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रविवार

इंटरनेट : इतिहास और विकास (INTERNET: History and development)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 10, 2025    

इंटरनेट सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि एक प्लेटफार्म है। इसका पूरा नाम ‘इंटरनेशनल नेटवर्क’ है। इंटरनेट के माध्यम से अलग-अलग स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों को आपस में जोडकर सूचना एवं जानकारी सम्प्रेषित करने की विशेष प्रणाली विकसित की गई है। यह नेटवर्को का नेटवर्क है, जिसके माध्यम से समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं व किताबों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर न केवल प्रकाशित किया जा सकता है, बल्कि पढ़ा भी जा सकता है, जो कहीं भुगतान के बदले तो कहीं बिलकुल मुफ्त उपलब्ध हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक ‘ग्लोबल नेटवर्क’ है, जिसमें हजारों छोटे नेटवर्क परस्पर सम्पर्क के लिए प्रोटोकॉल भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रोटोकॉल नियमों का संकलन वह भाषा है, जिसे नेटवर्क में परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट को ‘सूचना राजपथ’ व ‘अंर्तजाल’ कहा जाता हैं। 

इंटरनेट से सूचनाओं का प्रवाह विभिन्न नेटवर्को के जरिए अंतरिक्ष में स्थित एक काल्पनिक पथ से होता है, जिसे ‘साइबर स्पेस’ कहा जाता है। इस आधार पर इंटरनेट के अध्ययन को ‘साइबरनेटिक्स’ विधा के अंतर्गत् रखा गया है। ‘साइबरनेटिक्स’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो ग्रीक भाषा के ‘काइबरनैतीज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- कर्णधार। अर्थात् जो नाव का कर्ण नियंत्रित करें, दिशा दें। 


इतिहास और विकास  


द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप इंटरनेट का आविष्कार हुआ। उस समय अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक एक ऐसे कमाण्ड कंट्रोल की संरचना विकसित करना चाहते थे, जिस पर सोवियत संघ के परमाणु हमले का प्रभाव न पड़ेे। इसके लिए अमेरिकी वैज्ञानिको ने विकेंद्रित सत्ता वाला नेटवर्क बनाया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को बराबर का दर्जा दिया गया। इस नेटवर्क का उद्देश्य परमाणु हमले की स्थिति में अमेरिकी सूचना संसाधनों का संरक्षण करना था।

अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की पहल पर 2 सितंबर, 1969 को ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया’ और ‘लॉस एंजिल्स’ में मौजूद दो कम्प्यूटरों के बीच पहली बार आंकड़ों का आदान-प्रदान किया गया। इसके बाद ‘एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ (एआरपीए) ने एक परियोजना शुरू की, जिसमें अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के रिसर्च सेंटरों को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ा गया। इस परियोजना की सफलता के बाद अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालय भी स्वयं को नेटवर्क में शामिल करने की मांग करने लगे। सन् 1970 में एआरपीए ने अपने नेटवर्क को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया। पहला, एमआईएल नेट और दूसरा, एआरपीए नेट। एमआईएल नेट से प्रतिरक्षा विभाग तथा एआरपीए नेट से गैर-प्रतिरक्षा विभाग के संस्थानों को जोड़ा गया। 


रे टॉम लिनसन ने पहली बार सन् 1972 में ई-मेल का प्रयोग किया और यूजर आईडी बनाने के लिए / का प्रयोग किया। सन् 1973 में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल/इंटरनेट प्रोटोकाल (टीसीपी/आईपी) को डिजाइन किया गया। इससे उपभोक्ताओं को फाइल डाउनलोड करने में मदद मिलने लगी। सन् 1983 में इंटरनेट दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का साधन बन गया। तब तक इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 562 हो गयी थी। सन् 1984 में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढकर 1024 हो गयी। इस प्रकार, एआरपीए नेट की सफलता को देखते हुए अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ ने सन् 1986 में एनएसएफ नेट की शुरूआत की, जिसके माध्यम से विज्ञान से संबंधित रिसर्च सेंटरों को आपस में जोड़ा गया। यह नेटवर्क भी सफल रहा और धीरे-धीरे एआरपीए नेट का स्थान लेने में कामयाब रहा।


भारत में इंटरनेट क विकास

भारत में इंटरनेट का आगमन एजूकेशनल एण्ड रिसर्च नेटवर्क के प्रयासों से 1987-88 में हो गया था, लेकिन तब सीमित संख्या में कुछ सभ्रांत लोग ही इसका उपयोग करते थे। 15 अगस्त, 1995 को विदेश संचार निगम लिमिटेड (VNSL) ने गेटवे सर्विस के तहत पहली बार भारतीय कम्प्यूटरों को दुनिया के कम्प्यूटरों से जोड़ा। तब कहीं जाकर इंटरनेट आम लोगों को उपयोग के लिये उपलब्ध हो सका। परिणामतः राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों के 32 हजार इंटरनेट उपभोक्ता हो गये। इसका शीघ्र ही मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर, पुणे, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, पटना आदि शहर में विस्तार किया गया। प्रारंभ में सॉफ्टवेयर निर्यातक, सलाहकार, वैज्ञानिक, प्रशिक्षण संस्थान और व्यावसायिक संस्थान इंटरनेट उपभोक्ता थे। नवम्बर 1998 में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी हुआ। 12 नवम्बर, 1998 को ‘सत्यम इनफो’ और ‘सी-डॉट’ के बीच लाइसेंस का समझौता हुआ। ‘सत्यम इनफो’ भारत की दूसरी ( VSNL के बाद) और निजी क्षेत्र की पहली इंटरनेट प्रदाता कम्पनी है, जो ‘सत्यम ऑनलाइन’ के नाम से देश के प्रमुख शहरों में इंटरनेट सुविधा प्रदान करती है। 1998 के अंत तक देश में करीब 7 लाख इंटरनेट उपभोक्ता थे। यह संख्या 31 दिसंबर, 2000 तक बढक़र 18 लाख हो गयी।   

भारत सरकार ने मार्च 2002 में देश के सभी जिला मुख्यालय को इंटरनेट से जोडऩे की योजना शुरू की।  इसके बाद इंटरनेट शहर की सीमा को तोडक़र गांवों में पहुंच गया। मार्च 2009 में टेलीकॉम रेङ्गयूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया कि इंटरनेट के क्षेत्र में देश में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। तब देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या एक करोड़ से अधिक बतायी गयी थी। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मार्च 2009 तक देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 120.85 लाख थी और वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत थी।  एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 90 करोड हो जायेगी। 

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