रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों परिचर्चा का विशेष महत्व है, क्योंकि परिचर्चा में किसी विषय या समस्या के सभी पक्षों को सुनने के बाद निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है। परिचर्चा भी रेडियो वार्ता की तरह उच्चारित शब्दों का कार्यक्रम है, जिसे उर्दू में बहस और अंग्रेजी में Discussion कहते है। परिचर्चा को भेंटवार्ता, परिसंवाद, विचार-विनिमय, विचार-विमर्श, विचार-गोष्ठी आदि नामों से भी जाना जाता है। परिचर्चा कार्यक्रम में दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में बाचतीत करते हैं। इनमें से कोई एक संचालक (सूत्रधार) की भूमिका में होता है। संचालक विषय प्रवेश का कार्य करता है। परिचर्चा में एक-दूसरे से सवाल पूछना प्रतिबंधित होता है। सभी परिचर्चाकार एक-दूसरे की बातों को सुनते हुए अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हैं। एक-दूसरे से तर्क-वितर्क करते हैं। संचालक के कहने पर ही अपनी बात को कहना शुरू करते हैं। परिचर्चा के निष्कर्ष को संचालक कार्यक्रम के अंत व्यक्त करता है। परिचर्चा किसी विषय पर विविध पक्षों की प्रस्तुति की विधा है, जिसका प्रसारण सामान्यतः 30 मिनट का होती है। परिचर्चा किसी भी विषय पर प्रसारित की जा सकती हैं। परिचर्चा का विषय समसामयिक, प्रासंगिक, अतीत से जुड़ा हुआ या भविष्य की संभावित समस्या पर आधारित हो सकता है। परिचर्चा का लेखन से कोई संबंध नहीं है। यह बिना आलेख के आयोजित की जाती है, लेकिन परिचर्चा को विषय केे दायरे में बांधकर रखने के लिए अधिकांश परिचर्चाकार नोट्स बना लेते हैं। एक सफल परिचर्चा आयोजित करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:-
- परिचर्चा के विषय का चुनाव काफी सोच-समझकर करना चाहिए। विषय में समसामयिक, प्रासंगिकता इत्यादि के होने से श्रोताओं की अभिरूचि बनी रहती है।
- परिचर्चाकार विषय या क्षेत्र के विशेषज्ञ होने चाहिए। परिचर्चाकारों में सभी पक्षों का समान रूप से प्रतिनिधित्व हो।
- परिचर्चा की सफलता केवल परिचर्चाकारों पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि संचालक पर भी निर्भर करती है, क्योंकि संचालक स्वयं भी परिचर्चा में भाग लेता है तथा परिचर्चाकारों के बीच संतुलन बनाने का कार्य भी करता है।
- परिचर्चाकारों की भाषा सरल और सर्वग्राह्य होनी चाहिए। परिचर्चाकारों के अंदर दूसरों की बातों को ध्यान से सुनने का गुण भी हो। संचालक के अनुमति के बगैर किसी भी परिचर्चाकार को नहीं बोलना चाहिए।
- रेडियो परिचर्चा का मुख्य उद्देश्य श्रोताओं को शिक्षित करना होता है। अतः परिचर्चा का विषय तथा परिचर्चाकार उद्देश्य के अनुकूल होना चाहिए।
- परिचर्चा में हास्य-व्यंग्य का विशेष महत्त्व होता है। 10 मिनट बाद परिचर्चा की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है, जिससे उसकी रोचकता कम होने लगती है। ऐसे अवसर पर हास्य-व्यंग्य से नई स्फूर्ति आती है। हालांकि हास्य-व्यंग्य एक सीमा तक ही होनी चाहिए।
- परिचर्चा की रिकॉर्डिंग तकनीकी दृष्टि से उच्चस्तरीय होनी चाहिए। रिकॉर्डिंग से पूर्व परिचर्चा के सभी प्रतिभागी मिल बैठकर परिचर्चा के स्वरूप पर विचार कर लेनी चाहिए। इससे संचालक को अपना कार्य करने में काफी सहुलियत मिलती है।
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