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मंगलवार

विज्ञापन प्रक्रिया (Process of advertising)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 15, 2025    

 भारत में विज्ञापन व्यवसाय का विकास स्वतंत्रता के बाद हुआ है। यह एक सृजनात्मक व्यवसाय है, जिसको अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए समय के साथ आरंभ और अन्त करना पड़ता है। एक व्यवसाय के रूप में विज्ञापन को संचालित करने में विज्ञापन एजेंसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विज्ञापन एजेंसी, विज्ञापन व्यवसाय में दक्ष व्यक्तियों का संगठन है जो विज्ञापन का निर्माण, वितरण, विज्ञापन अभियान का संचालन और मूल्यांकन करता है। इसकी प्रक्रिया को विज्ञापन प्रक्रिया कहते हैं, जिसे निम्र प्रकार से समझा जा सकता है:-


  1. उद्देश्य का चयनः विज्ञापन प्रक्रिया का पहला चरण उद्देश्य का चयन है, जो ब्राण्ड के विक्रय, पुनर्बिक्री में बढ़ोत्तरी, बाजार में उत्पाद की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी, सूचना प्रदान करने, पुनः स्मरण कराने, ध्यान आकर्षित करने,  प्रेरित करने तथा साख का निर्माण करने इत्यादि से सम्बन्धित हो सकता है।
  2. संदेश का निर्धारण: उद्देश्य निर्धारण के बाद विज्ञापन प्रक्रिया के दूसरे चरण में संदेश का निर्धारण किया जाता है, जो संदेश विज्ञापन की विषय वस्तु को स्पष्ट करता है। संदेश में विज्ञापित वस्तु का निर्धारण करते समय विशेष रूप से यह ध्यान में रखा जाता है कि उसमें लक्षित जनता या उपभोक्ता को प्रभावी तरीके से अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता हो। इस कार्य में उपभोक्ताओं की आवश्यकता व उनका व्यवहार मददगार होते हैं।
  3. लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचानः विज्ञापन प्रक्रिया के तीसरे चरण में लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचान की जाती है, जिसके बीच विज्ञापन के माध्यम से संदेश सम्प्रेषित होना है। लक्षित जनता की पहचान विज्ञापन को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए आवश्यक होता है। साथ ही माध्यम के चयन के लिए भी लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचान सहायक होती है।
  4. माध्यम का चुनाव: उपर्युक्त माध्यम का चुनाव विज्ञापन प्रक्रिया का चौथा चरण है। वर्तमान समाज में जन-माध्यामों की विविधता है। लक्षित जनता या उपभोक्ता तक पहंचने के लिए उपर्युक्त माध्यम का होना आवश्यक है। माध्यम का चुनाव करते समय लक्षित जनता या उपभोक्ता की स्थिति, उनके बीच माध्यम की पहुंच इत्यादि को ध्यान में रखा जाता है।
  5. संदेश का प्रसार: यह विज्ञापन प्रक्रिया का अंतिम चरण है। संदेश को लक्षित जनता और संभावित बाजार में उचित माध्यम की सहायता से प्रसारित किया जाता है। सघन रूप से प्रसारित संदेश की पहुंच अधिकांशतः लक्षित जनता तक होती है।


विज्ञापनः अर्थ एवं परिभाषा (Advertising : Meaning and Definition)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 08, 2025    

वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति अपने बढते कदमों के साथ ऊँचाईयों को छूने में लगा है। इस क्रम में तेज दौड़ने और सबसे आगे निकलने के लिए प्रत्येक व्यक्ति व संस्था विज्ञापन का सहारा लेता है, क्योंकि वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में विज्ञापन ही एक ऐसा साधन है जिसो प्रयोग कर अधिक से अधिक लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। ऐसे में मौजूदा समय को ‘विज्ञापन युग’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि आज का मानव विज्ञापन से घिरा हुआ है। नजर उठाकर जिधर देखिए उधर विज्ञापन ही नजर आता है। विज्ञापन जहां उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकता के हिसाब से नई-नई जानकारी देते हैं, वहीं विज्ञापनदाताओं को उनके उत्पाद, विचार या सेवा के प्रति अच्छी छवि का निर्माण कर आर्थिक लाभ भी पहुंचाते हैं। अतः कहा जा सकता है कि विज्ञापन दूसरों की जेब से पैसा निकालने का साधन है।

विज्ञापन का अर्थ 

सामान्यतः विज्ञापन किसी उत्पाद, विचार व सेवा के बारे में उपभोक्ता को जानकारी उपलब्ध करवाने की योजना है, जिससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता व बजट के अनुसार उत्पाद का चयन करने में मदद मिलती है तथा उसके मन में उस उत्पाद को खरीदने की इच्छा उत्पन्न होती है। इस प्रकार, विज्ञापन मानव जीवन में सहायक की भूमिका का निर्वाहन करता है। विज्ञापन का सर्वप्रथम उद्देश्य लक्षित उपभोक्ताओं को आर्कषक ढंग से किसी वस्तु या सेवा का सन्देश देना है।

विज्ञापन दो शब्दों ‘वि’ और ‘ज्ञापन’ के योग से बना है। ‘वि’ का अर्थ- ‘विशेष’ तथा ‘ज्ञापन’ का अर्थ ‘जानकारी या सूचना देना’ होता है। इस प्रकार, विज्ञापन शब्द का अर्थ ‘विशेष सूचना या जानकारी देना’ हुआ। विज्ञापन को अंग्रेजी में Advertising कहते हैं। । Advertising शब्द लैटिन भाषा के Advertor से बना है, जिसका अर्थ है- टू टर्न टू यानी किसी तरफ मोड़ना। फारसी भाषा में विज्ञापन को ‘जंग-ए-जरदारी’ कहा जाता है। बृहद हिन्दी शब्दकोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन व प्रार्थना है।

वर्तमान में विज्ञापन न केवल सूचना व संचार का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आया है, जिससे मानव की समस्त गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। इसके प्रभाव को जनमानस की गहराईयों तक देखा जा सकता है। विपणन के क्षेत्र में विज्ञापन एक शक्तिशाली औजार के रूप में काम करता है। किसी विक्रेता के लिए अपने ग्राहकों से अपनी बात कहने, समझाने और मनाने का सबसे सहज साधन है- विज्ञापन। इसका प्रकाशन या प्रसारण निःशुल्क नहीं होता है। इसके लिए एक विज्ञापनदाता या प्रायोजक की जरूरत होती है, जो विज्ञापन प्रकाशित या प्रसारित करने के बदले में संचार माध्यमों को शुल्क का भुगतान करता है। विज्ञापन को भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है।

भारतीय विद्वान के अनुसार

  • डा. नगेन्द्र के अनुसार- ‘‘विज्ञापन का अर्थ है पर्चा, परिपत्र, पोस्टर अथवा पत्र-पत्रिकाओं द्वारा सार्वजनिक घोषणा।"
  • डा. अर्जुन तिवारी के अनुसार- ‘‘विज्ञापन लाभ-हानि का प्रभावी माध्यम है तथा सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त उपकरण है।"
  • के. पी. नारायण के अनुसार- ‘‘विज्ञापन का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रचार-प्रसार से है।"
  • के. के. सक्सेना के अनुसार- “विज्ञापन का तात्पर्य एक ऐसी पद्धति से है जिसके द्वारा कुछ निश्चित वस्तुओं व सेवा के अस्तित्व तथा विशेषताओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जाता है।"

पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार

  • इग्लैण्ड के प्रधानमंत्री मलेडस्टोन के अनुसार- “व्यवसाय के लिए विज्ञापन का वही महत्व है जो उद्योग के लिए वाष्पशक्ति का।"
  • अमेरिकन मार्केटिंग एसोशिएसन के अनुसार- ‘‘विज्ञापन एक जाने पहचाने प्रस्तुतकर्ता द्वारा अपना व्यय करके की गई र्निव्यक्तिक प्रस्तुति है एवं विचारों, सेवाओं एवं वस्तुओं का संवर्धन है।"
  • विख्यात विज्ञापन विशेषज्ञ शैल्डन के अनुसार- ‘‘विज्ञापन वह व्यावसायिक शक्ति है जिससे मुद्रित शब्दों द्वारा विक्रय करने, उसकी ख्याति व साख निर्माण में सहायता मिलती है।
  • एम्बर्ट के अनुसार- “विज्ञापन एक ऐसी विद्या है जिसमें विपणन पारम्परिक ढंग से हटकर किया जाता है।"

अतः विज्ञापन एक ऐसा साधन है जिसके लिए समुचित व्यय करके अपने विचार, वस्तु या सेवा के प्रति जनाकर्षण उत्पन्न कर उसके प्रति जिज्ञासा और ललक लगाई जाती है तथा अपने विचार, वस्तु या सेवा की क्रय शक्ति का विस्तार किया जाता है। विज्ञापन के उदाहरण की बात करे तो अनेकों विज्ञापन आंखों के सामने नजर आने लगते हैं। विज्ञापन वस्तु की इच्छा जाग्रत होने पर मनुष्य के मन में बड़ी तेजी से धूमने लगते है। विज्ञापन ही मनुष्य की उस जाग्रत इच्छा कों शान्त करने में सहायक बनते है। विज्ञापन उपभोक्ता के साथ-साथ उत्पादक के लिए भी बाजार में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।


रविवार

विज्ञापन अभियान (Advertising Campaign)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 08, 2024    

विज्ञापन अभियान एक समयबद्ध व चरणबद्ध प्रक्रिया है, जिसमें विज्ञापन की संभावनाएं, बाजार विश्लेषण, विज्ञापन लक्ष्य, विज्ञापन बजट, माध्यम चयन, विज्ञापन निर्माण, विज्ञापन प्रसार व मूल्यांकन को सम्मलित किया जाता है, जिनका एक मात्र लक्ष्य/उद्देश्य वस्तु की बिक्री बढ़ाना है। सभी कार्यक्रम एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, जो एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। यदि इनमें से एक हिस्सा भी विज्ञापन अभियान के अनुसार कार्य नहीं करता है तो सम्पूर्ण अभियान नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है। विज्ञापन अभियान में लक्ष्य बहुत विस्तृत होता है, जो किसी भी उत्पाद की प्राथमिक माँग बढ़ाने और उत्पाद के ब्राण्ड की छवि बनाने के लिए हो सकता हैं। इसमें उत्पाद से सम्बन्धित सूचनाओं या संदेश को प्रभावी तरीके से उपभोक्ताओं तक एक अभियान के रूप में पहुँचाया जाता है। एस. डब्ल्यू. डुन और ए.एम. बारबन के अनुसार- विज्ञापन अभियान सम्प्रेषण और मार्केटिंग की परिस्थितियों के अन्वेषण पर आधारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञापन श्रृंखला जारी करना है। 


जी.एम. रेगे (G.M. Rage) के अनुसार-विज्ञापन अभियान के लिए तीन मूलभूत सिद्धान्त हैं:-

  1. प्रभाविता (Dominance), 
  2. एकाग्रता (Concentration),और
  3. दोहराव (Repetation)।

1. प्रभाविता (Dominance) : विज्ञापन का संदेश इतना प्रभावशाली होना चाहिए, जिससे उपभोक्ता उसे अच्छी तरह याद रख सके।

2. एकाग्रता  (Concentration) : अभियान के दौरान यह ध्यान में रखा जाता है कि विज्ञापन सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र में न करके एक निश्चित तथा व्यापार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में हो, जिससे अभियान का उचित परिणाम प्राप्त हो सके। इसके लिए माध्यम का चुनाव करते समय एकाग्रता आवश्यक है। इसके अलावा विज्ञापन डिजाइन करते समय एक विचार या विक्रय बिन्दु पर भी एकाग्र होने की जरूरत होती है।

3. दोहराव (Repetation) : दोहराव का अर्थ संदेश के दोहराने से है, जिससे सम्भावित उपभोक्ता के दिमाग में संदेश प्रभाव डाल सके। कहने का तात्पर्य है कि उपभोक्ता के दिमाग में उत्पाद के आग्रह को प्रभावी ढंग से स्थापित करने के लिए संदेश का दोहराव आवश्यक है।

विज्ञापन अभियान समयबद्ध होती है, जैसे- एक सप्ताह, एक माह व एक वर्ष आदि। इस निर्धारित समय में विज्ञापन श्रृंखला या विज्ञापनों का दोहराव विज्ञापन योजना के लिए चयनित माध्यमों में समय-सारणी के अनुसार जारी किया जाता है। विज्ञापन-योजना के निर्माण के समय निम्न चार प्रमुख तथ्यों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।

1. क्या कहना है? (What to say) - इसके अन्तर्गत संदेश के बारे में विचार किया जाता है कि संदेश में क्या कहना है।

2. कैसे कहना है? (How to say) - कौन से माध्यम द्वारा संदेश को सम्भावित उपभोक्ता तक पहुँचाना है।

3. कहाँ कहना है? (Where to say) - इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि संदेश को कौन से स्थान (क्षेत्र में) पर कहना है।

4. कब कहना है? (When to say) - कब कहना का अर्थ है कि किस समय संदेश को कहना है अर्थात् संदेश को सम्प्रेषित करने के लिए कौन-सा समय उचित होगा।

सफल विज्ञापन अभियान के लिए यह आवश्यक है कि कार्यक्रम तैयार करने से पहले बाजार, वस्तु, उपभोक्ता, माध्यम आदि की जानकारी एकत्र करके जाँच व विश्लेषण की जाये। बड़े उत्पादक जिस प्रकार अपने उत्पादको बाजार में लाने से पहले उसकी माँग, भाव, कच्चे माल की उपलब्धता इत्यादि के बारे में अध्ययन करते हैं, उसी प्रकार एक विज्ञापन संस्थान को भी विज्ञापन जारी करने से पहले बाजार, वस्तु और उपभोक्ता का विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है।

गुरुवार

विपणन अभिकरण के रूप में विज्ञापन (Advertising as tools of Marketing)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 05, 2024    

 विपणन (Marketing) एक प्रक्रिया है, जिसका उपयोग उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है। विज्ञापन, व्यापार में एक प्रमुख उपकरण के रूप में कार्य करता है। उत्पादक (फर्म) अपने उत्पाद सम्बन्धी सूचनाओं को पुराने उपभोक्ताओं और संभावित उपभोक्ताओं को देना चाहता है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से सभी से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में विज्ञापन का सहारा लेता है।


इस प्रकार विपणन प्रक्रिया में विज्ञापन सम्भावित उपभोक्ता तक संदेश पहुंचने का अप्रत्यक्ष तरीका है, जिसे निम्रलिखित बिन्दुओं द्वारा आसानी से समझा जा सकता हैः-

  1. विपणन मिश्रण का अभिकल्पना,
  2. उपभोक्ता की संतुष्टि को बनाए रखना,
  3. बाजार का खण्डिकरण, उत्पाद की विशिष्टता और प्रतिष्ठा हासिल करना, और
  4. आय और लाभ बढ़ाने में सहयोग करना।

1. विपणन मिश्रण का अभिकल्प: वर्तमान उपभोक्तावादी युग में उत्पादक को अपना उत्पाद बाजार में उतारने से पहले यह समझना आवश्यक है कि उपभोक्ता उत्पाद में क्या चाहते हैं? बाजार में मौजूद अन्य उत्पादों में क्या-क्या समस्याएं हैं? विपणन मिश्रण में उपभोक्ताओं की इन आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया जाता है। विज्ञापन संदेश द्वारा उत्पादक उपभोक्ताओं की इन आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करने सम्बन्धी संदेश देते हैं। विपणन मिश्रण की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए विपणन लक्ष्यों के आधार पर ही विज्ञापन योजना के लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है। उत्पादक अपनी विपणन प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए विज्ञापन द्वारा संदेश सम्प्रेषित कर अपने विपणन सम्बन्धी लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। विज्ञापन, फर्म के संदेश को सृजनात्मक रूप में उपभोक्ता तक पहुंचाता है, जिसके कारण उपभोक्ता प्रभावित होता है, उसके मन में उत्पाद के प्रति आकर्षित होता है। 

2. उपभोक्ता की संतुष्टि: सर्वप्रथम उत्पादक उपभोक्ता को यह विश्वास दिलाकर आकर्षित करना कि उसका उत्पाद उनकी आवश्यकता, इच्छा और सुविधा के अनुरूप है। यह संदेश विज्ञापन ही उपभोक्ताओं तक पहुंचाता है। विज्ञापन संदेश से संतुष्ट होने पर ही उसकी वस्तु को खरीदने के लिए उपभोक्ता प्रेरित होता है। जैसे ब्रोनविटा ने विज्ञापन में यह संदेश दिया जाता है कि बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व चाहिए होते हैं, वे उसमें शामिल हैं। यह संदेश उपभोक्ता को उत्पाद के प्रति सन्तुष्टि प्रदान करता है और उपभोक्ता वस्तु खरीदता है तथा वस्तु का प्रयोग करने के पश्चात उसके गुणों से सन्तुष्ट होने पर बार-बार उस वस्तु को खरीदता है।

3. बाजार का खण्डिकरण, उत्पाद का विशिष्टिकरण और प्रतिष्ठा की प्राप्तिकरण: विज्ञापन, बाजार के खण्डिकरण, उत्पाद की विशिष्टता और उत्पाद की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सहयोग करता है। उत्पादक विज्ञापन द्वारा ही यह जानकारी देता है कि बाजार में उपलब्ध अन्य प्रतिस्पर्धी उत्पादों एवं फर्म के उत्पाद में परस्पर क्या अन्तर है। जैसे विज्ञापन उपभोक्ता को यह जानकारी देता है कि इजी लिक्विड केवल ऊनी वस्त्र धोने के लिए प्रयोग किया जाता है और यह उत्पाद की विशिष्टता है। इसी प्रकार विज्ञापन के सहयोग से संभावित उपभोक्ता के मन में अन्य उत्पादों की अपेक्षा फर्म की उत्पाद की सुस्पष्ट और महत्वपूर्ण छवि बनती है, जिससे उपभोक्ता के मन में उत्पाद की प्रतिष्ठा को बढ़ाती है। 

4. आय और लाभ में वृद्धि: विपणन प्रक्रिया का मूलभूत उद्देश्य उत्पाद की बिक्री बढ़ाना है। उससे आय में वृद्धि होती है। इस उद्देश्य को पूर्ण करने में विज्ञापन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विज्ञापन द्वारा ही वस्तु की उपलब्धता के स्थान, मूल्य, कार्यविधि व अन्य विशेषताओं की जानकारी उपभोक्ताओं को मिलती है। जब किसी उत्पाद की अच्छी विशेषताओं, उचित मूल्य और सरलता से उपलब्धता आदि को विज्ञापन के रूप में सम्प्रेषित किया जाता है, तो उत्पाद की बिक्री बढ़ती है। बिक्री बढने से उत्पादन भी बढ़ता है, उत्पादन बढने से उत्पादन लागत तथा मूल्य में कमी आती है, जिसके कारण बिक्री और अधिक बढ़ती है। इस प्रकार उत्पादक की आय और लाभ में वृद्धि होती रहती है। उपभोक्ता उस वस्तु को पहचानने लगता है और धीरे-धीरे यह पहचान ब्राण्ड में परिवर्तित हो जाता है।

उपरोक्त आधार पर कहा जा सकता है कि विपणन-प्रक्रिया के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक पहलुओं को प्रभावित करने, नये उत्पाद की जानकारी, ग्राहकों की तलाश, बेचने वालों की सहायता आदि अन्य कार्यों में विज्ञापन की अहम भूमिका होती है। विज्ञापन लोगों को वस्तु के बारे में तकनीकी-ज्ञान, वस्तु की विशेषता और वस्तु के मूल्य आदि के बारे में बताता है। विज्ञापन की चुनावी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिससे लोगों की राय को बदला जा सकता है। विज्ञापन द्वारा ही लोगों में जागरूकता पैदा होती है तथा उन्हें सामाजिक बुराइयों से लडने की प्रेरणा मिलती है। आधुनिक समाज के विभिन्न कार्यों में विज्ञापन का महतवपूर्ण योगदान दिखाई देता है।

सोमवार

विपणन मिश्रण (Marketing Mix)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 02, 2024    

उत्पादक अपने उत्पाद के प्रति उपभोक्ताओं को आकर्षित करने, उपभोग की इच्छा उत्पन्न करने तथा बिक्री के लिए बाजार में उपलब्ध कराने के लिए संयुक्त रणनीति बनाते हैं, जिसेे विपणन मिश्रण (Marketing Mix) कहते हैं। इसका उद्देश्य उत्पादक को अधिकतम लाभ तथा उपभोक्ता का अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना होता है। लतीफ के अनुसार- जिस प्रकार अधिकतम उत्पादन के लिए क्रियात्मक मिश्रण की जरूरत होती है, ठीक उसी प्रकार विपणन क्रियाओं के कुशल संचालन के लिए विपणन मिश्रण की। इसकी खास बात यह है कि इसमें एक भी तत्व के प्रतिकूल होने की स्थिति में अच्छा से अच्छा विज्ञापन भी बेकार हो जाता है, क्योंकि विज्ञापन ‘विपणन मिश्रण’ का एक हिस्सा मात्र है। इसकी सफलता अन्य तत्वों पर भी निर्भर करती है।

विपणन मिश्रण के तत्व: विपणन मिश्रण में जिन-जिन तत्वों को सम्मलित किया जाता है, उसकी एक लम्बी सूची विकसित हो चुकी है। प्रो. फ्रे ने इन तत्वों को दो भागों में विभाजित किया है। पहला, वे तत्व जो बाजार में प्रस्तुत किये जाने वाले उत्पाद से सम्बन्धित हैं। इसके अंतर्गत् उत्पाद, पैकेज, ब्राण्ड, कीमत इत्यादि आते हैं। दूसरा, वे तत्व जो वितरण व प्रचार व्यवस्था से सम्बन्धित हैं। इसके अंतर्गत् वितरण-वाहिकाएं, वैयक्तिक वितरण, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन तथा प्रचार आते हैं। लेजर एवं केली ने विपणन मिश्रण को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। पहला, उत्पाद एवं सेवा मिश्रण दूसरा, वितरण मिश्रण और तीसरा, संचार मिश्रण। मेकार्थी ने अनुसार, विपणन मिश्रण में सम्मिलित तत्वों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है, जिसे उन्होंने 4Ps का नाम दिया है। जो इस प्रकार है:-

1. उत्पाद (Product)

2. मूल्य (Price)

3. स्थान (Place)

4. संवर्द्धन (Promotion)

मेकार्थी का मानना है कि उपभोक्ता उत्पाद, मूल्य, स्थान और संवर्द्धन से प्रभावित होता है। इसे निम्न प्रकार आसानी से समझा जा सकता है:-


1. उत्पाद (Product) : उपभोक्ता को वहीं उत्पाद आकर्षित करता है, जिसमें अधिकतम संतुष्टि प्रदान करने की क्षमता होती है। संतुष्टि प्रदान करने की क्षमता न होने की स्थिति में उत्पाद का विज्ञापन चाहे जितने भी मजबूत जन-माध्यम से किया जाए, उपभोक्ता उसके प्रति आकर्षित नहीं होंगे। उदाहरणार्थ, विद्यार्थी उसी कलम को अधिक खरीदना पसंद करते है, जो लिखने में सरल और देखने में सुंदर हो। यदि कोई कलम देखने में तो सुंदर होगी तथा लिखने में सरल नहीं होगी तो उसे कोई खरीदना पंसद नहीं करेगा। अतः विज्ञापन की सफलता के लिए उत्पाद का गुणवत्ता युक्त होना आवश्यक है।

2. मूल्य (Price) : आजकल बाजार में हर उत्पाद का विकल्प मौजूद है। कोई उत्पाद गुणवत्ता के साथ-साथ कीमत में काफी मंहगा होगा, तो उसके विज्ञापन को आकर्षक तरीके से चाहे जितने भी मजबूत जन-माध्यमों से सम्प्रेषित किया जाये। इससे उपभोक्ता उसकी ओर आकृष्ट हो सकते है, लेकिन कीमत अधिक होने के कारण खरीदेगें नहीं तथा उस वस्तु के विकल्प की तलाश करेगें। अतः उत्पाद गुणवत्ता युक्त होने के साथ-साथ कीमत में भी सस्ता होना चाहिए।

3. स्थान (Place) : विज्ञापन की सफलता के लिए बाजार में उचित स्थान पर उत्पाद के वितरण की व्यवस्था का होना आवश्यक है। यदि कोई उत्पाद गुणवत्ता युक्त होने के साथ-साथ कीमत में भी सस्ता हो, लेकिन बाजार में उचित स्थान पर बिक्री/वितरण के लिए उपलब्ध न हो, जिसके चलते उपभोक्ता उपभोग से वंचित रह जाए। ऐसी स्थिति में विज्ञापन पर किया गया व्यय बेकार होगा।

4. संवर्द्धन (Promotion) : प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में उत्पाद को तेजगति से तथा बड़े पैमाने पर बेंचने के लिए संवर्द्धन (प्रोत्साहन) की जरूरत पड़ती है। प्रतिष्ठित कम्पनियां अपने उत्पाद का मजबूत जन-माध्यमों से विज्ञापन करने के साथ-साथ वितरकों, खुदरा व्यापारियों तथा उपभोक्ताओं के लिए भी अनेक प्रोत्साहन योजनाएं चलाती हैं।जैसे- मुफ्त उपहार, लाटरी ड्रा, दो के साथ एक फ्री या कीमत मेें छूट इत्यादि। इससे आकर्षित होकर उपभोक्ता उत्पाद के प्रति दिलचस्पी लेने लगते हैं।

विपणन मिश्रण में विज्ञापन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन केवल विज्ञापन से उत्पादक का लक्ष्य पूरा नहीं होता है। विज्ञापन की सफलता उत्पाद की गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धी उत्पादों की तुलना में कीमत तथा विक्रय व्यवस्था पर भी निर्भर करता है। इसलिए, विपणन मिश्रण प्रक्रिया के अंतर्गत् विज्ञापन के साथ उपरोक्त तत्वों को आपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ध्यान में रखना आवश्यक है। इनमें आवश्यकतानुसार परिवर्तनकरना भी जरूरी है।


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