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सोमवार

रेडियो कॉमेंट्री (Radio Commentary)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 07, 2024    

रेडियो कॉमेंट्री को हिन्दी में ‘आँखों देखा हाल’ कहते हैं, जो समाचार से भी तीब्र गति से श्रोताओं तक पहुंचता है। रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में आँखों देखा हाल एक मात्र कार्यक्रम है जो रेडियो स्टेशन के बाहर किसी अन्य स्थल से जीवंत रूप में प्रसारित किया जाता है। इसे सजीव प्रसारण भी कहा जाता है। 

रेडियो पर क्रिकेट मैच, गणतंत्र दिवस की परेड, स्वतंत्रता दिवस का आयोजन, विदेशों में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का स्वागत समारोह, संसद व विधानसभाओं की कार्रवाही, किसी विशेष व्यक्ति की शवयात्रा, मेला- जैसे जगरनाथपुरी की यात्रा, खेलों व अलंकरण समारोहों आदि की कॉमेंट्री प्रसारित की जाती है। इसके अंतर्गत कॉमिंटेटर आंखों से देखे गये दृश्यों और कानों से सुनी गई आहटों को माइक्रोफोन के सामने बोल देता है। रेडियो कॉमिंटेटर के सामने समाचार वाचक की तरह कोई आलेख नहीं होता है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि रेडियो कॉमेंट्री का प्रसारण कितना चुनौति पूर्ण है। इसमें कॉमिंटेटर अपनी बुद्धि व विवेक की मदद से आँखों-देखा हाल सुनाता है। क्रिकेट मैच की कॉमेंट्री श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है। श्रोता हर गेंद के बाद के कॉमिंटेटर की कॉमेंट्री का इंतजार करते है।  

रेडियो कॉमेंट्री के संदर्भ में कहा जाता है कि माइक्रोफोन किसी का दोस्त नहीं होता है। इसलिए कॉमिंटेटर को माइक्रोफोन के सामने काफी सोच-समझकर तथा सावधानी पूर्वक बोलना पड़ता है, क्योंकि उसकी जुबान से निकला शब्द-बाण लौटाकर नहीं आ सकता। रेडियो पर सावधानी पूर्वक कॉमेंट्री करने वाले कॉमिंटेटर को अच्छी पहचान व प्रतिष्ठा मिलती है। असावधानी बर्तने वालों का कैरियर भी समाप्त हो जाता है। कॉमिंटेटर को विषय विशेषज्ञ होना चाहिए। क्रिकेट की कॉमेंट्री में कॉमिंटेटर के साथ-साथ स्टूडियो में बैठा प्रोड्यूसर की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि क्रिकेट मैच के दौरान विज्ञापनों की भरमार होती है। क्रिकेट मैच के बीच में विज्ञापनों को प्रसारित करना काफी चुनौतिपूर्ण कार्य है। एक प्रभावशाली रेडियो कॉमेंट्री के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:- 

  1. कॉमिंटेटर का चुनाव विषय या प्रसंग के अनुसार करना चाहिए। 
  2. कॉमिंटेटर को एकाग्रचित रहना चाहिए, क्योंकि कॉमेंट्री के दौरान उसकी दृष्टि कहीं अन्यत्र होगी तो वह अपने कार्य के प्रति न्याय नहीं कर सकता है। 
  3. कॉमिंटेटर को कॉमेंट्री शुरू करने से पहले स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए। संबंधित विषय को अच्छी तरह से न केवल पढ़ लेना चाहिए, बल्कि महत्वपूर्ण तथ्यों को कागज पर लिखकर अपने पास रख भी लेना चाहिए।  
  4. कॉमेंट्री शुरू करने के पहले कॉमिंटेटर को सम्बन्धित दृश्य की कल्पना कर लेनी चाहिए। इससे रणनीति बनाने में मदद मिलती है।  
  5. कॉमेंट्री में कॉमिंटेटर का स्वर घटना के अनुकूल होना चाहिए। आवश्यकतानुसार मौसम को भी घटनाक्रम या दृश्य से जोड़ना चाहिए। 
  6. कॉमिंटेटर की भाषा सरल और सबको समझने योग्य होनी चाहिए। ऐसी शब्दावली प्रयोग करना चाहिए जो घटनाओं के अनुकूल हो।  
  7. कॉमिंटेटर को कल्पनाशील और विवेकवान से होना चाहिए। ऐसा होने पर ही अनायास घटित दृश्य का वर्णन कर सकेगा। 
  8. कॉमिंटेटर को अपनी वाणी पर संयम करने का अभ्यास भी होना चाहिए। यहां संयमित वाणी से तात्पर्य जितना जरूरत हो, उतना बोलने से है। किसी विषय को न तो कम बोलना चाहिए और न तो अधिक।


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