक से। वार्त्ता की सफलता के लिए वार्त्ता के विषय का चयन का सोच-समझकर तथा आपस में विचार-विमर्श के बाद किया जाता है। इसके बाद वार्ताकार का चुनाव किया जाता है। वार्तकार का चुनाव करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि सम्बन्धित व्यक्ति विषय विशेषज्ञ होने के साथ-साथ शब्द कोष का धनी और निष्पक्ष भी हो। उसके अंदर अपने शब्दों से श्रोताओं को बांधकर रखने का गुण भी हो। 


सामान्यतः रेडियो वार्ता के मुख्यतः तीन अंश होते हैं। पहला- अग्रांश, दूसरा-मध्यांश और, तीसरा- उपसंहार। अंग्राश वार्त्ता का प्राणतत्व होता है। इसे प्रस्तावना भी कहा जाता है। एक सफल वार्त्ता की प्रस्तावना आकर्षक होने के साथ-साथ श्रोताओं को बांधे रखने में सक्षम होती है। वार्त्ता के अग्रांश भाग में श्रोता के मन में उत्सुकता उत्पन्न करने की क्षमता होती है। अग्रांश भाग में ही विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रमुख बातों व सूचनाओं को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत कर दिया जाता है। 


मध्यांश में पूरी वार्त्ता का सम्पूर्ण कलेवर प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही श्रोता के मन में उत्पन्न जिज्ञासा को शांति करने का प्रयास किया जाता है। वार्त्ता को आगे बढ़ाते समय श्रोताओं की अभिरूचि को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है। तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत वार्त्ता में पुष्टिकरण की समस्या का स्वतः ही समाधान हो जाता है। तथ्यों का प्रस्तुतिकरण बड़े ही आकर्षक एवं रोचक तरीके से किया जाता है, जिसका उद्देश्य वार्त्ता को बोझिल व नीरस होने से बचाना है।   


वार्ता का उपसंहार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसे वार्ता का सारतत्व भी कहा जाता है। उपसंचार में पूरी वार्त्ता के निचोड़ को कम-से-कम शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है। 

मंगलवार

रेडियो की विशेषताएं (Characteristics of Radio)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 10, 2024    

 रेडियो संचार का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है, जिसके कार्यक्रमों को सस्ते रिसीवर या मोबाइल फोन की सहायता से कहीं भी सुना जा सकता है।


रेडियो की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-

  1. निरक्षर व्यक्तियों के लिए वरदान : रेडियो निरक्षर व्यक्तियों के लिए वरदान हैं, क्योंकि इस पर प्रसारित कार्यक्रमों को सुनने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों का जितना पढ़े-लिखे श्रोताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, उतना ही अनपढ़ या निरक्षर व्यक्तियों के लिए भी। इसके कार्यक्रमों का प्रभाव सभी पर समान रूप से पड़ता है।
  2. घटनाओं का सटीक शाब्दिक चित्रण : रेडियो किसी भी कार्यक्रम का शब्दों में सटिक चित्रण करता है। इसके उदाहरण के रूप में दिल्ली के गणतंत्र दिवस परेड को ले सकते हैं। रेडियो पर गणतंत्र दिवस परेड का आँखों देखा हाल शब्दों में सुनाया जाता है। जब श्रोता रेडियो पर देशभक्ति धुन व बैण्ड के साथ सैनिकों के मार्चपास्ट के दौरान कमाण्ड सुनते हैं तो उनके मन में राष्ट्रभक्ति का भाव और गणतंत्र दिवस परेड का दृश्य स्वतः आ जाता है।
  3. कार्यक्रम प्रसारण की गति : रेडियो संचार का सबसे तेज माध्यम है। इस पर प्रसारित कार्यक्रम देश के अलग-अलग क्षेत्रों में बैठे श्रोताओं के पास लगभग एक समान समय में पहुंचता है। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रोता देश की राजधानी दिल्ली का हो या हिमाचल के सुदूर क्षेत्र कुल्लू-मनाली का। सभी के पास रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रम लगभग एक ही समय में पहुंचता है।
  4. सरल तकनीकी वाला माध्यम : रेडियो सरल तकनीकी वाला माध्यम है। इसे कम पढ़े लिखे या अनपढ़ व्यक्ति भी आसानी से संचालित कर लेते हैं। परम्परागत रेडियो सेट हो या मोबाइल में एप्प संचालित रेडियो, सभी सरल प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जिसके चलते श्रोता आसानी से ऑपरेट कर लेते हैं।
  5. सस्ता माध्यम : रेडियो संचार का सबसे सस्ता माध्यम है। इस पर प्रसारित कार्यक्रमों को सुनने के लिए 100-200 रूपये में रेडियो सेट खरीदा जा सकता है। वर्तमान समय में लगभग सभी मोबाइल फोन में रेडियो सुनने की सुविधा फ्री में उपलब्ध है।
  6. कम लागत में कार्यक्रम निर्माण : रेडियो संचार का श्रव्य माध्यम है, जिसके कार्यक्रमों को श्रोता सुनते है। ऐसे में रेडियो कार्यक्रमों का निर्माण भी काफी कम लागत में हो जाता है। रेडियो कार्यक्रम तैयार करने के लिए भारी भरकम सेट, श्रृंगार व वेशभूषा इत्यादि की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  7. बिजली की जरूरत नहीं : रेडियो बजाने के लिए टेलीविजन की तरह बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे ड्राई बैटरी की सहायता से चलाया जा सकता है।
  8. पोर्टेबल माध्यम : रेडियो पोर्टेबल माध्यम है। इसे अपनी सुविधानुसार कहीं भी ले जाया जा सकता है, जबकि टेलीविजन में यह सुविधा नहीं होती है। आजकल चलती कार में रेडियो कार्यक्रम सुनने का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों को चलती कार में सुनना अन्य माध्यमों की अपेक्षा काफी आसान है।

सोमवार

भारत में रेडियो का विकास (Development of Radio in India)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 09, 2024    

 भारत में रेडियो का प्रसारण अगस्त 1921 में तब हुआ, जब तत्कालीन गर्वनर जनरल जार्ज लायड के आग्रह पर टाइम्स ऑफ इंडिया और पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ विभाग ने बम्बई (अब मुम्बई) में संगीत कार्यक्रम का प्रसारण किया। 1926 में कुछ व्यक्तिगत रेडियो क्लबों द्वारा प्रसारण कम्पनी गठित करके बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में प्रसारण सेवा को प्रारंभ किया गया। इन क्लबों ने मारकोनी कम्पनी का ट्रांसमीटर लगा था। 23 जुलाई, 1927 को बम्बई केंद्र का उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया। इसके कुछ सप्ताह बाद 26 अगस्त, 1927 को कलकत्ता (अब कोलकाता) केंद्र का शुभारंभ तत्कालीन गर्वनर स्टेनली जैक्सन ने किया, जिस पर पहला समाचार बुलेटिन प्रसारित किया गया।

भारत सरकार ने 1930 में प्रसारण सेवा का प्रबंधन अपने हाथों में ले लिया और ‘इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस’ (आईएसबीसी) की स्थापना की। इसके प्रथम महानिदेशक लियोनेल फील्डेन थे। एक जनवरी, 1936 को दिल्ली में प्रसारण केंद्र स्थापित हुआ। 8 जून, 1936 में इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी का नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया रेडियो’ कर दिया गया। 1935 में तत्कालीन देशी रियासत मैसूर में ‘आकाशवाणी’ नाम से स्वतंत्र रेडियो स्टेशन संचालित हो रहा था। 1938 में कलकत्ता के शॉर्ट वेब प्रसारण के उद्घाटन अवसर पर कवि रवींद्र नाथ टैगोर ने आकाशवाणी नामक कविता का पाठ किया। 1946 में सरदार बल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने, तब आकाशवाणी के विस्तार की योजना बनी। इसी योजना के परिणाम स्वरूप 1950 तक ऑल इंडिया रेडियो से प्रसारित प्रोग्रामों की अवधि 60 हजार घंटे प्रति वर्ष हो गयी।

भारत विभाजन के समय देश में कुल नौ रेडियो प्रसारण केंद्र थे। लाहौर, पेशावर और ढाका केंद्रों के पाकिस्तान में चले जाने के बाद भारत के पास मात्र छह केंद्र- बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, मद्रास, तिरूचि और लखनऊ रह गये थे। 1950 तक देश में 21 रेडियो केंद्र स्थापित हो चुके थे। 1952 में ऑल इंडिया रेडियो द्वारा संगीत का अखिल भारतीय कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। 25 जनवरी, 1956 को प्रथम अखिल भारतीय कवि सम्मेलन प्रसारित हुआ। 1957 में भारत सरकार ने रेडियो के राष्ट्रीय प्रसारण के लिए ‘आकाशवाणी’ का नाम दिया गया। इसी साल रेडियो पर व्यावसायिक प्रसारण के उद्देश्य से विविध भारती सेवा प्रारंभ की गई। 1964 में आकाशवाणी के कार्यक्रमों की समीक्षा हेतु चंद्रा कमेटी का गठन किया गया, जिसने ‘रेडियो एण्ड ट ेलीविजन रिपोर्ट ऑफ द कमेटी ऑन ब्रॉडकास्टिंग एण्ड इन्फॉमेशन मीडिया-1966 के नाम से अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया। इसमें रेडियो और टेलीविजन के लिए स्वायत्त निगम की सिफारिश की गयी थी। 1965 में 10 केंद्रो से कृषि प्रसारण प्रारंभ हुआ। 1967 से ऑल इंडिया रेडियो व्यावसायिक बना। 1969 में सामुदायिक श्रोता योजना प्रारंभ की गयी। 1971 से युववाणी कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। सर्वप्रथम चुनाव बुलेटिन का प्रसारण 1977 में हुआ। जुलाई 1977 में एफ.एम. (फ्रीक्वेन्सी मॉड्यूलेशन) ट्रांसमीटर चालू होने से आकाशवाणी को एक नई दिशा मिली।

1978 में नियुक्त वर्गीज समिति ने आकाशवाणी की स्वायत्तता पर जोर देकर एक महत्वपूर्ण मार्ग खोला। 18 मई 1988 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा रात्रिकालीन आकाशवाणी राष्ट्रीय प्रसारण सेवा राष्ट्र को समर्पित की गयी। 1993 में 18 घंटा प्रसारण के साथ आकाशवाणी की एफ.एम. सेवा प्रारंभ हुई। अगस्त 1993 में आकाशवाणी ने अपना एक अलग हिन्दी प्रभाग, समाचार और सूचना संग्रहण के लिए प्रारंभ किया। एक अप्रैल, 1994 से प्रारंभ स्काई रेडियो कार्यक्रम ने आकाशवाणी जगत में नई हलचल मचा दी। आकाशवाणी ने भू-स्थिर संचार उपग्रह इन्सेट-2बी की सहायता से अपने कार्यक्रमों का प्रसारण आरंभ किया, जिसे अन्य केंद्रों की मदद से पूरे देश में सुना जाने लगा। 14 फरवरी, 1995 से दिल्ली में 24 घंटे का एफ.एम. प्रसारण प्रारंभ हुआ। 15 अगस्त, 1997 से प्रसार भारती बिल पारित होने से रेडियो के विकास में नवीन चेतना आयी। 1998 में रेडियो की वेबसाइट लांच हुई। एक सितंबर, 2001 को दिल्ली में एफ.एम. गोल्ड का प्रसारण प्रारंभ हुआ। मई 2008 से आल इंडिया र ेडियो की न्यूज ऑन सेवा दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, हैदराबाद, पटना, अहमदाबाद, बंगलूरू, त्रिवेंद्रम, जयपुर, लखनऊ, रायपुर, गुवाहाटी और शिमला समेत 14 स्टेशनों पर उपलब्ध है। वर्तमान समय में रेडियो स्टेशनों की संख्या 80 से अधिक हो गई है, जिनके कार्यक्रमों में आम जनता की भागदारी बढ़ी है।


रविवार

रेडियो (Radio)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 08, 2024    

 रेडियो संचार का श्रव्य माध्यम है, जिसमें अदृश्य विद्युत चुंबकीय तरंगों द्वारा संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन को प्रसारित करने वाले इस माध्यम ने सम्पूर्ण जगत को अपनी परिधि में ले लिया है। जवरीमल्ल पारिख के अनुसार- रेडियो निरक्षरों के लिए वरदान है जिसके द्वारा सुनकर सिर्फ सुनकर अधिक से अधिक सूचना, ज्ञान और मनोरंजन हासिल किया जा सकता है।

रेडियो का विकास (Development of Radio)

ध्वनि सम्प्रेषित करने वाले समस्त माध्यमों का प्रमुख आधार है- रेडियो... लेकिन इसका अपना कोई प्रतिबिम्ब नहीं है। इसे सिर्फ सुना जा सकता है। इटली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर गुगलियामों मारकोनी ने 1895 में बेतार से संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ‘इलेक्ट्रो-मैग्नेटिव’ की सहायता से भेजने की पद्धति का आविष्कार किया, जिसकी मदद से एक मील की दूरी तक रेडियो संचार स्थापित करने में सफलता मिली। उन्हीं दिनों गुलाम भारत में जगदीश चंद्र बसु भी इस क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन उनके पास अपने आविष्कार को अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने की सुविधा मारकोनी की तरह नहीं थी। 1896 में मारकोनी ने ब्रिटेन में ‘मारकोनीज वायरलेस टेलीग्राफ’ नामक कम्पनी स्थापित कर आगे का काम किया। इसके एक साल बाद 1896 में अटलाण्टिक महासागर के तट से समुद्र में स्थित एक जहाज पर पहला रेडियो संदेश भेजने में कामयाबी मिली। 1909 में मारकोनी को ‘भौतिकी का नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव-परिणाम को एक समाचार के रूप में रेडियो से प्रसारित किया गया। इससे एक ओर जहां लोगों को एक जनमाध्यम के रूप में रेडियो का एहसास होने लगा, वहीं समुद्री तूफान में फंसे नाविक अपनी सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए रेडियो का उपयोग करने लगे।

इस संदर्भ में टाइटैनिक से जुड़ी एक घटना काफी दिलचस्प है। 1910 में अमेरीकी कांग्रेस ने एक कानून बनाया, जिसके तहत यात्री जहाजों में रेडियो उपकरण व ऑपरेटर का उपयोग अनिवार्य कर दिया। यह कानून बनने के मात्र दो साल बाद जब टाइटैनिक जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया, तब यात्रियों ने जहाज में लगे रेडियो के माध्यम से सुरक्षा की गुहार लगायी। डूबते टाइटैनिक जहाज से आ रहे संदेश को वायरलेस ऑपरेटर डेविड सारनौफ ने सुना। इसके बाद 700 से अधिक यात्रियों की जान बचाई जा सकी।

1919 में अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक तथा अमेरिकन टेलीफोन और टेलीग्राफ कम्पनी ने मिलकर रेडियो-कॉरपोरेशन ऑफ अमेरिका (आरसीए) नामक कम्पनी स्थापित किया। इसके प्रथम व्यवस्थापक डेविड सारनौफ थे, जो करीब 40 साल तक रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में एक नायक के रूप में विद्यमान्य रहे। इसके बाद कई समाचार पत्रों ने अपने समाचारों को प्रसारित करने के लिए रेडियो स्टेशन स्थापित किया। यह सिलसिला 1926 तक चलता रहा। उस वर्ष अमेरिका में आरसीए जैसी दो अन्य कम्पनियां नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी (एनबीसी) और कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिटम (सीबीएस) स्थापित हुई। इन दोनों कम्पनियों ने समुद्र के एक तट से दूसरे तट तक रेडियो प्रसारण का कार्य प्रारंभ किया।

1927 में अमेरिका में ‘फेरडल रेडियो-कमीशन’ नामक संस्था स्थापित की गयी, जिसका विशेष उत्तरदायित्व यह था कि रेडियो-स्टेशनों की बढ़ती संख्या के लिए चैनल यानी... गगन-मण्डल में इलेक्ट्रो-मैग्नेटिव तरंगों के संकेतों के वितरण की व्यवस्था करें। फेडरल रेडियो-कमीशन को बाद में ‘फेडरल कम्युनिकेशन-कमीशन’ में परिवर्तित कर दिया गया, जिसके माध्यम से अमेरिकी सरकार रेडियो तथा टेेलीविजन-स्टेशनों को नियंत्रित करती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रण का कार्य ‘इण्टरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन’ नामक संस्था करती है। इसका कार्यालय जिनेवा में है।

1922 में ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) स्थापित हुआ, जो ब्रिटिश सरकार का एक निगम है। बीबीसी को विश्व की सबसे पुरानी, प्रतिष्ठित और शायद सर्वाधिक बहुचर्चित रेडियो स्टेशन होने का गौरव प्राप्त है। इसके प्रथम महानिदेशक लॉर्ड रीथ थे, जो असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने बीबीसी को जो स्वरूप दिया, वह लगभग 40 साल तक अपरिवर्तनीय रहा। यहीं कारण है कि ब्रिटेन के कुछ नौजवान बीबीसी को ‘ओल्ड मेड’ कहकर पुकारने लगे। अंग्रेजों के लिए बीबीसी में रीथ द्वारा स्थापित परम्परा, मान्यता और उत्कृष्टता गौरव की बात थी। इसका अर्थ यह नहीं है कि बीबीसी ने प्रयोगशीलता की ओर कदम नहीं बढ़ाया। ब्रिटेन के साहित्य, स्टेज, संगीत इत्यादि में जैसे-जैसे प्रयोगशीलता आती गयी, वैसे-वैसे निर्माताओं, लेखकों आदि ने क्रमशः बीबीसी की प्रेरणाओं में परिवर्तन लाने का कार्य किया। बीबीसी की उत्कृष्ट तकनीक तथा प्रेरणाओं का प्रभाव कई देशों पर पड़ा, जिनमें भारत भी शामिल है।


बुधवार

भारत में निजी एफएम चैनलों का विस्तार (Growth of private FM channels in India)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 14, 2024    

 भारत सरकार ने 1999 में एफएम रेडियो नेटवर्क को विस्तार देने के लिए निजी कम्पनियों को लाइसेंस देने का निर्णय लिया, जिसका एक अन्य उद्देश्य स्थानीय स्थानीय महत्व के कार्यक्रमों को प्रमुखता से प्रसारित करना, स्थानीय प्रतिभाओं को उचित मंच उपलब्ध कराना और सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी करना था।


एफएम रेडियो के विस्तार के प्रथम चरण में लाइसेंस देने के लिए निजी कम्पनियों को खुली नीलामी में बोली लगाने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसके चलते आशानुरूप परिणाम नहीं मिलें। इसके बाद, भारत सरकार ने 24 जुलाई 2003 को भारतीय उद्योग और वाणिज्य मंडल परिसंघ (फिक्की) के महासचिव डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी को प्रथम चरण के नीति की समीक्षा करने तथा निजी एफएम रेडियों प्रसारण के दूसरे चरण के लिए सिफारिशें करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। समिति को दूसरे चरण के लिए प्रथम चरण की नीति में बदलाव करने की सिफारिशें की।

मित्रा कमेटी की सिफारिशों को आम जनता और विशेषज्ञों की टिप्पणी के साथ जांच व सलाह के लिए भारतीय दूससंचार विनियामक प्राधिकरण को भेजा गया। एफएम रेडियों के विस्तार के लिए 30 जून, 2005 को नई नीति को मंजूरी दी गयी, जिसकी अधिसूचना 13 जुलाई 2005 को जारी किया गया। इस नीति के अनुसार भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत कंपनिया बोली लगाने और एफएम चैनल शुरू करने की अनुमति लेने की पात्र होंगी। कंपनियों के पास प्रत्येक श्रेणी के शहर के लिए पर्याप्त नेटवर्क होना चाहिए। दूसरे चरण में 337 निजी एफएम रेडियो को बोली लगाने के लिए रखा गया। इनमें 280 के लिए सफलतापूर्वक बोलियाँ लगायी गयीं। जाँच पड़ताल के बाद 245 चैनलों को चलाने के लिए विभिन्न कंपनियों को अनुमति प्रदान की गई।  

2006-07 के दौरान सरकार ने 90 चैनलों से लाइसेंस के रूप में 35 करोड़ रूपये का कुल राजस्व अर्जित किया। वित्त वर्ष 2007-08 में सरकार को दिसम्बर 2007 तक चालू हुए 149 चौनलों से लाइसेंस शुल्क के रूप में 24.71 करोड़ रूपये मिले। 48 शहरों में 97 चैनलों को शुरू करने के लिए 35 कंपनियों ने बोली लगायी। निजी क्षेत्र की प्रमुख एफएम रेडियो चैनल निम्नलिखित हैं:-

1. रेडियो मिर्ची:यह भारत का पहला निजी स्वामित्व वाला रेडियो स्टेशन है, जिसके स्टेशन न केवल भारत में, बल्कि यूएई और कतर में भी एफएम रेडियो संचालित करती है। रेडियो मिर्ची की टैगलाइन है- ‘मिर्ची सुनेवाले ऑलवेज़ खुश’। रेडियो मिर्ची की शुरूआत 1993 में हुई। तब भारत में एक मात्र रेडियो प्रसारक ऑल इंडिया रेडिया था। इसका स्वामित्व ‘एंटरटेनमेंट नेटवर्क इंडिया लिमिटेड’ (द टाइम्स ग्रुप की सहायक कंपनी) के पास है, जो दिल्ली, मुंबई समेत देश के 8 प्रमुख महानगरों में एफएम रेडियों संचालित करती है। रेडियो मिर्ची को 98.3 आवृत्ति पर सुना जा सकता है।

2. फीवर 104 एफएम: फीवर 104 एफएम निजी चैनल है, जो दिल्ली, मुंबई और चेन्नई समेत देश के 13 शहरों में समकालीन सुपरहीट फिल्मी संगीत प्रसारित करता है। फीवर 104 एफएम बॉलीवुड की कई फिल्मों का पार्टनर रहा है।

3. माई एफएम: माय एफएम देश का संचालन दैनिक भास्कर ग्रुप करता है, जिसका श्रोता देश का युवां वर्ग है। इनकी टैगलाइन ‘जियो दिल से’ श्रोताओं को अपना जीवन पूरी तरह से जीने के लिए प्रोत्साहित करती है। माई एफएम रेडियों को 2006 में लॉन्च किया गया, जो नेटवर्क सात राज्यों के प्रमुख शहरों तक फैला हुआ है। वर्तमान में 94.3 आवृत्ति पर माई एफएम को चंडीगढ़, जयपुर, अहमदाबाद, अमृतसर, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जालंधर, उदयपुर और अन्य स्थानों पर सुना जा सकता है।

4. रेडियो सिटी: यह भारत का प्रमुख निजी एफएम रेडियो स्टेशन है, जिसकी शुरूआत 3 जुलाई 2001 को बेंगलुरु में की गई। वर्तमान समय में इसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, केरल में सुना जा सकता है। इसके कार्यक्रम में हिंदी और क्षेत्रीय संगीत का मिश्रण होता है। 2010 में रेडियो सिटी ने अपना इंटरनेट रेडियो स्टेशन ‘रेडियो सिटी फन’ नाम से लॉन्च किया। इसके 18 ऑनलाइन रेडियो स्टेशन हैं। इसने अपने श्रोताओं के बीच गायन प्रतिभा की खोज के लिए 2011 में एक गायन प्रतिभा खोज ‘रेडियो सिटी सुपर सिंगर’ भी शुरू की। रेडियो सिटी को आवृत्ति- 91.1 पर सुना जा सकता है।

5. बिग एफएम: यह भारत का एक राष्ट्रीय निजी रेडियो स्टेशन है, जिसका स्वामित्व और संचालन अनिल अंबानी के पास है। गैर-मेट्रो शहरों में यह चैनल सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक कार्यक्रम प्रसारित करता है, जबकि महानगरीय शहरों में यह 24/7 चालू रहता है। बिग एफएम देश भर के 50 से अधिक शहरों में मौजूद है। इसके श्रोताओं की संभावित संख्या 450 मिलियन से अधिक है। यह मुख्य रूप से स्थानीय भाषा की फिल्मों का संगीत बजाता है। कभी-कभी पश्चिमी संगीत भी बजाया जाता है। बिग एफएम को आवृत्ति- 92.7 पर सुना जा सकता है।

6. रेड एफएम: यह देश का प्रमुख निजी एफएम रेडियो नेटवर्क है, जो देश के 57 शहरों में अपनी सेवा प्रदान करता है। रेड एफएम का मुख्यालय चेन्नई में है। इसका स्वामित्व चेन्नई के मीडिया समूह ‘सन’ ग्रुप के पास है। रेड एफएम नेटवर्क हिंदी, बंगाली, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम सहित विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित करता है। इसे तमिलनाडु में सूर्यन एफएम के नाम से जाना जाता है, जबकि देश के अन्य हिस्सों में रेड एफएम। इसे 93.5 आवृत्ति पर सुना जा सकता है।

7. रेडियो इंडिगो: यह भारत का पहला और सबसे लंबे समय तक चलने वाला अंतर्राष्ट्रीय रेडियो नेटवर्क है, जो बैंगलोर और गोवा में सेवा प्रदान करता है। यह चैनल एशियानेट न्यूज़ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड का एक हिस्सा है। लिमिटेड जिसका स्वामित्व भारतीय जनता पार्टी के संसद सदस्य राजीव चन्द्रशेखर के पास है। अंतर्राष्ट्रीय संगीत के विविध संग्रह के साथ इंडिगो 2006 में भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय संगीत रेडियो स्टेशन बनकर उभरा। इसे आवृत्ति- 91.9 पर सुना जा सकता है।

8. इश्क एफएम: इश्क एफएम को पहले मेव एफएम और ओएई एफएम के नाम से जाना जाता था। यह इंडिया टुडे ग्रुप का हिस्सा है, जो दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों में संगीत प्रसारित करता है। इसे शुरुआत में मेव एफएम के रूप में लॉन्च किया गया था, जो दिल्ली, इंदौर, मुंबई और कोलकाता में एक टॉक-आधारित चैनल था। इसका वर्तमान नाम इश्क एफएम हो गया। इसे आवृत्ति- 104.8 पर सुना जा सकता है।

9. रेडियो वन: यह वर्तमान में एचटी मीडिया प्राइवेट के स्वामित्व में है। रेडियो वन भारत में एक वाणिज्यिक रेडियो नेटवर्क है, जिसे 18 सितंबर 2007 को लॉन्च किया गया था। यह 7 प्रमुख शहरो- कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, अहमदाबाद, पुणे और बैंगलोर में संचालित होता है। यह एचटी मीडिया के स्वामित्व वाले तीन रेडियो स्टेशनों में से एक है। अन्य फीवर 104 एफएम और रेडियो नशा हैं। 


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