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रविवार

रेडियो (Radio)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     सितंबर 08, 2024    

 रेडियो संचार का श्रव्य माध्यम है, जिसमें अदृश्य विद्युत चुंबकीय तरंगों द्वारा संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन को प्रसारित करने वाले इस माध्यम ने सम्पूर्ण जगत को अपनी परिधि में ले लिया है। जवरीमल्ल पारिख के अनुसार- रेडियो निरक्षरों के लिए वरदान है जिसके द्वारा सुनकर सिर्फ सुनकर अधिक से अधिक सूचना, ज्ञान और मनोरंजन हासिल किया जा सकता है।

रेडियो का विकास (Development of Radio)

ध्वनि सम्प्रेषित करने वाले समस्त माध्यमों का प्रमुख आधार है- रेडियो... लेकिन इसका अपना कोई प्रतिबिम्ब नहीं है। इसे सिर्फ सुना जा सकता है। इटली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर गुगलियामों मारकोनी ने 1895 में बेतार से संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ‘इलेक्ट्रो-मैग्नेटिव’ की सहायता से भेजने की पद्धति का आविष्कार किया, जिसकी मदद से एक मील की दूरी तक रेडियो संचार स्थापित करने में सफलता मिली। उन्हीं दिनों गुलाम भारत में जगदीश चंद्र बसु भी इस क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन उनके पास अपने आविष्कार को अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने की सुविधा मारकोनी की तरह नहीं थी। 1896 में मारकोनी ने ब्रिटेन में ‘मारकोनीज वायरलेस टेलीग्राफ’ नामक कम्पनी स्थापित कर आगे का काम किया। इसके एक साल बाद 1896 में अटलाण्टिक महासागर के तट से समुद्र में स्थित एक जहाज पर पहला रेडियो संदेश भेजने में कामयाबी मिली। 1909 में मारकोनी को ‘भौतिकी का नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव-परिणाम को एक समाचार के रूप में रेडियो से प्रसारित किया गया। इससे एक ओर जहां लोगों को एक जनमाध्यम के रूप में रेडियो का एहसास होने लगा, वहीं समुद्री तूफान में फंसे नाविक अपनी सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए रेडियो का उपयोग करने लगे।

इस संदर्भ में टाइटैनिक से जुड़ी एक घटना काफी दिलचस्प है। 1910 में अमेरीकी कांग्रेस ने एक कानून बनाया, जिसके तहत यात्री जहाजों में रेडियो उपकरण व ऑपरेटर का उपयोग अनिवार्य कर दिया। यह कानून बनने के मात्र दो साल बाद जब टाइटैनिक जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया, तब यात्रियों ने जहाज में लगे रेडियो के माध्यम से सुरक्षा की गुहार लगायी। डूबते टाइटैनिक जहाज से आ रहे संदेश को वायरलेस ऑपरेटर डेविड सारनौफ ने सुना। इसके बाद 700 से अधिक यात्रियों की जान बचाई जा सकी।

1919 में अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक तथा अमेरिकन टेलीफोन और टेलीग्राफ कम्पनी ने मिलकर रेडियो-कॉरपोरेशन ऑफ अमेरिका (आरसीए) नामक कम्पनी स्थापित किया। इसके प्रथम व्यवस्थापक डेविड सारनौफ थे, जो करीब 40 साल तक रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में एक नायक के रूप में विद्यमान्य रहे। इसके बाद कई समाचार पत्रों ने अपने समाचारों को प्रसारित करने के लिए रेडियो स्टेशन स्थापित किया। यह सिलसिला 1926 तक चलता रहा। उस वर्ष अमेरिका में आरसीए जैसी दो अन्य कम्पनियां नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी (एनबीसी) और कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिटम (सीबीएस) स्थापित हुई। इन दोनों कम्पनियों ने समुद्र के एक तट से दूसरे तट तक रेडियो प्रसारण का कार्य प्रारंभ किया।

1927 में अमेरिका में ‘फेरडल रेडियो-कमीशन’ नामक संस्था स्थापित की गयी, जिसका विशेष उत्तरदायित्व यह था कि रेडियो-स्टेशनों की बढ़ती संख्या के लिए चैनल यानी... गगन-मण्डल में इलेक्ट्रो-मैग्नेटिव तरंगों के संकेतों के वितरण की व्यवस्था करें। फेडरल रेडियो-कमीशन को बाद में ‘फेडरल कम्युनिकेशन-कमीशन’ में परिवर्तित कर दिया गया, जिसके माध्यम से अमेरिकी सरकार रेडियो तथा टेेलीविजन-स्टेशनों को नियंत्रित करती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रण का कार्य ‘इण्टरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन’ नामक संस्था करती है। इसका कार्यालय जिनेवा में है।

1922 में ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) स्थापित हुआ, जो ब्रिटिश सरकार का एक निगम है। बीबीसी को विश्व की सबसे पुरानी, प्रतिष्ठित और शायद सर्वाधिक बहुचर्चित रेडियो स्टेशन होने का गौरव प्राप्त है। इसके प्रथम महानिदेशक लॉर्ड रीथ थे, जो असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने बीबीसी को जो स्वरूप दिया, वह लगभग 40 साल तक अपरिवर्तनीय रहा। यहीं कारण है कि ब्रिटेन के कुछ नौजवान बीबीसी को ‘ओल्ड मेड’ कहकर पुकारने लगे। अंग्रेजों के लिए बीबीसी में रीथ द्वारा स्थापित परम्परा, मान्यता और उत्कृष्टता गौरव की बात थी। इसका अर्थ यह नहीं है कि बीबीसी ने प्रयोगशीलता की ओर कदम नहीं बढ़ाया। ब्रिटेन के साहित्य, स्टेज, संगीत इत्यादि में जैसे-जैसे प्रयोगशीलता आती गयी, वैसे-वैसे निर्माताओं, लेखकों आदि ने क्रमशः बीबीसी की प्रेरणाओं में परिवर्तन लाने का कार्य किया। बीबीसी की उत्कृष्ट तकनीक तथा प्रेरणाओं का प्रभाव कई देशों पर पड़ा, जिनमें भारत भी शामिल है।


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