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रविवार

कैमरा के प्रकार (Types of Camera)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 20, 2024    

 कैमरा (Camera) फोटोग्राफी के दौरान उपयोग किये जाने वाला एक उपकरण है। फोटोग्राफी के लिए पीनहोल कैमरा, व्यू कैमरा, काम्पैक्ट कैमरा, टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरा, सिंगल लैन्स रिफ्लैक्स कैमरा, इन्सटैंट कैमरा, डिजिटल कैमरा का उपयोग किया जाता है।  

  1. पिनहोल कैमरा (Pinhole Camera) : पिनहोल कैमरा एक साधारण कैमरा होता है, जिसमें लैंस नहीं लगा होता है। यह एक छोटे से एपर्चर (तथाकथित पिनहोल) की मदद फोटोग्राफी का कार्य करता है। अन्य शब्दों में कहें तो यह एक छोटे से छिद्र वाला लाइट-प्रूफ बॉक्स होता है, जिसमें दृश्य से प्रकाश एपर्चर के माध्यम से गुजरता है और बॉक्स की दूसरी दिशा में उल्टी छवि का निर्माण करता है। बाद में इसमें एक लैंस का उपयोग किया जाने लगा।

  2. व्यू कैमरा (View Camera: यह कैमरे बड़े आकार का होता हैं, जिसे स्टैण्ड पर लगाकर फोटोग्राफी का कार्य किया जाता है। व्यू कैमरा में व्यूफाइंडर नहीं होता है। फिल्म की स्थान पर एक व्यूफाइंडर स्कीन लगी होती है, जिसमें विषय-वस्तु या दृश्य को देखकर फोटोग्राफी की जा सकती है। इस कैमरे के व्यूफाइंडर में सीधे खड़े व्यक्ति का दृश्य उल्टा दिखाई देता है अर्थात सिर नीचे और पाँव ऊपर होता। ऐसे कैमरों को आगे और पीछे दोनों भागों में अलग-अलग संतुलित किया जाता है। व्यू कैमरा का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें न तो बहुत नजदीक (Extreme Closeup) की फोटोग्राफी की जा सकती है और न तो इनमें क्षेत्रीय-गहनता (Depth of Field) का ही सही अनुमान लगाया जा सकता है।
  3. कॉम्पैक्ट कैमरा (Compact camera) : यह छोटे आकार का कैमरा होता है, जिसमें लैन्स बदले की सुविधा नहीं होती है। हालांकि कॉम्पैक्ट कैमरा में अच्छी किस्म का लैन्स लगा होता है। बाजार में ऐसे कॉम्पैक्ट कैमरा भी उपलब्ध है, जिनमें जूम लैन्स पहले से ही लगा होता है। इनकी क्षेत्रीय-गहनता (Depth of Field) तीन फीट से अन्तत तक होती है। इनमें अच्छी फोटोग्राफी की क्षमता होती है। बाजार में ऐसे कॉम्पैक्ट कैमरा भी उपलब्ध हैं, जिनमें एक्सपोजर को नियन्त्रित करने के लिए स्वः चालित प्रणाली लगी होती है। कुछ ऐसे मॉडल भी आ गये हैं, जिनमें पहले से लगी फ्लैश की सुविधा होती है। इसके अलावा फोटोग्राफ पर दिन और वर्ष मुद्रित करने की सुविधा भी होती है। कॉम्पैक्ट कैमरा उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है, जिन्हें कभी-कभार फोटोग्राफी करनी होती है। ऐसे कैमरे से फोटो खींचना बहुत आसान होता है। विषय वस्तु को व्यू फाइंडर में से देखते हुए बटन दबा कर फोटो खींची जा सकती है। एपरचर या शटर की गति को बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। कॉम्पैक्ट कैमरों में फोटोग्राफी के दौरान उपभोक्ताओं को कुछ असुविधाओं का सामना भी करना पड़ता हैं। जैसे- इन कैमरों में अलग से फिल्टर, लैन्स, फ्लैश आदि लगाने की सुविधा नहीं होती है। इनसे खींचे गए फोटोग्राफ भी उतने शार्प नहीं होते, जितने कि किसी SLR कैमरा के होते हैं, क्योंकि कॉम्पैक्ट कैमरे का रैजोलूशन काफी कम होता है। कॉम्पैक्ट कैमरे का प्रयोग करके अच्छी फोटोग्राफी नहीं सीखी जा सकती, क्योंकि इसमें एपरचर, प्रकाश मीटर व शटर की गति का आवश्यकतानुसार अभ्यास करने की सुविधा नहीं होती है। पहले से लगे लैंस, फ्लैश आदि की एक निश्चित सीमा होती है। इनमें सीमित एपरचर की सुविधा के कारण तेज गति की फिल्म का प्रयोग किया जाता है। 
  4. टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरा (TLR- Twin Lens Reflex Cameraa) : TLR कैमरा में दो लैन्स होते हैं, जिनकी फोकल लैन्थ एक समान होती है। दोनों लैन्स एक-दूसरे के ऊपर लगे होते हैं। इनकी धूरी समतल और एक-दूसरे के समानान्तर होती है। ऊपर वाले लैन्स का प्रयोग विषय वस्तु या दृश्य को देखते हुए कम्पोज करने के लिए किया जाता है, जबकि नीचे वाले लैन्स का प्रयोग फिल्म पर वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाने के लिए किया जाता है। SLR कैमरे की तरह TLR कैमरे में भी ऊपर वाले लैन्स के माध्यम में खुले एपरचर के कारण प्रतिबिम्ब धुंधले शीशे की समतल स्क्रीन पर बनता है। यद्यपि टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरा में 120 या 220 आकार की फिल्मों का प्रयोग किया जाता है, इनमें ऐसा प्रावधान भी किया जाता है कि 35 मि.मी. आकार की फिल्म प्रयोग की जा सके। अधिकतर टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरों में लैन्स नहीं बदले जा सकते, परन्तु कुछ निर्माताओं ने ऐसे टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरे बनाए हैं, जिनमें लैन्स बदले जा सकते हैं। रोलिफ्लैक्स, मैमिया और हैसलब्लैंड प्रसिद्ध टविन लैन्स रिफ्लैक्स कैमरे हैं।
  5. सिंगल लैन्स रिफ्लैक्स कैमरा (SLR- Single Lens Reflex Camera) : अपने छोटे आकार और अन्य गुणों के कारण सिंगल लैन्स रिफ्लैक्स (SLR) कैमरा बहुत ही लोकप्रिय है। इस कैमरे की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके व्यू फाइंडर में हम  जैसा प्रतिबिम्ब देखते हैं, वैसा ही फोटोग्राफी खींचता है। SLR कैमरों में विषय वस्तु को देखने और फोटो को खींचने के लिए एक ही लैन्स का प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि इस कैमरे से हम उपयुक्त कम्पोजिशन बना सकते हैं और फोटो खींचते समय फोकस को शार्प करते हुए Depth of Field भी देख सकते हैं। लैन्स के पीछे लगा दर्पण (Plane Mirror) धुंधले शीशे की स्क्रीन पर प्रतिबिम्ब बनाता है और शटर का बटन दबाते ही शीशा ऊपर की ओर उठ जाता है। इस प्रकार, प्रकाश की किरणें फिल्म पर पड़ती हैं और दृश्य अंकित हो जाता है। आमतौर पर ऐसे कैमरों में यह दर्पण तब अपनी वास्तविक स्थिति में लौटकर आता है, जब फिल्म अगले फोटो के लिए आगे घूम जाती है, परन्तु मंहगे SLR कैमरों में ऐसा नहीं हैं। उनमें दर्पण ऊपर उठने के तुरन्त बाद अपनी वास्तविक स्थिति में लौट आता है। इन कैमरों में फोकल प्लेन शटर का प्रयोग किया जाता है। SLR कैमरे की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसके लैन्सों को बदलने की सुविधा होती है। 
  6. पोलेराइड कैमरा (Polaroid Camera) : पोलेराइड कैमरों को इन्सटैंट कैमरा भी कहा जाता हैं क्योंकि इनके द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ के प्रिंट्स को कुछ ही देर में प्राप्त किया जा सकता है। डार्करूम में जाकर फिल्म डेवलेप कर नेगेटिव बनाने और फोटोग्राफ प्रिंट बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। पोलेराइड कैमरे का आविष्कार सन् 1947 में संयुक्त राज्य अमेरिका के डा. एडविन लैंड (Dr- Edwin Land) ने किया था। ऐसे कैमरे से ब्लैक एंड व्हाइट और रंगीन दोनों प्रकार के फोटोग्राफ खींचे जा सकते हैं। इनमें फ्लैश का प्रयोग किया जा सकता है। इनके द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ गुणवत्ता की दृष्टि से परपरागत कैमरों के खींचे गये फोटोग्राफ की तरह नहीं होते हैं। फिर भी, इनसे जो फोटो खींचे जाते हैं वे स्पष्ट होते हैं। यह कैमरा कम समय में फोटोग्राफ खींचने के लिए अच्छा माना जाता है। पोलेराइड कैमरों में मिनिएचर लैब होता है, जो तुरंत फोटोग्राफ उपलब्ध कराता है।
  7. डिजिटल कैमरा (Digital Camera: डिजिटल कैमरे कंप्यूटर-क्रांति की देन हैं। फोटोग्राफी विधा में इन कैमरों के आगमन से हलचल मच गई है। फोटो पत्रकारिता के लिए डिजिटल कैमरे उपयुक्त होता है। इनमें न तो फिल्म लगाने की आवश्यकता होती है और न ही उसे डेवलप कराने की। क्लिक करने ही सामने का दृष्य कैमरे की मेमोरी में सेव हो जाता है, फिर उसे कंप्यूटर में डाउनलोड किया जा सकता है। मन चाहे दृश्य को ही कैमरे की मेमोरी में रखने और अनचाहे दृश्य को डीलीट (Delete) करने की सुविधा होती है। इसके प्रिंट की क्वालिटी भी आकर्षक होती है। डिजिटल कैमरों में दृश्य देखने के लिए व्यूफाइंडर के अलावा स्क्रीन भी लगा होती है। दृश्य को कंपोजिशन करने और अनावश्यक चीजों को निकालने की सुविधा उपलब्ध भी होती है। यह कैमरा काफी कीमती और रख-रखाव की दृष्टि सेे नाजुक होता है। इनमें कुछ ऐसे कैमरे होते हैं जिनमें फिल्म के स्थान पर फ्लापी लगाई जा सकती है। एक फ्लापी को भर जाने के बाद बदला भी जा सकता है। फ्लापी को कंप्यूटर में डाउनलोड करके प्रिंट आउट लिया जा सकता है। 

वर्तमान समय में सस्ते डिजिटल कैमरें भी बाजार में उपलब्ध हैं। इन कैमरों में लो (Low) लाइट में भी शॉट लेने की अद्भुत क्षमता होती है। लाइट के प्रति ये अत्यंत संवेदनशील होते हैं। जिस लाइट में SLR कैमरों से शॉट लेना संभव नहीं है, उसी लाइट में भी डिजिटल कैमरों से फोटोग्राफी की जा सकती है। लेकिन इनकी भी अपनी सीमाएं हैं। 

डिजिटल और परम्परागत फोटोग्राफी में अंतर

सुभाष सप्रू ने अपनी पुस्तक ‘फोटो पत्रकारिता’ में डिजिटल और पारंपरिक फोटोग्राफी के महत्त्व को निम्न प्रकार दर्शाया है-

  1. डिजिटल कैमरों में सी.डी. (Compact disk) पर प्रतिबिम्ब इलैक्ट्रॉनिक संकेतों से बनता है, जबकि पारंपरिक कैमरों में फिल्म पर लगे घोल (Emulsion) पर प्रकाश पड़ने पर रासायनिक प्रक्रिया होती है। 
  2. डिजिटल फोटोग्राफी में फोटो खींचने के उपरांत प्रतिबिम्ब को दर्ज करने तथा उसे स्टोर करने के लिए अलग-अलग स्थान होता है, जबकि पारंपरिक फोटोग्राफी में फिल्म एक्सपोज करने के बाद प्रतिबिम्ब को उसी स्थान पर स्टोर किया जा सकता है।
  3. डिजिटल कैमरों में प्रिंट बनाने से पहले नेगेटिव बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जबकि पारंपरिक कैमरों में प्रिंट बनाने के लिए नेगेटिव बनाना आवश्यक है।
  4. डिजिटल कैमरों में प्रिंट बनाने के लिए न ही रसायनों की आवश्यकता होती है और न ही डार्करूम की। जबकि पारंपरिक कैमरों में इसकी आवश्यकता अहम् होती है।
  5. डिजिटल फोटोग्राफी में रसायनों का प्रयोग न होने के कारण पर्यावरण के प्रदूषण की संभावना नहीं रहती जबकि पारंपरिक फोटोग्राफी में रसायनों का प्रयोग होने के कारण पर्यावरण प्रदूषित होता है।
  6. डिजिटल फोटोग्राफी में मैमोरी स्टिक या फ्लापी को कंप्यूटर में डालकर किसी फोटो इमेजिंग साफ्टवेयर की सहायता से फोटो में तब्दील करके उसका प्रिंट निकाला जा सकता है, जबकि पारंपरिक फोटोग्राफी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 
  7. डिजिटल कैमरों से कम प्रकाश में भी फ्लैश का प्रयोग किए बिना फोटो खींच सकते हैं, जबकि पारंपरिक कैमरों से कम प्रकाश में फोटो खींचना काफी कठीन कार्य है।
  8. डिजिटल कैमरो से खींचा गया फोटो यदि अच्छा न लगे तो उसे उसी समय मिटाकर उसके स्थान पर दोबारा खींच सकते हैं। जबकि पारंपरिक फोटोग्राफी में दोबारा फोटो खींचने के लिए नया नेगेटिव बनाना पड़ता है।


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