इंटरनेट सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि एक प्लेटफार्म है। इसका पूरा नाम इंटरनेशनल नेटवर्क है। इंटरनेट की सहायता से अलग-अलग स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों को आपस में जोडक़र सूचना या जानकारी को सम्प्रेषित करने की विशेष प्रणाली विकसित की गई है। यह नेटवर्काे का नेटवर्क है, जिसकी सहायता से समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं व किताबों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर न केवल प्रकाशित किया जा सकता है, बल्कि पढ़ा भी जा सकता है, जो कहीं भुगतान के बदले तो कहीं बिलकुल मुफ्त उपलब्ध हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक ग्लोबल नेटवर्क है, जिसमें हजारों छोटे नेटवर्क परस्पर सम्पर्क के लिए प्रोटोकॉल भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रोटोकॉल नियमों का संकलन वह भाषा है, जिसे नेटवर्क में परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट को ‘सूचना राजपथ’ व ‘अंतर्रजाल‘ कहा जाता हैं।
इंटरनेट से सूचनाओं का प्रवाह विभिन्न नेटवर्काे के जरिए अंतरिक्ष में स्थित एक काल्पनिक पथ से होता है, जिसे ‘साइबर स्पेस’ कहा जाता है। इस आधार पर इंटरनेट के अध्ययन को ‘साइबरनेटिक्स’ विधा के अंतर्गत् रखा गया है। ‘साइबरनेटिक्स’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो ग्रीक भाषा के ‘काइबरनैतीज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- कर्णधार। अर्थात् जो नाव का कर्ण नियंत्रित करें व दिशा दें।
इंटरनेट का इतिहास (History of Internet)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद (1960 के दशक में) अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप इंटरनेट का आविष्कार हुआ। उस समय अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग (पेंटागन) के वैज्ञानिक एक ऐसे कमाण्ड कंट्रोल को विकसित करना चाहते थे, जिस पर सोवियत संघ के परमाणु हमले का प्रभाव न पड़ेे। इसके लिए अमेरिकी वैज्ञानिको ने विकेंद्रित सत्ता वाला नेटवर्क बनाया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को बराबर का दर्जा दिया गया। इस नेटवर्क का उद्देश्य परमाणु हमले की स्थिति में अमेरिकी सूचना संसाधनों का संरक्षण करना था।
अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की पहल पर 2 सितंबर, 1969 को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और लॉस एंजिल्स में मौजूद दो कम्प्यूटरों के बीच पहली बार आंकड़ों का आदान-प्रदान किया गया। इसके बाद ‘एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ (ARPA) ने एक परियोजना शुरू किया, जिसमें अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के रिसर्च सेंटरों को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ा गया। इस परियोजना की सफलता के बाद अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालय भी स्वयं को नेटवर्क में शामिल करने की मांग करने लगे। 1970 में ARPA ने अपने नेटवर्क को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया। पहला, MIL NET और दूसरा, ARPA NET। प्रतिरक्षा विभाग को MIL NET से तथा गैर-प्रतिरक्षा विभाग के संस्थानों को ARPA NET से जोड़ा गया।
रे टॉम लिनसन ने 1972 में पहली बार ई-मेल का प्रयोग किया और यूजर आईडी बनाने के लिए @ का प्रयोग किया। 1973 में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल/इंटरनेट प्रोटोकाल (TPC/IP) को डिजाइन किया गया। इससे उपभोक्ताओं को फाइल डाउनलोड करने में मदद मिलने लगी। 1982 में इंटरनेट दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का साधन बन गया। तब तक इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 562 हो गयी थी, जो 1984 में बढ़कर 1024 हो गयी। इस प्रकार, ARPA NET की सफलता को देखते हुए अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ ने 1986 में NSF NET की शुरूआत की, जिसके माध्यम से विज्ञान से संबंधित रिसर्च सेंटरों को आपस में जोड़ा गया। यह नेटवर्क भी सफल रहा और धीरे-धीरे ARPA NET का स्थान लेने में कामयाब रहा।
1988 में मॉरिस नामक पहला वायरस इंटरनेट पर आया। 1989 में पहली बार मैकगिल यूनिवर्सिटी के पीटर ड्यूश ने इंटरनेट का इंडेक्स (अनुक्रमणिका) बनाने का प्रयास किया। यूरोपियन लेबोरेट्री फॉर पार्टिकल फीजिक्स के बर्नर्स-ली ने इंटरनेट पर सूचना के विवरण के लिए नई तकनीक विकसित किया, जिसे WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) कहा गया। वेब मूलतः हाईपरटेक्स्ट पर आधारित है, जो कि किसी इंटरनेट उपभोक्ता को इंटरनेट की विभिन्न साइट्स पर एक डाक्यूमेंट को दूसरे से जोड़ता है। 1990-91 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इंटरनेट को जनसाधारण को उपयोग के लिए उपलब्ध कराया गया।
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