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सोमवार

फोटो पत्रकारिता की अवधारणा (Concept of Photojournalism)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 02, 2024    

 फोटो पत्रकारिता की अवधारणा काफी पुरानी है, क्योंकि कैमरे के आविष्कार से पहले समाचार पत्रों में रेखाचित्रों का प्रकाशन होता था। यह एक ऐसी विधा है, जिसमें भाषा की आवश्यकता नहीं होती है। कैमरा के आविष्कार के बाद समाचार पत्रों में फोटो के प्रयोग से पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। फोटो के माध्यम से बड़ी से बड़ी घटना का वर्णन हो जाता है। यही कारण है कि संचार के विभिन्न माध्यमों में दृश्य माध्यम को सर्वाधिक प्रभावी माना जाता है। समाचारों और लेखों को फोटो के साथ प्रकाशित करने का मुख्य उद्देश्य पाठकों को सूचना देना, मार्ग दर्शन व मनोरंजन करना और समाचार पत्रों को आकर्षक बनाना है। ऐसे फोटो, जो सच्चाई को छुपाने तथा भ्रम फैलाने का कार्य करते हैं, फोटो पत्रकारिता की अवधारणा के दायरे में नहीं आते हैं।
फोटो पत्रकारिता ने पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसी क्रांति ला दी है, जिससे समाचारों व लेखों को कम शब्दों में बड़े ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाने लगा है। एक कहावत है कि 'एक फोटोग्राफ हजार शब्दों के बराबर होता है।' फोटो का प्रभाव कम पढ़े-लिखे लोगों पर ज्यादा पढ़ता है, जिससे उनकी अभिरूचि भी समाचार पत्रों के प्रति बढ़ने लगी है। इसका श्रेय उन सभी वैज्ञानिकों को जाता है, जिन्होंने फोटोग्राफी के आविष्कार के लिए कार्य किया। पत्रकारिता के समर्पित उन व्यक्तियों को भी नहीं भुलाया जा सकता है, जिन्होंने फोटोग्राफी से पहले समाचार पत्रों को आकर्षक बनाने के लिए रेखाचित्रों का उपयोग किया तथा फोटोग्राफी का आविष्कार होने के बाद फोटो का उपयोग करने लगे।


लंदन से प्रकाशित ‘इलेस्ट्रेड लंदन’ दुनिया का पहला समाचार पत्र है, जिसने 1842 में सबसे पहले फोटो के साथ समाचार को प्रकाशित किया। तब उसकी पाठकों के बीच खुब चर्चा हुई। लंदन के बाद फोटो पत्रकारिता की शुरूआत अमेरिका में हुई। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फोटो पत्रकारिता को विशेष महत्व दिया गया। यहीं कारण है कि 20वीं शताब्दी के पहले और दूसरे दशक में फोटोग्राफ और सिण्डीकेट्स काफी लोकप्रिय हो गये थे। प्रारंभ में फोटोग्राफी का कार्यकाफी खर्चीला कार्य था, किन्तु तकनीकी के विकास के कारण काफी सस्ता हो गया है।


वर्तमान समय में शायद ही ऐसा कोई समाचार पत्र या पत्रिका हो, जो अपने पेजों पर समाचारों व लेखों के साथ फोटो प्रकाशित न करती हो। वैसे भी, मानव उस समाचार को लम्बे समय तक याद रखता है, जिसे अपनी आंखों के सामने घटित होते हुए देखता है। मानव की इसी मनोवृत्ति के कारण समाचार पत्रों ने समाचारों व लेखों को फोटो के साथ प्रकाशित करना आरंभ किया। फोटोग्राफ से प्रकाशित समाचारों की स्वतः पुष्टि हो जाती है। फोटो प्रमाण का कार्य भी करते हैं। दैनिक ट्रिब्यून के समाचार संपादक जितेंद्र अवस्थी के अनुसार-फोटो के माध्यम से दर्शाए गए तथ्यों को झूठलाया नहीं जा सकता है। समाचार चाहे कितने ही शब्दों में क्यों न लिखा जाए, यदि उसे फोटो के साथ प्रकाशित किया जाता है तो उसकी विश्वसनीयता और अधिक बढ़ जाती है। यदि एक आकर्षक फोटो के साथ आकर्षक शीर्षक भी लिखा जाए तो पाठक के लिए फोटो और अधिक रोचक बन जाता है।


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