प्रकाश के माध्यम से वास्तविक चित्र बनाने का मुख्य साधन है- कैमरा। इसकी कल्पना 14वीं शताब्दी में तब की गई, जब एक व्यक्ति ने अंधेरे कमरे में वाह्य दृश्य का विलोम (उल्टा) प्रतिबिम्ब देखा। यह प्रतिबिम्ब दरवाजे में बने एक छोटे से छिद्र से गुजरते प्रकाश के कारण बन रहा था। यहीं से प्रारंभ हुई कैमरे के विकास की कहानी। इस प्रविधि का कैमरा आब्स्क्यूरा (Camera Obscura) के निर्माण में किया गया। कैमरा (Camera) यूनानी शब्द (Kameraa) से बना है, जो कैमरा आब्स्क्यूरा (Camera Obscura) का संक्षिप्त नाम है। लैटिन भाषा में कैमरा आब्स्क्यूरा (Camera Obscura) का शब्द का शाब्दिक अर्थ अंधेरा कमरा होता है।
प्रारंभ में कैमरा का कुछ कलाकारों द्वारा सफेद कागज पर बन रहे चित्र को पैंसिल या रंगों की सहायता से बनाने के लिए उपयोग किया। बाद में जोसफ नाइसफोर नाइप्स ने सफेद कागज पर बन रहे चित्र के आगे रसायनों से युक्त एक शीट रख दिया, जिस पर चित्र का फोटोग्राफ स्थाई तौर पर अंकित हो गया। इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि कैमरा फोटोग्राफी का महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
1569 में इटली के डेलापार्ट नामक व्यक्ति ने बाहर के बिम्ब को साफ और सूक्ष्म बनाने के लिए दरवाजे के छिद्र में एक लैंस लगाया। 1686 में जोहान जॉन ने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया जिसमें एक लैंस और एक दर्पण लगा हुआ था। इसमें बिना बिम्ब के सीधा दिखाई देता था। इसी सिद्धांत पर आधुनिक सिंगल लैंस रिफलैक्स कैमरा बना।
वर्तमान समय में अनेक प्रकार के कैमरे उपलब्ध हैं, जैसे- सिंगल लैन्स रिफ्लैक्स (SLR), टविन लैन्स रिफ्लैक्स (TLR) या इन्सटैंट कैमरा (Instant Carema), कैमरा (compact camera) इत्यादि, जिसके चलते लोग अक्सर पूछते हैं कि इनमें से कौन स कैमरा अच्छा है। आधुनिक ऑटो फोकस कैमरा (Auto Focus Camera) आने के बाद पूछा जाने लगा है कि मैन्यूअल (Manual) कैमरा सही है या फिर आधुनिक ऑटो फोकस कैमरा। वास्तव में, प्रत्येक कैमरे के अंदर यदि कुछ गुण है तो कुछ अवगुण भी हैं। प्रत्येक कैमरे में एक सिरे पर लैन्स और दूसरे पर प्रकाश ग्रहणशील फिल्म लगाने की व्यवस्था होती है। कैमरे को या तो धातु या फिर किसी सिन्थैटिक (Synthetic) पदार्थ से सांचे में ढाल कर बनाया जाता है। इसका आकार देते समय इस बात पर विशेष ध्यान रखा जाता है कि फोटोग्राफी के दौरान कैमरा पकड़ने में सुविधा जनक हो।
सामान्यतः कैमरा में दो कक्ष होते हैं, एक में फिल्म डाली जाती है जो फोटो खींचते समय दूसरे कक्ष में लिपटती जाती है, परन्तु दोनों कक्षों के बीच प्रकाश से प्रतिबिम्ब बनने की जगह होती है। इस फिल्म के पीछे एक प्लेट लगी होती है, जिसे कैमरा में फिल्म डालने के बाद बंद कर दिया जाता है। इससे फिल्म सीधी रहती है। कैमरे में ऐसा प्रावधान होता है कि चित्र खींचने के बाद जब फिल्म आगे की जाती है तो फिल्म में चित्र का नम्बर नजर आता है। आधुनिक कैमरों में हर चित्र खींचने के बाद फिल्म स्वयं आगे चलती रहती है और फ्रेम का नम्बर बदलता रहता है। कुछ कैमरों में कम रोशनी में फोटो खींचने के लिए फ्लैश पहले से ही लगा होता है। आधुनिक कैमरों में कुछ ऐसे कैमरे भी हैं, जिनमें ‘फिल-इन-फ्लैश’ का प्रावधान होता है। इसके अतिरिक्त भी फ्लैश लगाने की सुविधा होती है। डिजिटल कैमरे में फिल्म लगाने की न तो जगह होती है और न तो जरूरत। इसमें फिल्म के स्थान पर एसडी कार्ड या मेमोरी कार्ड का उपयोग किया जाता है, जिसका बार-बार उपयोग किया जा सकता है।
0 टिप्पणियाँ :