रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों में संगीत की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत होती है। शेष प्रसारण समाचार व उच्चारित शब्दों का होता है। संगीत प्रसारण के लिए भी समय का विभाजन है, जैसे- शास्त्रीय संगीत के लिए 30 प्रतिशत, सुगम संगीत के लिए 20 प्रतिशत, लोक संगीत के लिए 12 प्रतिशत, फिल्म संगीत के लिए 20 प्रतिशत और पाश्चात्य संगीत के लिए चार प्रतिशत।
भारतीय संगीत की प्रतिष्ठित परंपरा के अनुसार शास्त्रीय संगीत के लिए परंपरागत प्रावधान है, जिसके तहत सुनिश्चित किया गया है कि शास्त्रीय संगीत को दिन में कब बजाया जा सकता है। रेडियो पर शास्त्रीय संगीत के प्रसारण के लिए 30 मिनट का समय सुनिश्चित किया गया है। शास्त्रीय संगीत को सजीव बनाए रखने में आकाशवाणी का महत्वपूर्ण योगदान है। आकाशवाणी में संगीत को सुरक्षित रखने और सम्मान प्रदान करने के लिए लगातार प्रयत्न होते रहे है। हिन्दुस्तानी व कर्नाटक शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहन देने के लिए 1952 से 1961 तक विभिन्न चरणों में योजनाएँ बनाकर क्रियान्वित किया गया। इसके तहत आकाशवणी के सभी केंद्रो पर स्वर परीक्षण समितियों के गठन का निर्णय लिया गया। ये समितियाँ हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत के लिए अलग-अलग बनाई गई। इनमें विशेषज्ञ संगीतकारों के साथ ही आकाशवाणी के अधिकारी को स्वर परीक्षण समिति में सम्मलित किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। स्थानीय केन्द्रों के स्वर परीक्षण के अतिरिक्त केन्द्रीय स्तर पर म्यूजिक ऑडिसन बोर्ड का गठन किया गया। यह व्यवस्था वर्तमान समय में भी लागू है।
आकाशवाणी में शास्त्रीय संगीत का अपना महत्व है। शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत गायन और वादन से संबंधित कलाकार स्वर परीक्षण समिति के समक्ष विभिन्न राग-रागनियों पर आधारित प्रस्तुतियाँ देते है। स्वर, लय और ताल में खरे उतरने पर उन्हें योग्य घोषित किया जाता है।
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