समाचार को फोटो के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने की कला को फोटो पत्रकारिता कहते हैं। वर्तमान समय में कोई भी समाचार पत्र व पत्रिका नहीं है, जो बगैर फोटोग्राफ के प्रकाशित करती है। परिणामतः फोटो पत्रकारिता एक सशक्त और प्रभावी जनसंचार माध्यम बनकर उभरा है।
संचार विशेषज्ञों का कहना है कि ‘एक अच्छी फोटोग्राफ अपने पाठकों को कई हजार शब्दों के बराबर संदेश देती है’। समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के लिए फोटोग्राफ उतने ही महत्वपूर्ण है, जितना कि शब्दों में लिखित समाचार। भारत जैसे विकासशील देश में जहां साक्षरता दर पश्चिम के विकसित देशों की तुलना में काफी कम है, वहां फोटोग्राफ संचार का सर्वाधिक सार्थक माध्यम है। तभी कहा जाता है कि एक फोटो हजार शब्दों के बराबर संदेश देता है। समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में समाचार के साथ फोटोग्राफ प्रकाशित करने से समाचार की विशेषता व महत्ता बढ़ जाती है। समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित फोटोग्राफ से किसी घटना या आयोजन की जानकारी मिलती है। सुभाष सप्रू ने अपनी पुस्तक ‘फोटो पत्रकारिता’ में लिखा है कि शायद ही ऐसा कोई फोटो पत्रकार होगा, जो इतिहासकार भी हो। परंतु फोटो पत्रकार ऐसे फोटोग्राफ खींचते हैं, जो शब्दों के बगैर भी किसी काल खण्ड तथा उससे जुड़े इतिहास को बताने में सक्षम होते हैं। हम देश-दुनिया में घटित होने वाली घटनाओं को अपनी प्र्रत्यक्ष आंखों से बहुत ही कम देख पाते हैं, किन्तु फोटो पत्रकारों से चाहते हैं कि वे उन घटनाओं से जुड़ी जानकारी को फोटोग्राफ के माध्यम ऐसे प्रस्तुत करें कि उन्हें देखकर हम वैसे ही आनंदित... उत्साहित... दुःखी... हों जैसे प्रत्यक्ष आंखों के सामने घटित होने पर होते हैं।
हम सभी लोगों ने जुलाई 2023 में हिमाचल प्रदेश के बाढ़ की विभिषिका को करीब से नहीं देखा है, लेकिन उससे जुड़ी फोटोग्राफ को समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के पन्नों और टेलीविजन व मोबाइल के स्क्रीन पर जरूर देखा है। इनसे सम्बन्धित फोटो ग्राफरों ने बताया था कि आपदा कितनी भयावह थी।
न्यूयार्क टाइम्स के पूर्व संपादक टर्नर काटलैज का मानना है कि फोटोग्राफ हमारे मस्तिष्क में एक ऐसी अमिट छवि का निर्माण करते हैं, जिसमें किसी शीर्षक से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है और न ही उसे बदला जा सकता है। चाहे वह फोटोग्राफ किसी जटिल सामाजिक समस्या के एक भाग को ही क्यों न दर्शाती हो और उसे देखने के परिणाम स्वरूप पाठक के मस्तिष्क में उस समस्या का अतिविकृत रूप ही क्यों न उभरे। हम फोटो की आवाज को न तो धीमा कर सकते हैं और न तो मौन। फोटोग्राफ में भावना को दर्शाने का पूरा अवसर होना चाहिए। यदि वह प्रकाशित करने योग्य न हो तो उसे प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
0 टिप्पणियाँ :