मानव जीवन में लाइट का विशेष महत्व है। इसके बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव की आंख तभी देख पाती हैं, जब लाइट परिवर्तित होकर उस पर पहुंचता है। विभिन्न रंगों के रूप में लाइट किसी भी वस्तु से टकराकर आंख की पुतली से होकर रेटिना तक पहुंचती है। फिर रेटिना से बनने वाली तस्वीर संदेश के रूप में हमारे मस्तिष्क में उतर जाती हैं। इसी तकनीक पर फोटोग्राफी के दौरान कैमरा भी काम करता है। मानव की आंख और कैमरा की तुलना करने पर पता चलता है कि किसी दृश्य को देखने हेतु कैमरा की तुलना में मानव की आंख अधिक सक्षम होती है। रंगों की बारिकीया पकड़ना हो या रात के समय कम प्रकाश में देखना हो, कैमरे की तुलना में मानव की आंख कई गुना अधिक कारगर होती है। इसलिए एक बात हमेशा याद रखनी होती है कि लाइटिंग कैमरे के लिए की जाती है, मानव के आंख के लिए नहीं।
फोटोग्राफी में लाइटिंग के तीन उद्देश्य होते हैं। पहला-विषय वस्तु को प्रकाशवान करना, क्योंकि जब तक विषय वस्तु पर समुचित प्रकाश नहीं होगा, तब तक कैमरे में उसकी अच्छी फोटोग्राफी नहीं की जा सकती है। लाइटिंग के माध्यम से फोटोग्राफ में यह बताने का प्रयास किया जाता है कि कौन सा समय चल रहा है। फोटोग्राफ को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि लाइट की मात्रा, रंग और दिशा बदलती रहती है। जैसे- सुबह और शाम के समय लाइट का रंग हल्का नारंगी होता है। इस दौरान छाया भी लम्बी बनती है। तीसरा- लाइट के मदद से फोटोग्राफ में विशेष प्रकार का भाव स्थापित किया जाता है। उपरोक्त आधार पर कहा जा सकता है कि लाइट एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विभिन्न लाइट स्रोतों को नियंत्रित करके किसी खास उद्देश्य के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
इस प्रकार फोटोग्राफी में लाइट का विशेष महत्व है, क्योंकि जो विषय वस्तु हमें दिखाई देते हैं, जिसके पीछे लाइट ही होता है। लाइट के अभाव में फोटोग्राफी की कल्पना नहीं की जा सकती है। विषय वस्तु पर पड़ने वाला प्रकाश ही परावर्तित होकर लैंस के रास्ते से कैमरे में कैद हो जाता है। लाइट की सही व्यवस्था न होने पर कैमरा विषय वस्तु को ठीक प्रकार से नहीं देख पाता है और दृश्य की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इसके साथ ही लाइट शॉट की कम्पोजिशन में एक महत्वपूर्ण तत्व होता है। लाइट के माध्यम से यह निर्धारित किया जा सकता है कि दृश्य में उपलब्ध विभिन्न तत्वों को कितना स्पष्ट या अस्पष्ट रिकोर्ड करना है। फोटोग्राफी में लाइट का प्रयोग करने का मुख्य कारण विषय वस्तु को प्रकाशमान करना होता है। कई बार विषय वस्तु को कलात्मक तरीके से दिखाने के लिए भी लाइट का प्रयोग किया जाता है। लाइट से ही निर्धारित होता है कि फोटोग्राफ में विषय वस्तु कैसे दिखाई देंगे। फोटोग्राफी में प्रयोग होने वाली लाइट निम्न प्रकार की होती है:-
डायरेक्ट और इनडायरेक्ट लाइट (Direct and Indirect Light)
फोटोग्राफी के दौरान लाइट की समझ इस बात पर निर्भर करती है कि लाइट का स्रोत क्या है? लाइट दो मुख्य की होती है। पहला- डायरेक्ट लाइट, और दूसरा- इनडायरेक्ट लाइट। विषय वस्तु पर सीधे पड़ने वाली लाइट को डायरेक्ट लाइट कहते हैं। यह इतनी तेज होती है कि उसके विपरीत दिशा में विषय वस्तु का प्रतिबिम्ब बन जाता है। लाइट जितनी तेज होती है, प्रतिबिम्ब भी उसी अनुपात में गहरा होता है। लाइट का मुख्य स्रोत सूर्य है। यदि सूर्य की किरणें सीधे विषय वस्तु पर पड़ती हैं तो उसे डायरेक्ट लाइट कहते हैं। इसके अलावा हाईलोजन से भी विषय वस्तु पर सीधी लाइट डाली जाती है तो उसे भी डायरेक्ट लाइट कहते हैं। ऐसी लाइट में विषय वस्तु की सपाट छवि बनती है, जिसमें बहुत कम गहराई होती है। कई बार गहराई का पता ही नहीं चलता है। नाटकीय छवि बनाने के लिए भी डायरेक्ट लाइट का प्रयोग किया जाता है।
इसके विपरीत जब विषय वस्तु पर लाइट सीधा नहीं पड़ती है तो उसे इनडायरेक्ट लाइट कहा जाता है। फोटोग्राफी के लिए इनडायरेक्ट लाइट को अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसमें विषय वस्तु का प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। स्टूडियो में फोटोग्राफी के दौरान डायरेक्ट लाइट को विभिन्न उपकरणों की मदद से इनडायरेक्ट लाइट में परिवर्तीत किया जाता है।
हार्ड और साफ्ट लाइट (Direct and Indirect Light)
फोटोग्राफी में प्रयोग होने वाली लाइटों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है। एक वह लाइट जो किसी एक दिशा में प्रकाश डालती है तथा दूसरा वह लाइट जो चारों तरफ होती है यानी जिसकी कोई दिशा नहीं होती है। जो लाइट किसी एक दिशा में प्रकाश डालती है, उसकी रोशनी काफी तेज होती है, जिसके चलते विषय वस्तु की छाया गहरी बनती है। इस प्रकार की लाइट को हार्ड लाइट कहा जाता है। इसके विपरित जिस लाइट की कोई दिशा नहीं होती और चारों तरफ फैली होती हैं और उसमें विषय वस्तु की छाया कम बनाती है। ऐसी लाइट को सॉफ्ट लाइट कहा जाता है। इन लाइटों को कई और नामों से भी जाना जाता है। जैसे- हार्ड लाइट को डायरेक्शनल लाइट कहा जाता है, क्योंकि इस लाइट की एक दिशा होती है और यह उस दिशा के विषय वस्तु को प्रकाशमान करती है। इसी प्रकार, सॉफ्ट लाइट को डिफ्यूज्ड लाइट कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी कोई एक दिशा नहीं होती है और यह अपने आस-पास के सभी विषयों को एक समान प्रकाशमान करती है।
हार्ड लाइट को फोकस लाइट भी कहा जाता है, क्योंकि यह किसी विषय विशेष को फोकस करके प्रयोग की जाती है। किसी विषय को प्रकाश देने के उद्देश्य से इस लाइट का प्रयोग किया जाता है। सॉफ्ट लाइट को फ्लड लाइट भी कहा जाता है, क्योंकि यह किसी विषय को ध्यान में रखकर प्रयोग नहीं की जाती है, बल्कि पूरे क्षेत्र को एक समान प्रकाशमान करती है। दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली लाइट का विश्लेषण किया जाए तो सामान्य तौर पर कमरों व गलियों में प्रयोग की जाने वाली लाइट फ्लड लाइट होती है। टॉर्च या गाड़ियों में प्रयोग होने वाली लाइट फोकस लाइट होती है। इस प्रकार वीडियो कार्यक्रमों में प्रयोग की जाने वाली लाइट अपनी प्रकृति के अनुसार या तो हार्ड लाइट होती है या फिर सॉफ्ट लाइट।
हालांकि फोटोग्राफी के लिए प्रयोग होने वाली कई लाइट ऐसी भी होती हैं, जिन्हें फ्लड लाइट के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है और फोकस लाइट के रूप में भी। इन लाइटों में यह सुविधा होती है कि उन्हें पूरे क्षेत्र को प्रकाशमान करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर किसी विषय विशेष पर केन्द्रित करके भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
थ्री-प्वाइंट लाइटिंग (Three-Point Lighting)
यह फोटोग्राफी के दौरान सर्वाधिक उपयोग होने वाली लाइटिंग सेट-अप है, जिसमें विषय वस्तु पर तीन तरफ से लाइट डाला जाता है। इसीलिए इसे थ्री-प्वाइंट लाइटिंग या त्रिकोण लाइटिंग कहा जाता है। थ्री-प्वाइंट लाइटिंग में विषय वस्तु को हाईलाइट करने के लिए की-लाइट का उपयोग किया जाता है। इससे उत्पन्न छाया को समाप्त करने के लिए फिल लाइट जलाई जाती है। इसके बाद, विषय वस्तु को बैकग्राउण्ट से अलग करने के लिए बैक लाइट का प्रयोग किया जाता है। इन लाइटों को त्रिकोण में उपयोग किया जाता है। विषय वस्तु के सामने क्रमशः की-लाइट और फिल लाइट का उपयोग किया जाता है, जबकि पीछे से बैकग्राउण्ट लाइट का इस्तेमाल किया जाता है। इस लाइटिंग सेट-अप से विषय वस्तु स्पष्ट रूप से उभरा हुआ दिखाई देता है। ज्यादातर फोटोग्राफी में इसी लाइटिंग तकनीकी का उपयोग किया जाता है। व्यवसायिक फोटोग्राफी में भी थ्री प्वाइंट लाइटिंग को महत्व दिया जाता है। थ्री प्वाइंट लाइटिंग को समझने के लिए क्रमशः की-लाइट, फिल लाइट और बैकग्राउण्ट लाइट को जानना जरूरी है।
- की-लाइट: यह लाइट व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण लाइट होती है। इस लाइट से ही विषय वस्तु को प्रकाशमान किया जाता है। फोटोग्राफी के दौरान कैमरे में कैद किये जाने वाले दृश्य पर इसी लाइट से प्रकाश डाला जाता है। कहने का तात्पर्य है कि फोटोग्राफी के लिए प्रकाश की व्यवस्था की-लाइट से की जाती है। ज्यादातर हार्ड लाइट को ही की-लाइट के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस लाइट की तीव्रता काफी तेज होती है, जिसके चलते विषय वस्तु की परछाई उत्पन्न होती है। सामान्यतः इसे विषय वस्तु के सामने 45 डिग्री पर लगाया जाता है।
- फिल लाइट: इस लाइट को की-लाइट से उत्पन्न होने वाली परछाई को समाप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। फिल लाइट को की-लाइट के समानांतर कैमरे के दूसरी ओर लगाया जाता है। अर्थात यह लाइट का उपयोग विषय वस्तु की परछाई के विपरीत दिशा में किया जाता है, जिससे विषय वस्तु की छाया समाप्त हो जाती है। फिल लाइट के लिए ज्यादातर साफ्ट लाइट का प्रयोग किया जाता है। जब की-लाइट को विषय वस्तु पर डाला जाता है, तब उसके विपरीत दिशा में अंधेरा छा जाता है। इसे तकनीकी भाषा में फालऑफ कहते हैं। जितनी अधिक क्षमता की की-लाइट का उपयोग किया जाता है, उतना ही फालऑफ अधिक बनता है। इसे समाप्त करने के लिए फिल लाइट का उपयोग किया जाता है।
- बैकग्राउण्ड लाइट: इस लाइट को विषय वस्तु के पीछे का दृश्य दिखाने के लिए किया जाता है। जिस विषय वस्तु के पीछे सेट लगा होता है, फोटोग्राफी के दौरान सेट को दिखाने के लिए बैकग्राउण्ड लाइट का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बैक लाइट के विपरीत दिशा से सेट पर डाला जाता है। इस लाइट को उसी दृश्यों में प्रयोग किया जाता है जिसमें बैकग्राउण्ड दिखाना होता है।
0 टिप्पणियाँ :