21वीं सदी का दूसरा दशक इंटरनेट के बेतहाशा वृद्धि का दशक है। इंटरनेट का भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में बोलबाला है। परिणामतः इंटरनेट के उपभोक्ताओं की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इंटरनेट इस तरह से शक्तिशाली जनसंचार माध्यम बनता चला गया। हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन और वाईफाई हॉट स्पॉट्स ने इंटरनेट को और अधिक मोबाइल व गतिशील बना दिया है। वेब के इस इंटरैक्टिव संसार को ‘वेब 2.0 प्रौद्योगिकी’ के नाम से जाना जाता है, जहां यूजर सूचनाएं न केवल अपलोड व डाउनलोड, बल्कि शेयर भी कर रहे हैं।
वेब 2.0 शब्द सामान्यतः ऐसे वेब प्रोग्रामों/एप्लीकेशन्स के लिए प्रयुक्त होता है, जो पारस्पारिक क्रियात्मक जानकारी बांटने, सूचनाओं के आदान प्रदान करने, उपयोगकर्ता को ध्यान में रख कर डिजाइन बनाने और वर्ल्ड वाइड वेब से जोड़ने की सुविधा प्रदान करते हैं। वेब 2.0 के उदाहरणों में वेब आधारित कम्यूनिटी/समुदाय, होस्ट सर्विस, वेब प्रोग्राम, सोशल नेटवर्किंग साइट, वीडियो शेयरिंग साइट, विकी, ब्लॉग, तथा मैशप (दो या अधिक स्त्रोतों से जानकारी एकत्रित करके बनाया गया वेब पेज) व फोक्सोनोमी (टैगिंग) शामिल हैं। एक वेब 2.0 साइट अपने उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ वेबसाइट की सामग्री देखने या बदलने की अनुमति देती है, जबकि नॉन-इंटरएक्टिव वेब साइटों के द्वारा उपयोगकर्ता किसी जानकारी को केवल उतना ही देख सकते हैं, जितनी जानकारी उन्हें देखने के लिए उपलब्ध कराई जाती है।
यह शब्द 2004 में ओ रेली मीडिया वेब 2.0 सम्मेलन के कारण टिम ओ रेली से जुड़ा हुआ है। हालांकि इस शब्द से वर्ल्ड वाइड वेब के नए संस्करण का पता चलता है, यह किसी तकनीकी विशेषताओं को अपडेट करने का उल्लेख नहीं करता, अपितु एक एंड यूजर/उपयोगकर्ता और सॉफ्टवेयर डेवलपर द्वारा वेब को प्रयोग करने के तरीकों में आये बदलावों को परिलक्षित करता है।
वर्तमान समय में कई बड़ी मीडिया कंपनियां इंटरनेट व्यवसाय में उतर आई। कई लोकप्रिय वेब ठिकानों का अधिग्रहण नामी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। 2005 में ‘न्यूज कॉरपोरेशन’ ने ‘माईस्पेस’ का अधिग्रहण किया। इसी प्रकार, 2006 में ‘गूगल’ ने ‘यूट्यूब’ को खरीदा।
तेजी से विकसित होते इंटरनेट ने वेब 2.0 का रास्ता बनाया है। इंटरनेट के इस विकास का सारथी बना है ब्रॉडबैंड। ब्रॉडबैंड से आशय उस विधि और प्रणाली या उस तरीके से है जिसके जरिए हम ऐसे इंटरनेट से जुड़ते हैं जिसमें सूचनाएं त्वरित गति से अपलोड व डाउनलोड की जा सकती है। जैसे- पहले डायलअप मोडेम के जरिए इंटरनेट खुलता था, अब अत्यंत तीव्र स्पीड बाले बॉडबैंड कनेक्शन आ गए हैं, जिन्हें हम 3जी (थर्ड जनेरेशन) व 4जी के नाम से जानते हैं। कई कम्पनियां कुछ बड़े देशों में 5जी शुरू करने की तैयारी में हैं। तेज इंटरनेट कनेक्शन यानी शक्तिशाली ब्रॉडबैंड के जरिए बड़ी से बड़ी फाइलें चुटकियों में इंटरनेट पर भेजी जा सकती हैं। डायलअप मोडेम में कभी एक संगीत की या फिल्म की फाइल खोलने में घंटों लग जाते थे, कनेक्शन एरर आ जाता था, लेकिन अब ब्रॉडबैंड ने उसकी गति में असाधारण तेजी ला दी है। घंटों का काम अब मिनटों या सेकेण्डों में होने लगा है।
ब्रॉडबैंड के लिए उपभोक्ताओं को अपने फोन के जरिए सैटेलाइट मोडेम, एक केबल मोडेम या डिजिटल सब्स्क्राइबर लाइन (डीएसएल) की दरकार होती है। डेस्कटॉप के साथ अब तो इंटरनेट कनेक्शन जोड़ने के लिए फोन की बाध्यता भी नहीं रह गई है। मीडिया कंपनियां कंप्यूटर के सीपीयू के साथ लगे यूएसबी सॉकेट में फिट होने लायक डूंगल निकाल चुकी हैं।
ब्रॉडबैंड की दुनिया में बेतार अर्थात वायरलेस तकनीक के कारण क्रांति आयी। आज के वेब को वायरलेस वेब भी कहा जाता है। मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है। इसमें और विस्तार देखा जा रहा है, लिहाजा इंटरनेट को मोबाइल तकनीक के साथ सामंजस्य बैठाने योग्य बना दिया गया है। लैपटॉप कंपयूटर इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वाईफाई तकनीक यानी वायरलैस फिडेलिटी तकनीक ने इंटरनेट को बेतार कर दिया है। आने वाले दिनों में यह तय माना जा रहा है कि डूंगल या किसी और माध्यम की जरूरत इंटरनेट के लिए नहीं रहेगी। वह मोबाइल फोन के नेटवर्क की तरह कमोबेश हर जगह उपलब्ध रहेगा।
मोबिलिटी यानी गतिशीलता आज के जनसंचार की एक प्रमुख विशेषता बन गई है। वाईफाई इस दिशा में पहला कदम माना जाता है। इसके आगे वाईमैक्स तकनीक है जो बेतार इंटरनेट को समस्त महानगरीय, शहरी, उपशहरी क्षेत्रों तक सुगम बना देगा। वाईफाई डिवाइस को कनेक्ट करने के लिए मद्धम शक्ति (लो-पावर) रेडियो सिग्नलों का इस्तेमाल करता है, वहीं वाईमैक्स वाईफाई जैसा ही है लेकिन कम दूरी या डेढ़ सौ से दो सौ फुट की दूरी को कवर करने के बजाय 16 किलोमीटर जितनी लम्बी दूरियों को अपने दायरे में लेता है। इस तरह वाइमैक्स नेटवर्क आज के सेलफोन नेटवर्क की तरह व्यापक होगा।
ब्रॉडबैंड की इसी व्यापकता ने वेब 2.0 को संभव किया है। विकसित होता इंटरनेट और इसका नया इंटरैक्टिव इस्तेमाल ही वेब 2.0 के रूप में जाता है। ये एक प्रारंभिक शब्दावली है और इसकी कई व्याख्याएं की जा सकती हैं लेकिन आमतौर पर दूसरी पीढ़ी यानी टूजी वेब सेवाओं को ये नाम दिया गया है। इसके तहत शेयरिंग और सहयोग आधारित सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें (फेसबुक, ट्विटर आदि), यूजर जनेरेटड वेबसाइटें जैसे यू ट्यूब (इसकी थीम ही है-ब्रॉडकास्ट योअरसेल्फ यानी खुद को प्रसारित करो) और सामूहिक भागीदारी की विकिपीडिया जैसी वेबसाइटें आती हैं। डब्ल्यूएपी, वैप मोबाइल फोन जैसी वायरलेस तकनीक में इंटरनेट संभव हो गया है। मल्टीमीडिया मैसेजिंग सिस्टम (एमएमएस) मोबाइल फोन में उपलब्ध ऐसी तकनीक है जिसके जरिए टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और तस्वीर सबकुछ भेजा जा सकता है। मोबाइल और सेलफोन-रेडियो, डिजिटल कैमरा, रिकॉर्डर, एमपी-3 प्लेयर, मूवी प्लेयर, वीडियोस्ट्रीमिंग डिवाइस, टीवी प्रोग्राम, जीपीएस, इंटरनेट-एक साथ कई रूपों में काम कर रहे हैं।
पहली पीढ़ी के वेब यानी वेब 1.0 में यूजर कंटेंट को उपभोग करते थे लेकिन वेब 2.0 में यूजर कंटेंट बना रहे हैं और उसे परस्पर शेयर भी कर रहे हैं। वेब 1.0 स्थिर था, वेब 2.0 डायनेमिक यानी गतिशील है। ऐसा नहीं है कि वेब 2.0 की गतिशीलता और तीव्रता और बहुआयामिता सिर्फ उपभोक्ताओं, यूजरों और ऑडियंस के लिए ही है और सबकुछ जनहित में ही है। वेब 2.0 एक व्यावसायिक उपक्रम के रूप में बहुत सफल है और बड़ी-बड़ी कंपनियां वेब के इस नए अवतार से भली भांति परिचित हैं। वे वेबसाइटों पर विज्ञापनों के जरिए या सोशल मीडिया नेटवर्कों में अप्रत्यक्ष रूप से राजस्व बटोरेने के लिए उत्सुक रहती हैं। वेब का बाजार बहुत तीव्र गति से फल-फूल रहा है। इंटरनेट एडवर्टाइजिंग एक बड़ा बिजनेस बन गया है। अरबों-खरबों डॉलरों का कारोबार इंटरनेट से जुड़ा है।
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