समाचार के स्रोत उन व्यक्तियों या स्थानों को कहते होते हैं, जो समाचार संकलन में संवाददाता की मदद करते हैं या जहां से समाचार मिलते हैं या मिलने की संभावना होती है। राजनीतिज्ञ, विशिष्ट व्यक्ति, पुलिस स्टेशन, पुलिस कंट्रोल रूम, फायर ब्रिगेड, अदालत, अस्पताल, पोस्टमार्टम हाउस, विकास प्राधिकरण, नगर पंचायत, नगर परिषद, नगर निगम, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, स्कूल-कालेज, खेल मैदान, मंडी, कचहरी, विकास भवन, संसद, विधानसभा, विधान परिषद, सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों के कार्यालय इत्यादि समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
उपरोक्त के पास सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के समाचार होते हैं। सकारात्मक समाचार उसे कहते हैं, जिसके प्रकाशित/प्रसारित होने से सम्बन्धित विभाग, संगठन या व्यक्ति की सरकार और जनता के बीच अच्छी छवि बनती है। ऐसे समाचारों को विभागाध्यक्ष या सम्बन्धित व्यक्ति स्वयं संवाददाताओं को उपलब्ध कराता है। इसके विपरीत, नकारात्मक समाचार उसे कहते हैं, जिसमें सच्चाई होने के कारण अधिकतम पाठकों/दर्शकों की दिलचस्पी होती है, लेकिन उसे प्रकाशित/प्रसारित करने के लिए विभागाध्यक्ष या सम्बन्धित व्यक्ति उपलब्ध नहीं कराता है। ऐसे समाचारों के प्रकाशित/प्रसारित होने से जहां सम्बन्धित विभाग, संगठन या व्यक्ति को जांच व दण्ड का सामना करना पड़ता है। वहीं उसे प्रकाशित/प्रसारित करने वाले संवाददाता और समाचार पत्र/टीवी चौनल को नई पहचान मिलती है। नकारात्मक समाचार को खोजपरख समाचार भी कहते हैं, जिसके सूत्रधार स्रोत होते हैं। समाचार के स्रोतों का वर्गीकरण निम्न आधारों पर किया जा सकता है।
- प्रत्याशित स्रोत: जहां से नियमित, विश्वसनीय और सहज तरीके से समाचार प्राप्त होते हैं। जैसे- हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, चोरी, फिरौती व अन्य अपराध से सम्बन्धित समाचार पुलिस स्टेशन से। दुर्घटना व गंभीर बीमारियों के समाचार अस्पताल से। इसके अतिरिक्त नगर परिषद व नगर निगम की बैठकें, संसद व विधानसभाओं के अधिवेशन, प्रेस प्रतिनिधि सम्मेलन, भेंटवार्ता, राजनीतिक दलों का सम्मेलन, सार्वजनिक वक्तव्य, सरकारी घोषणा, प्रेस विज्ञप्ति, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का सम्मेलन, जांच आयोग की बैठक इत्यादि प्रत्याशित स्रोत हैं।
- पूर्वानुमानित स्रोत: वह समाचार जिनका पूर्वानुमान लगाकर संवाददाता सम्बन्धित स्रोत से सम्पर्क करता है। इसके अंतर्गत् संभावना के आधार पर तथ्यों को एकत्र किया जाता है। कई बार संभावना सत्य निकल जाती है, जिससे समाचार की सार्थकता अपने आप बढ़ जाती है। उदाहरणार्थ, सडक पर प्रकाश व्यवस्था के लिए नगर परिषद और ग्राम पंचायत ने अपने-अपने कार्य क्षेत्र में सोडियम लाइट लगाया। संवाददाता ने अनुमान लगाया कि सोडियम लाइटें एक ही कम्पनी की होगी तो उनकी कीमत भी समान होगी, यदि अंतर होगा तो समाचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा। संवाददाता की जांच-पड़ताल में सोडियम लाइटें एक ही कम्पनी की होती हैं, किन्तु दोनांे की कीमत में कई गुना का अंतर मिलता है। इस आधार पर वह दूसरे दिन खबर प्रकाशित कर सकता है- नगर परिषद में 15 लाख का सोडियम लाइट घोटाला।
- अप्रत्याशित स्रोत: जिस समाचार का संवाददाता को जरा भी अनुमान न हो और वह अचानक मिल जाये, तो उसे अप्रत्याशित स्रोत पर आधारित समाचार कहते हैं। ऐसे समाचारों का सुराग पाने के लिए संवाददाता का अनुभव काम आता है। अनुभवी संवाददाता अपने सम्पर्क सूत्र के माध्यम से बड़े ही आसानी से समाचार का पूरा विवरण पता कर लेते हैं। राजीव गांधी को सत्ता से उतारने वाला बोफोर्स तोफ खरीद प्रकरण का समाचार अप्रत्याशित स्रोत का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है। एक विदेशी रेडियो चौनल को सुनकर संवाददाताओं ने बोफोर्स तोफ खरीद प्रकरण की जांच-पड़ताल शुरू की तो उसके अंदर दलाली में मोटी रकम खाने का खुलासा हुआ, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर का समाचार बना। यह समाचार प्रकाशित होने से जहां विपक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का तख्त पलट दिया, वहीं आम चुनाव में अप्रत्याशित सीटें जीतने के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बनें।
संवाददाता को समाचार संकलन के लिए जैसे ही कोई बीट मिलती है, वैसे ही उसे अपने बीट से सम्बन्धित पूरी जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिये। इसके बाद उससे सम्बन्धित विशिष्ट लोगों, राजनीतिज्ञों, अधिकारियों, विभिन्न जातियों व समुदायों के प्रमुखों से सम्पर्क करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अध्यापकों, वकीलों, चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों आदि से भी निकट सम्बन्ध रखना चाहिए। उपरोक्त सभी व्यक्ति किसी न किसी समाचार के स्रोत हो सकते हैं। कई बार अन्यत्र स्रोतों से प्राप्त समाचारों के संबंध में भी विशेषज्ञों या राजनीतिज्ञों के राय को अवश्य लेना चाहिये। इससे सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है।
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