रेडियो पर प्रसारित होने वाला फोन-इन कार्यक्रम श्रोताओं की भागीदारी का सर्वसुलभ कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के माध्यम से आकाशवाणी केन्द्र में बैठे विशेषज्ञ से श्रोताओं का सीधा सम्पर्क स्थापित हो जाता है और वे न केवल प्रश्न पूछ सकते हैं, बल्कि सीधी बातचीत भी कर सकते हैं। इस व्यवस्था में श्रोता अपने प्रश्न कार्यक्रम से थोड़ा पहले रिकार्ड करा सकता है। विशेषज्ञों को इन प्रश्नों को सुना दिया जाता है और विशेषज्ञ उनका उत्तर दे देते हैं। इस प्रकार प्रश्न तथा उत्तर साथ-साथ प्रसारित कर दिए जाते हैं।
प्रश्नों को पूर्व में रिकार्ड कर लेने पर यह सुविधा रहती है कि हम प्रश्नों का जायजा ले सकते हैं और अनावश्यक तथा विवादास्पद अंशों को संपादित किया जा सकता है। कभी-कभी सीधे प्रश्नों में शरारती तत्त्व बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। साधारण श्रोता प्रश्न तथा उत्तर को एक साथ सुन सकता है तथा जानकारी प्राप्त कर सकता है। आजकल कुछ उपकरणों के द्वारा प्रश्नों को सीधे भी पूछा जा सकता है। पूर्व में रिकार्ड करने की आवश्यकता नहीं होती। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि वहाँ आज दूरभाष सेवाएं उपलब्ध है।
सार्वजनिक क्षेत्र के जितने भी विषय हो सकते हैं उन सभी के संबंध में फोन-इन कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। विद्युत प्रदाय, जन प्रदाय, दुग्ध प्रदाय, स्वच्छता तथा सफाई, दूरभाष सेवाएं, रेल सुविधाएं, यातायात सेवाएं, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएं, पुलिस सेवा, शिक्षा सुविधाएं, नगर निगम, आयकर विभाग, सड़क अवस्था, सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, ग्रामीण विकास, खेल सुविधाएं, नागरिक आपूर्ति, आम चुनाव, रसोई गैस आपूर्ति, प्राकृतिक आपदाएं, राहत कार्य, उद्योग-व्यापार समस्याएं, भवन-निर्माण बोर्ड, आदि विषय इसके अंतर्गत शामिल किए जा सकते हैं।
इन विषयों के अलावा जन-जागरण तथा जनचेतना संबंधी अनेक विषयों को इस कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। सहकारी संस्थानों और सार्वजनिक महत्त्व की सेवाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा इन विषयों को बार-बार उठाया जाता है। इन प्रसारणों में रेडियो माध्यम पर श्रोताओं का विश्वास बढ़ा है तथा इस माध्यम को जन समस्याओं को सुलझाने का कारगर मंच माना जा रहा है। अब रेडियो मात्र मनोरंजन का साधन नहीं है वरन् जीवन का एक अंग बन चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में इन्टरनेट की सुविधा के कारण माध्यमों को द्विपक्षीय बनाने में सहायता प्राप्त हुई है तथा जनता और सरकार में सीधा संवाद स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त हुई है, लेकिन निकट भविष्य में उपग्रह संचार सेवा और माईक्रोवेव की और अधिक सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण गांव तक आसानी से माध्यमों को जोड़ा जा सकेगा। कन्वर्जेस तकनीक के आने के पश्चात् अनेक माध्यमों को एक ही श्रोता से नियंत्रित किया जा सकेगा तथा प्रसारण का लाभ अधिक आसानी से उपलब्ध हो सकेगा।
आजकल अनेक निजी प्रसारण चैनल श्रोताओं को लुभाने के लिए अनेक मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं तथा विज्ञापनों द्वारा अपना बाजार विकसित करने की चेष्टा कर रहे हैं। रेडियो अभी भी एक जनसेवा है तथा आम आदमी के विकास की, पक्षधर है। इस सेवा में यदि गुणात्मक परिवर्तन किए जाएं तो फिर से रेडियो की वापसी संभव है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी रेडियो सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम है, क्योंकि यह सस्ता और सर्वसुलभ है। किसान खेत, खलिहान, कुएं या ट्यूबवेल पर बैठकर भी सुन सकता है। विद्युत आपूर्ति के अभाव में भी इस सेवा का लाभ लिया जा सकता है। निजी क्षेत्र में अनेक कम्पनियों ने एफ.एम. रेडियो प्रारम्भ किए हैं, जहां श्रोताओं के साथ दूरभाष से वार्तालाप किया जाता है तथा मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
अभी फोन-इन कार्यक्रम में अनेक सुधार हो रहे हैं तथा श्रोता अपनी पसंद के गीत तथा कार्यक्रम सुन सकते हैं। आजकल विविध भारती तथा प्राइमरी चौनल से भी ‘फोन करें गीत सुनें‘ कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है और एफ.एम. रेडियो से निरंतर फोन द्वारा श्रोताओं से संपर्क स्थापित किया जाता है। फिर भी श्रोताओं की भागीदारी बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि श्रोताओं में आत्म-विश्वास जगा है तथा गांव-खेतों में भी लोग मोबाइल लिए हुए देखे जा सकते हैं। हर श्रोता, रेडियो से प्रसारित इन कार्यक्रमों में भाग लेना चाहता है तथा अपनी भागीदारी से वह अपने आप को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझता है। फरमाइशी कार्यक्रमों का क्षेत्र भी बढ़ गया है तथा अब श्रोताओं को फरमाइश के लिए महीनों तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। अब श्रोता निष्क्रिय नहीं रहना चाहता, क्योंकि उसकी बात सुनने के लिए एक माध्यम है। रेडियो समाज में एक हेल्प लाईन का कार्य करने के लिए फिर से चर्चा में है और नए आयामों के साथ श्रोता की मांग पूरी करने में लगा है।
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