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शुक्रवार

न्यू मीडिया की अवधारणा (Concepts of New Media)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 25, 2025    

 सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) की मौजूदा शताब्दी में न्यू मीडिया की सहायता से विचारों, भावनाओं, जानकारियों व अनुभूतियों का बगैर सेंसरशिप के अत्यंत तीब्र गति से सम्प्रेषण हो रहा है। इसकी सर्वप्रथम परिकल्पना 19वीं शताब्दी में ’लोकतंत्रिक सहभागी मीडिया सिद्धांत’ के प्रतिपादक जर्मनी के मैकवेल ने की थी। हालांकि, उस वक्त दुनिया में इंटरनेट का आविष्कार नहीं हुआ था, लेकिन जर्मनी में लोकतंत्र का शुभारंभ जरूर हो चुका था। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में लोक प्रसारण अर्थात सर्वाजनिक प्रसारण के अंतर्गत समाज के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक समेत विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तरीय सुधार की अपेक्षा की गई थी, जिसे सार्वजनिक प्रसारण संगठनों ने पूरा नहीं किया। इसका मुख्य कारण मीडिया पर औद्योगिक घरानों का नियंत्रण, औद्योगिक घरानों का शासन-प्रशासन के साथ निकट सम्बन्ध, आर्थिक व सामाजिक दबाव तथा अभिजातपूर्ण व्यवहार था। ऐसी स्थिति में मैकवेल ने जनता की आवाज को सामने लाने के लिए वैकल्पिक मीडिया अर्थात न्यू मीडिया की परिकल्पना की। 


 19वीं शताब्दी के मध्य में न्यू मीडिया के रूप में अवतरित टेलीविजन ने संचार विशेषज्ञों को आश्चर्य चकित कर दिया। टोरंटो स्थित ’मीडिया स्टडीज सेंटर’ के संस्थापक मार्शल मैकलुहान ने 20वीं शताब्दी के मध्य में ’समाज पर टेलीविजन का प्रभाव’ विषयक अध्ययन किया तथा सन् 1964 में ’अंडरस्टैडिंग मीडिया: द एक्सटेंशन ऑफ मैन’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की। इनका मानना है कि संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए माध्यमों का विकास व विस्तार होना बेहद जरूरी है, क्योंकि संचार माध्यमों के विकास व विस्तार के साथ संदेश का प्रचार व प्रसार भी होगा। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि ’माध्यम ही संदेश है’ (Medium is the Message)  है। 

मार्शल मैकलुहान ने टेलीविजन को प्रचार-प्रसार का उन्मादी माध्यम बताया है। इन्होंने रेडियो को ‘ट्रइबल ड्रम‘ (Tribal Dram)] फोटो को दीवार रहित वैश्यालय (Brothel-without Walls) तथा टेलीविजन को यांत्रिक दुल्हन (Mechanical Bride) की संज्ञा दी है तथा वैश्विक गांव (Global Village) की परिकल्पना की है। जिसको तत्कालीक संचार विशेषज्ञों ने 'गप' कहकर मजाक उड़ाया। न्यू मीडिया के रूप में अवतरित टेलीविजन वर्तमान शताब्दी में लाभ-हानि के सिद्धांत पर औद्योगिक घरानों द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिसमें कार्यरत संपादक, समाचार वाचक, स्क्रीप्ट लेखक, संवाददाता, कैमरामैन व तकनीकी सहायक अपने नियोक्ता के इशारों पर गेट-कीपर का कार्य कर रहे हैं। शासन-प्रशासन को संचालित करने वाले राजनीतिज्ञ तथा सरकारी संगठनों में तैनात वरिष्ठ अधिकारी अपने-अपने तरीके से औद्योगिक घरानों को नियंत्रित करते हैं। विज्ञापनदाता भी अपने हित के लिए टेलीविजन चैनलों की विषय वस्तु को प्रभावित करते हैं। परिणामतः टेलीविजन चैनलों की विषय वस्तु आम जनों पर केंद्रीत नहीं होती है। यदि होती भी है तो उसमें प्रभावशाली व्यक्तियों का हित छुपा होता है। अतः टेलीविजन चैनल मैकवेल के न्यू मीडिया की परिकल्पना पर खरा नहीं उतरा है। 

शीत युद्धोंपरांत अवतरित इंटरनेट आधारित न्यू मीडिया किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि वर्तमान शताब्दी में इसका उपयोग कर किसी सूचना या जानकारी को पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने में सम्प्रेषित किया जा सकता है। ताजातरीन समाचारों व जानकारियों को प्राप्त करने के लिए समाचार पत्र प्रकाशित होने का इंतजार करने की आवश्यकता भी नहीं है, जो न्यू मीडिया के कारण संभव हुआ है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि ...आखिर न्यू मीडिया किसे कहते हैं तथा 21वीं शताब्दी में क्यों प्रासंगिक है? 

न्यू मीडिया : अधिकांश लोग न्यू मीडिया का अर्थ इंटरनेट आधारित पत्रकारिता से लगाते हैं, लेकिन न्यू मीडिया समाचारों, लेखों, सृजनात्क लेखन या पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया को परम्परागत मीडिया के आधार पर परिभाषित ही नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसके दायरे में मात्र समाचार पत्रों व टेलीविजन चैनलों की वेबसाइट्स मात्र नहीं आती हैं, बल्कि नौकरी ढूढ़ने व रिश्ता तलाशने वाली वेबसाइट्स, विभिन्न उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री करने वाले वेब पोर्टल्स, स्कूलों, कालेजों व विश्वविद्यालयों में प्रवेश, पाठ्य-सामग्री, परीक्षा-परिणाम से सम्बन्धित जानकारी देने वाली वेबसाइट्स, ब्लॉग्स, ई-मेल, ई-नीलामी, ई-पुस्तक, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, चैटिंग, ऑडियो-वीडियो शेयरिंग, यू-ट्यूब तथा सोशल नेटवर्किंग साइट्स (फेसबुक, ऑरकूट, ट्वीटर, लिक्ड-इन इत्यादि) से सम्बन्धित वेबसाइट्स व साफ्टवेयर भी न्यू मीडिया के अंतर्गत आते हैं।

शाब्दिक दृष्टि से न्यू मीडिया अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों New और Media के योग से बना है। New शब्द का अर्थ ’नया’ अर्थात ’नवीन’ तथा Media शब्द का अर्थ ’माध्यम’ होता है। इस दृष्टि से न्यू मीडिया अपने समय का सर्वाधिक नवीन माध्यम है। न्यू मीडिया का वर्तमान काल में जैसा स्वरूप है, वह न तो अतीत (भूत) काल में था और न तो भविष्यकाल में रहेगा, क्योंकि प्रारंभ में जब टेलीविजन आया था, तब उसे भी न्यू मीडिया कहा गया था। संचार व मीडिया विशेषज्ञों ने न्यू मीडिया को अपने-अपने तरीके से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:- 

  • लेव मैनोविच के अनुसार- न्यू मीडिया डिजिटल तकनीकों पर आधारित है, जो मॉड्यूलर डेटा, स्वचालन, और परिवर्तनशीलता (Variability) की विशेषताओं के साथ सूचना का उत्पादन और प्रसार करता है।
  • मैनुएल कास्टेल्स के अनुसार- न्यू मीडिया एक नेटवर्क समाज का हिस्सा है, जो विकेंद्रित संचार और सूचना के वैश्विक प्रवाह को सक्षम बनाता है।
  • हेनरी जेनकिन्स के अनुसार- न्यू मीडिया ‘कन्वर्जेन्स कल्चर’ को दर्शाता है, जहां विभिन्न मीडिया रूप (टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो) एक मंच पर एकीकृत होकर इंटरैक्टिव अनुभव प्रदान करते हैं।
  • क्ले शिर्की के अनुसार- न्यू मीडिया उपयोगकर्ता-जनित सामग्री और सामाजिक उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्तियों को सामग्री निर्माण और साझाकरण में सक्रिय भूमिका मिलती है।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में कहा जा सकता है कि न्यू मीडिया से तात्पर्य उन डिजिटल और इंटरनेट आधारित संचार माध्यमों से है, जो परंपरागत मीडिया (जैसे प्रिंट, रेडियो, टेलीविजन) से भिन्न हैं। यह इंटरैक्टिव, उपयोगकर्ता-केंद्रित, और प्रौद्योगिकी-संचालित होता है, जो सूचना के उत्पादन, वितरण और उपभोग को नया रूप देता है


मंगलवार

विज्ञापन प्रक्रिया (Process of advertising)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 15, 2025    

 भारत में विज्ञापन व्यवसाय का विकास स्वतंत्रता के बाद हुआ है। यह एक सृजनात्मक व्यवसाय है, जिसको अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए समय के साथ आरंभ और अन्त करना पड़ता है। एक व्यवसाय के रूप में विज्ञापन को संचालित करने में विज्ञापन एजेंसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विज्ञापन एजेंसी, विज्ञापन व्यवसाय में दक्ष व्यक्तियों का संगठन है जो विज्ञापन का निर्माण, वितरण, विज्ञापन अभियान का संचालन और मूल्यांकन करता है। इसकी प्रक्रिया को विज्ञापन प्रक्रिया कहते हैं, जिसे निम्र प्रकार से समझा जा सकता है:-


  1. उद्देश्य का चयनः विज्ञापन प्रक्रिया का पहला चरण उद्देश्य का चयन है, जो ब्राण्ड के विक्रय, पुनर्बिक्री में बढ़ोत्तरी, बाजार में उत्पाद की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी, सूचना प्रदान करने, पुनः स्मरण कराने, ध्यान आकर्षित करने,  प्रेरित करने तथा साख का निर्माण करने इत्यादि से सम्बन्धित हो सकता है।
  2. संदेश का निर्धारण: उद्देश्य निर्धारण के बाद विज्ञापन प्रक्रिया के दूसरे चरण में संदेश का निर्धारण किया जाता है, जो संदेश विज्ञापन की विषय वस्तु को स्पष्ट करता है। संदेश में विज्ञापित वस्तु का निर्धारण करते समय विशेष रूप से यह ध्यान में रखा जाता है कि उसमें लक्षित जनता या उपभोक्ता को प्रभावी तरीके से अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता हो। इस कार्य में उपभोक्ताओं की आवश्यकता व उनका व्यवहार मददगार होते हैं।
  3. लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचानः विज्ञापन प्रक्रिया के तीसरे चरण में लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचान की जाती है, जिसके बीच विज्ञापन के माध्यम से संदेश सम्प्रेषित होना है। लक्षित जनता की पहचान विज्ञापन को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए आवश्यक होता है। साथ ही माध्यम के चयन के लिए भी लक्षित जनता या उपभोक्ता की पहचान सहायक होती है।
  4. माध्यम का चुनाव: उपर्युक्त माध्यम का चुनाव विज्ञापन प्रक्रिया का चौथा चरण है। वर्तमान समाज में जन-माध्यामों की विविधता है। लक्षित जनता या उपभोक्ता तक पहंचने के लिए उपर्युक्त माध्यम का होना आवश्यक है। माध्यम का चुनाव करते समय लक्षित जनता या उपभोक्ता की स्थिति, उनके बीच माध्यम की पहुंच इत्यादि को ध्यान में रखा जाता है।
  5. संदेश का प्रसार: यह विज्ञापन प्रक्रिया का अंतिम चरण है। संदेश को लक्षित जनता और संभावित बाजार में उचित माध्यम की सहायता से प्रसारित किया जाता है। सघन रूप से प्रसारित संदेश की पहुंच अधिकांशतः लक्षित जनता तक होती है।


विज्ञापनः अर्थ एवं परिभाषा (Advertising : Meaning and Definition)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     जुलाई 08, 2025    

वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति अपने बढते कदमों के साथ ऊँचाईयों को छूने में लगा है। इस क्रम में तेज दौड़ने और सबसे आगे निकलने के लिए प्रत्येक व्यक्ति व संस्था विज्ञापन का सहारा लेता है, क्योंकि वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में विज्ञापन ही एक ऐसा साधन है जिसो प्रयोग कर अधिक से अधिक लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। ऐसे में मौजूदा समय को ‘विज्ञापन युग’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि आज का मानव विज्ञापन से घिरा हुआ है। नजर उठाकर जिधर देखिए उधर विज्ञापन ही नजर आता है। विज्ञापन जहां उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकता के हिसाब से नई-नई जानकारी देते हैं, वहीं विज्ञापनदाताओं को उनके उत्पाद, विचार या सेवा के प्रति अच्छी छवि का निर्माण कर आर्थिक लाभ भी पहुंचाते हैं। अतः कहा जा सकता है कि विज्ञापन दूसरों की जेब से पैसा निकालने का साधन है।

विज्ञापन का अर्थ 

सामान्यतः विज्ञापन किसी उत्पाद, विचार व सेवा के बारे में उपभोक्ता को जानकारी उपलब्ध करवाने की योजना है, जिससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता व बजट के अनुसार उत्पाद का चयन करने में मदद मिलती है तथा उसके मन में उस उत्पाद को खरीदने की इच्छा उत्पन्न होती है। इस प्रकार, विज्ञापन मानव जीवन में सहायक की भूमिका का निर्वाहन करता है। विज्ञापन का सर्वप्रथम उद्देश्य लक्षित उपभोक्ताओं को आर्कषक ढंग से किसी वस्तु या सेवा का सन्देश देना है।

विज्ञापन दो शब्दों ‘वि’ और ‘ज्ञापन’ के योग से बना है। ‘वि’ का अर्थ- ‘विशेष’ तथा ‘ज्ञापन’ का अर्थ ‘जानकारी या सूचना देना’ होता है। इस प्रकार, विज्ञापन शब्द का अर्थ ‘विशेष सूचना या जानकारी देना’ हुआ। विज्ञापन को अंग्रेजी में Advertising कहते हैं। । Advertising शब्द लैटिन भाषा के Advertor से बना है, जिसका अर्थ है- टू टर्न टू यानी किसी तरफ मोड़ना। फारसी भाषा में विज्ञापन को ‘जंग-ए-जरदारी’ कहा जाता है। बृहद हिन्दी शब्दकोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन व प्रार्थना है।

वर्तमान में विज्ञापन न केवल सूचना व संचार का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आया है, जिससे मानव की समस्त गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। इसके प्रभाव को जनमानस की गहराईयों तक देखा जा सकता है। विपणन के क्षेत्र में विज्ञापन एक शक्तिशाली औजार के रूप में काम करता है। किसी विक्रेता के लिए अपने ग्राहकों से अपनी बात कहने, समझाने और मनाने का सबसे सहज साधन है- विज्ञापन। इसका प्रकाशन या प्रसारण निःशुल्क नहीं होता है। इसके लिए एक विज्ञापनदाता या प्रायोजक की जरूरत होती है, जो विज्ञापन प्रकाशित या प्रसारित करने के बदले में संचार माध्यमों को शुल्क का भुगतान करता है। विज्ञापन को भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है।

भारतीय विद्वान के अनुसार

  • डा. नगेन्द्र के अनुसार- ‘‘विज्ञापन का अर्थ है पर्चा, परिपत्र, पोस्टर अथवा पत्र-पत्रिकाओं द्वारा सार्वजनिक घोषणा।"
  • डा. अर्जुन तिवारी के अनुसार- ‘‘विज्ञापन लाभ-हानि का प्रभावी माध्यम है तथा सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त उपकरण है।"
  • के. पी. नारायण के अनुसार- ‘‘विज्ञापन का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रचार-प्रसार से है।"
  • के. के. सक्सेना के अनुसार- “विज्ञापन का तात्पर्य एक ऐसी पद्धति से है जिसके द्वारा कुछ निश्चित वस्तुओं व सेवा के अस्तित्व तथा विशेषताओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जाता है।"

पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार

  • इग्लैण्ड के प्रधानमंत्री मलेडस्टोन के अनुसार- “व्यवसाय के लिए विज्ञापन का वही महत्व है जो उद्योग के लिए वाष्पशक्ति का।"
  • अमेरिकन मार्केटिंग एसोशिएसन के अनुसार- ‘‘विज्ञापन एक जाने पहचाने प्रस्तुतकर्ता द्वारा अपना व्यय करके की गई र्निव्यक्तिक प्रस्तुति है एवं विचारों, सेवाओं एवं वस्तुओं का संवर्धन है।"
  • विख्यात विज्ञापन विशेषज्ञ शैल्डन के अनुसार- ‘‘विज्ञापन वह व्यावसायिक शक्ति है जिससे मुद्रित शब्दों द्वारा विक्रय करने, उसकी ख्याति व साख निर्माण में सहायता मिलती है।
  • एम्बर्ट के अनुसार- “विज्ञापन एक ऐसी विद्या है जिसमें विपणन पारम्परिक ढंग से हटकर किया जाता है।"

अतः विज्ञापन एक ऐसा साधन है जिसके लिए समुचित व्यय करके अपने विचार, वस्तु या सेवा के प्रति जनाकर्षण उत्पन्न कर उसके प्रति जिज्ञासा और ललक लगाई जाती है तथा अपने विचार, वस्तु या सेवा की क्रय शक्ति का विस्तार किया जाता है। विज्ञापन के उदाहरण की बात करे तो अनेकों विज्ञापन आंखों के सामने नजर आने लगते हैं। विज्ञापन वस्तु की इच्छा जाग्रत होने पर मनुष्य के मन में बड़ी तेजी से धूमने लगते है। विज्ञापन ही मनुष्य की उस जाग्रत इच्छा कों शान्त करने में सहायक बनते है। विज्ञापन उपभोक्ता के साथ-साथ उत्पादक के लिए भी बाजार में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।


वेब 3.0 (Web 3.0)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     नवंबर 05, 2024    

 सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार की अनंत संभावनाओं को देखते हुए बड़े ही आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाली पीढ़ी का मीडिया अभूतपूर्व होगा। वेब की दो पीढ़ी विकसित हो चुकी है- वेब 1.0 और वेब 2.0। वर्तमान समय में वेब 3.0 की कल्पना की जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक वेब 3.0 इतनी आधुनिक होगी कि इसके सामने आज की तकनीक और इंटरनेट स्पीड कुछ भी नहीं होगी।

अपने दौर का सर्वाधिक लोकप्रिय अमेरिकी टीवी धारावाहिक ‘स्टार ट्रेक’ में भविष्य की न्यू मीडिया के नजारों को देखा जा चुका है। क्या आने वाला मीडिया ‘स्टार ट्रेक’ जैसी गल्प और कल्पनाओं को साकार कर देगा। इसका जवाब फौरन हां में भले ही न दिया जा सके, लेकिन इसे बिल्कुल न कहकर नकारा भी नहीं जा सकता है। 

संभवतः इन्हीं कारणों से वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली ने सिमैंटिक वेब की कल्पना की होगी। इस शब्दावली के जन्मदाता भी टिम बर्नर्स ली ही हैं। उन्होंने इसे वेब 3.0 का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना है। टिम बर्नर्स ली का कहना है कि सिमैंटिक वेब ही आगामी न्यूनता की ओर ले जाएगा। अतः वेब 3.0 को समझने से पहले सिमंटिक वेब को जानना जरूरी है।

सिमैटिक का सामान्य अर्थ शब्दार्थ विज्ञान है। यह एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें अर्थ का निष्पादन किया जाता है। इसे समझने की प्रक्रिया को सिमेंटिक कहा जाता है। वेब के संदर्भ में सिमेंटिक का अर्थ है वर्ल्ड वाइड वेव का ऐसा विस्तार है, जहां लोग एप्लीकेशंनों और वेबसाइटों की परिधियों से आगे जाकर कंटेंट को शेयर कर सकते हैं। इसे काल्पनिक विजन माना जाता है। सिमैंटिक वेब को डाटा का वेब (वेब ऑफ डाटा) भी कहा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वेब गतिविधि को नया बदलाव देगा। आज कई सिमैंटिक तकनीकें बनाई जा रही हैं, कई एप्लीकेशनों की खोज की जा रही है, ताकि वेब को और सहज, सुगम और सरल बनाया जा सके। ऐसा भी कहा जा सकता है कि सिमैंटिक वेब, कंप्यूटर को मनुष्य मस्तिष्क के समतुल्य करने की एक शुरुआत है।

टिम बर्नर्स ली, जेम्स हैंडलर और ओरा लासिला ने मई 2001 में मशहूर विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक अमेरिकन में सिमैंटिक वेब के बारे में सबसे पहले अपना शोध प्रकाशित किया था। टिम और अन्य के मुताबिक, ‘‘सिमैंटिक वेब, मौजूदा वेब का एक विस्तार है जिसमें सूचना को एक सटीक परिभाषित अर्थ दिया गया है, जिसमें कंप्यूटर ज्यादा कारगर है और जहां लोग सहयोग के साथ काम कर सकते हैं।‘‘

टिम बर्नर्स ली ने सिमैंटिक वेब को परिभाषित करते हुए कहा कि यह एक डाटा वेब है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मशीनों द्वारा परिवर्तित और परिष्कृत किया जा सकता है। उनके मुताबिक यह वेब एक साथ संदर्भ और सामग्री (कॉन्टेक्स्ट एंड कंटेंट) को पढ़ने और समझने की क्षमता वाला होगा।

यह सामग्रियों को फिल्टर कर सकेगा और यूजर के समक्ष सिर्फ वही सामग्री पेश करेगा जो सबसे प्रासंगिक हो, सबसे प्रासंगिक सोर्स से आई हों और सबसे ताजा हो। इस काम के लिए यूजर को अपनी सामग्री के संदर्भ वाली सूचना मुहैया करानी होगी, जिसका कि एक तरीका टैगिंग है।

कुल मिलाकर विचार ये है कि वेब, यूजर के इनपुट और कंटेंट के चरित्र-चित्रण का इस्तेमाल करेगा जो आगे चलकर नतीजतन सिमैंटिक और अर्थ आधारित गुणात्मक सर्च को संभव बनाएगा। इसके लिए एक नए प्रोटोकॉल, आरडीएफ रिसोर्स डिस्क्रिप्शन फ्रेमवर्क पर वर्ल्ड वाइल्ड वेब कंजेटियम डब्ल्यूसी काम कर रहा है। इसी प्रोटोकाल के जरिए वेब की हर तरह की सूचना या डाटा को कोड किया जाएगा। इसमें एक समान भाषा विकसित की जाएगी जो गुणात्मक सर्च को संभव कर सकेगी। 


लाइट (Light)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     नवंबर 05, 2024    

मानव जीवन में लाइट का विशेष महत्व है। इसके बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव की आंख तभी देख पाती हैं, जब लाइट परिवर्तित होकर उस पर पहुंचता है। विभिन्न रंगों के रूप में लाइट किसी भी वस्तु से टकराकर आंख की पुतली से होकर रेटिना तक पहुंचती है। फिर रेटिना से बनने वाली तस्वीर संदेश के रूप में हमारे मस्तिष्क में उतर जाती हैं। इसी तकनीक पर फोटोग्राफी के दौरान कैमरा भी काम करता है। मानव की आंख और कैमरा की तुलना करने पर पता चलता है कि किसी दृश्य को देखने हेतु कैमरा की तुलना में मानव की आंख अधिक सक्षम होती है। रंगों की बारिकीया पकड़ना हो या रात के समय कम प्रकाश में देखना हो, कैमरे की तुलना में मानव की आंख कई गुना अधिक कारगर होती है। इसलिए एक बात हमेशा याद रखनी होती है कि लाइटिंग कैमरे के लिए की जाती है, मानव के आंख के लिए नहीं।


सामान्यतः हम अपने जीवन में लाइटिंग से परिचत होते हैं। हम अपने-अपने घरों में लाइट का उपयोग करते हैं, लेकिन लाइटिंग के सौंदर्य बोध की तरफ हमारा ध्यान कम ही जाता है। हम अपने शयनकक्ष में नाइट लैम्प लगाते हैं, लेकिन इसके उद्देश्य पर गंभीरता से नहीं सोचते हैं। रेस्टोरेंट में लाइट की मात्रा कम क्यों होती है? इस पर भी हमारा ध्यान नहीं जाता है। दीवाली के पर्व पर हम अपने घरों में लाइटिंग के जरिये खुशियों का प्रदर्शन करते है।

फोटोग्राफी में लाइटिंग के तीन उद्देश्य होते हैं। पहला-विषय वस्तु को प्रकाशवान करना, क्योंकि जब तक विषय वस्तु पर समुचित प्रकाश नहीं होगा, तब तक कैमरे में उसकी अच्छी फोटोग्राफी नहीं की जा सकती है। लाइटिंग के माध्यम से फोटोग्राफ में यह बताने का प्रयास किया जाता है कि कौन सा समय चल रहा है। फोटोग्राफ को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि लाइट की मात्रा, रंग और दिशा बदलती रहती है। जैसे- सुबह और शाम के समय लाइट का रंग हल्का नारंगी होता है। इस दौरान छाया भी लम्बी बनती है। तीसरा- लाइट के मदद से फोटोग्राफ में विशेष प्रकार का भाव स्थापित किया जाता है। उपरोक्त आधार पर कहा जा सकता है कि लाइट एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विभिन्न लाइट स्रोतों को नियंत्रित करके किसी खास उद्देश्य के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार फोटोग्राफी में लाइट का विशेष महत्व है, क्योंकि जो विषय वस्तु हमें दिखाई देते हैं, जिसके पीछे लाइट ही होता है। लाइट के अभाव में फोटोग्राफी की कल्पना नहीं की जा सकती है। विषय वस्तु पर पड़ने वाला प्रकाश ही परावर्तित होकर लैंस के रास्ते से कैमरे में कैद हो जाता है। लाइट की सही व्यवस्था न होने पर कैमरा विषय वस्तु को ठीक प्रकार से नहीं देख पाता है और दृश्य की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इसके साथ ही लाइट शॉट की कम्पोजिशन में एक महत्वपूर्ण तत्व होता है। लाइट के माध्यम से यह निर्धारित किया जा सकता है कि दृश्य में उपलब्ध विभिन्न तत्वों को कितना स्पष्ट या अस्पष्ट रिकोर्ड करना है। फोटोग्राफी में लाइट का प्रयोग करने का मुख्य कारण विषय वस्तु को प्रकाशमान करना होता है। कई बार विषय वस्तु को कलात्मक तरीके से दिखाने के लिए भी लाइट का प्रयोग किया जाता है। लाइट से ही निर्धारित होता है कि फोटोग्राफ में विषय वस्तु कैसे दिखाई देंगे। फोटोग्राफी में प्रयोग होने वाली लाइट निम्न प्रकार की होती है:-

डायरेक्ट और इनडायरेक्ट लाइट  (Direct and Indirect Light)

फोटोग्राफी के दौरान लाइट की समझ इस बात पर निर्भर करती है कि लाइट का स्रोत क्या है? लाइट दो मुख्य की होती है। पहला- डायरेक्ट लाइट, और दूसरा- इनडायरेक्ट लाइट। विषय वस्तु पर सीधे पड़ने वाली लाइट को डायरेक्ट लाइट कहते हैं। यह इतनी तेज होती है कि उसके विपरीत दिशा में विषय वस्तु का प्रतिबिम्ब बन जाता है। लाइट जितनी तेज होती है, प्रतिबिम्ब भी उसी अनुपात में गहरा होता है। लाइट का मुख्य स्रोत सूर्य है। यदि सूर्य की किरणें सीधे विषय वस्तु पर पड़ती हैं तो उसे डायरेक्ट लाइट कहते हैं। इसके अलावा हाईलोजन से भी विषय वस्तु पर सीधी लाइट डाली जाती है तो उसे भी डायरेक्ट लाइट कहते हैं। ऐसी लाइट में विषय वस्तु की सपाट छवि बनती है, जिसमें बहुत कम गहराई होती है। कई बार गहराई का पता ही नहीं चलता है। नाटकीय छवि बनाने के लिए भी डायरेक्ट लाइट का प्रयोग किया जाता है। 

इसके विपरीत जब विषय वस्तु पर लाइट सीधा नहीं पड़ती है तो उसे इनडायरेक्ट लाइट कहा जाता है। फोटोग्राफी के लिए इनडायरेक्ट लाइट को अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसमें विषय वस्तु का प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। स्टूडियो में फोटोग्राफी के दौरान डायरेक्ट लाइट को विभिन्न उपकरणों की मदद से इनडायरेक्ट लाइट में परिवर्तीत किया जाता है।

हार्ड और साफ्ट लाइट  (Direct and Indirect Light)

फोटोग्राफी में प्रयोग होने वाली लाइटों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है। एक वह लाइट जो किसी एक दिशा में प्रकाश डालती है तथा दूसरा वह लाइट जो चारों तरफ होती है यानी जिसकी कोई दिशा नहीं होती है। जो लाइट किसी एक दिशा में प्रकाश डालती है, उसकी रोशनी काफी तेज होती है, जिसके चलते विषय वस्तु की छाया गहरी बनती है। इस प्रकार की लाइट को हार्ड लाइट कहा जाता है। इसके विपरित जिस लाइट की कोई दिशा नहीं होती और चारों तरफ फैली होती हैं और उसमें विषय वस्तु की छाया कम बनाती है। ऐसी लाइट को सॉफ्ट लाइट कहा जाता है। इन लाइटों को कई और नामों से भी जाना जाता है। जैसे- हार्ड लाइट को डायरेक्शनल लाइट कहा जाता है, क्योंकि इस लाइट की एक दिशा होती है और यह उस दिशा के विषय वस्तु को प्रकाशमान करती है। इसी प्रकार, सॉफ्ट लाइट को डिफ्यूज्ड लाइट कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी कोई एक दिशा नहीं होती है और यह अपने आस-पास के सभी विषयों को एक समान प्रकाशमान करती है।

हार्ड लाइट को फोकस लाइट भी कहा जाता है, क्योंकि यह किसी विषय विशेष को फोकस करके प्रयोग की जाती है। किसी विषय को प्रकाश देने के उद्देश्य से इस लाइट का प्रयोग किया जाता है। सॉफ्ट लाइट को फ्लड लाइट भी कहा जाता है, क्योंकि यह किसी विषय को ध्यान में रखकर प्रयोग नहीं की जाती है, बल्कि पूरे क्षेत्र को एक समान प्रकाशमान करती है। दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली लाइट का विश्लेषण किया जाए तो सामान्य तौर पर कमरों व गलियों में प्रयोग की जाने वाली लाइट फ्लड लाइट होती है। टॉर्च या गाड़ियों में प्रयोग होने वाली लाइट फोकस लाइट होती है। इस प्रकार वीडियो कार्यक्रमों में प्रयोग की जाने वाली लाइट अपनी प्रकृति के अनुसार या तो हार्ड लाइट होती है या फिर सॉफ्ट लाइट।

हालांकि फोटोग्राफी के लिए प्रयोग होने वाली कई लाइट ऐसी भी होती हैं, जिन्हें फ्लड लाइट के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है और फोकस लाइट के रूप में भी। इन लाइटों में यह सुविधा होती है कि उन्हें पूरे क्षेत्र को प्रकाशमान करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर किसी विषय विशेष पर केन्द्रित करके भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

थ्री-प्वाइंट लाइटिंग (Three-Point Lighting)

यह फोटोग्राफी के दौरान सर्वाधिक उपयोग होने वाली लाइटिंग सेट-अप है, जिसमें विषय वस्तु पर तीन तरफ से लाइट डाला जाता है। इसीलिए इसे थ्री-प्वाइंट लाइटिंग या त्रिकोण लाइटिंग कहा जाता है। थ्री-प्वाइंट लाइटिंग में विषय वस्तु को हाईलाइट करने के लिए की-लाइट का उपयोग किया जाता है। इससे उत्पन्न छाया को समाप्त करने के लिए फिल लाइट जलाई जाती है। इसके बाद, विषय वस्तु को बैकग्राउण्ट से अलग करने के लिए बैक लाइट का प्रयोग किया जाता है। इन लाइटों को त्रिकोण में उपयोग किया जाता है। विषय वस्तु के सामने क्रमशः की-लाइट और फिल लाइट का उपयोग किया जाता है, जबकि पीछे से बैकग्राउण्ट लाइट का इस्तेमाल किया जाता है। इस लाइटिंग सेट-अप से विषय वस्तु स्पष्ट रूप से उभरा हुआ दिखाई देता है। ज्यादातर फोटोग्राफी में इसी लाइटिंग तकनीकी का उपयोग किया जाता है। व्यवसायिक फोटोग्राफी में भी थ्री प्वाइंट लाइटिंग को महत्व दिया जाता है। थ्री प्वाइंट लाइटिंग को समझने के लिए क्रमशः की-लाइट, फिल लाइट और बैकग्राउण्ट लाइट को जानना जरूरी है।

  • की-लाइट: यह लाइट व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण लाइट होती है। इस लाइट से ही विषय वस्तु को प्रकाशमान किया जाता है। फोटोग्राफी के दौरान कैमरे में कैद किये जाने वाले दृश्य पर इसी लाइट से प्रकाश डाला जाता है। कहने का तात्पर्य है कि फोटोग्राफी के लिए प्रकाश की व्यवस्था की-लाइट से की जाती है। ज्यादातर हार्ड लाइट को ही की-लाइट के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस लाइट की तीव्रता काफी तेज होती है, जिसके चलते विषय वस्तु की परछाई उत्पन्न होती है। सामान्यतः इसे विषय वस्तु के सामने 45 डिग्री पर लगाया जाता है।
  • फिल लाइट: इस लाइट को की-लाइट से उत्पन्न होने वाली परछाई को समाप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। फिल लाइट को की-लाइट के समानांतर कैमरे के दूसरी ओर लगाया जाता है। अर्थात यह लाइट का उपयोग विषय वस्तु की परछाई के विपरीत दिशा में किया जाता है, जिससे विषय वस्तु की छाया समाप्त हो जाती है। फिल लाइट के लिए ज्यादातर साफ्ट लाइट का प्रयोग किया जाता है। जब की-लाइट को विषय वस्तु पर डाला जाता है, तब उसके विपरीत दिशा में अंधेरा छा जाता है। इसे तकनीकी भाषा में फालऑफ कहते हैं। जितनी अधिक क्षमता की की-लाइट का उपयोग किया जाता है, उतना ही फालऑफ अधिक बनता है। इसे समाप्त करने के लिए फिल लाइट का उपयोग किया जाता है।
  • बैकग्राउण्ड लाइट: इस लाइट को विषय वस्तु के पीछे का दृश्य दिखाने के लिए किया जाता है। जिस विषय वस्तु के पीछे सेट लगा होता है, फोटोग्राफी के दौरान सेट को दिखाने के लिए बैकग्राउण्ड लाइट का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बैक लाइट के विपरीत दिशा से सेट पर डाला जाता है। इस लाइट को उसी दृश्यों में प्रयोग किया जाता है जिसमें बैकग्राउण्ड दिखाना होता है। 

सोमवार

वेब 2.0 प्रौद्योगिकी: अर्थ एवं एप्लीकेशन्स (Web 2.0 technologies: Meaning and applications)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     नवंबर 04, 2024    

 21वीं सदी का दूसरा दशक इंटरनेट के बेतहाशा वृद्धि का दशक है। इंटरनेट का भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में बोलबाला है। परिणामतः इंटरनेट के उपभोक्ताओं की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इंटरनेट इस तरह से शक्तिशाली जनसंचार माध्यम बनता चला गया। हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन और वाईफाई हॉट स्पॉट्स ने इंटरनेट को और अधिक मोबाइल व गतिशील बना दिया है। वेब के इस इंटरैक्टिव संसार को ‘वेब 2.0 प्रौद्योगिकी’ के नाम से जाना जाता है, जहां यूजर सूचनाएं न केवल अपलोड व डाउनलोड, बल्कि शेयर भी कर रहे हैं। 

वेब 2.0 शब्द सामान्यतः ऐसे वेब प्रोग्रामों/एप्लीकेशन्स के लिए प्रयुक्त होता है, जो पारस्पारिक क्रियात्मक जानकारी बांटने, सूचनाओं के आदान प्रदान करने, उपयोगकर्ता को ध्यान में रख कर डिजाइन बनाने और वर्ल्ड वाइड वेब से जोड़ने की सुविधा प्रदान करते हैं। वेब 2.0 के उदाहरणों में वेब आधारित कम्यूनिटी/समुदाय, होस्ट सर्विस, वेब प्रोग्राम, सोशल नेटवर्किंग साइट, वीडियो शेयरिंग साइट, विकी, ब्लॉग, तथा मैशप (दो या अधिक स्त्रोतों से जानकारी एकत्रित करके बनाया गया वेब पेज) व फोक्सोनोमी (टैगिंग) शामिल हैं। एक वेब 2.0 साइट अपने उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ वेबसाइट की सामग्री देखने या बदलने की अनुमति देती है, जबकि नॉन-इंटरएक्टिव वेब साइटों के द्वारा उपयोगकर्ता किसी जानकारी को केवल उतना ही देख सकते हैं, जितनी जानकारी उन्हें देखने के लिए उपलब्ध कराई जाती है।

यह शब्द 2004 में ओ रेली मीडिया वेब 2.0 सम्मेलन के कारण टिम ओ रेली से जुड़ा हुआ है। हालांकि इस शब्द से वर्ल्ड वाइड वेब के नए संस्करण का पता चलता है, यह किसी तकनीकी विशेषताओं को अपडेट करने का उल्लेख नहीं करता, अपितु एक एंड यूजर/उपयोगकर्ता और सॉफ्टवेयर डेवलपर द्वारा वेब को प्रयोग करने के तरीकों में आये बदलावों को परिलक्षित करता है। 

वर्तमान समय में कई बड़ी मीडिया कंपनियां इंटरनेट व्यवसाय में उतर आई। कई लोकप्रिय वेब ठिकानों का अधिग्रहण नामी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। 2005 में ‘न्यूज कॉरपोरेशन’ ने ‘माईस्पेस’ का अधिग्रहण किया। इसी प्रकार, 2006 में ‘गूगल’ ने ‘यूट्यूब’ को खरीदा। 

तेजी से विकसित होते इंटरनेट ने वेब 2.0 का रास्ता बनाया है। इंटरनेट के इस विकास का सारथी बना है ब्रॉडबैंड। ब्रॉडबैंड से आशय उस विधि और प्रणाली या उस तरीके से है जिसके जरिए हम ऐसे इंटरनेट से जुड़ते हैं जिसमें सूचनाएं त्वरित गति से अपलोड व डाउनलोड की जा सकती है। जैसे- पहले डायलअप मोडेम के जरिए इंटरनेट खुलता था, अब अत्यंत तीव्र स्पीड बाले बॉडबैंड कनेक्शन आ गए हैं, जिन्हें हम 3जी (थर्ड जनेरेशन) व 4जी के नाम से जानते हैं। कई कम्पनियां कुछ बड़े देशों में 5जी शुरू करने की तैयारी में हैं। तेज इंटरनेट कनेक्शन यानी शक्तिशाली ब्रॉडबैंड के जरिए बड़ी से बड़ी फाइलें चुटकियों में इंटरनेट पर भेजी जा सकती हैं। डायलअप मोडेम में कभी एक संगीत की या फिल्म की फाइल खोलने में घंटों लग जाते थे, कनेक्शन एरर आ जाता था, लेकिन अब ब्रॉडबैंड ने उसकी गति में असाधारण तेजी ला दी है। घंटों का काम अब मिनटों या सेकेण्डों में होने लगा है।

ब्रॉडबैंड के लिए उपभोक्ताओं को अपने फोन के जरिए सैटेलाइट मोडेम, एक केबल मोडेम या डिजिटल सब्स्क्राइबर लाइन (डीएसएल) की दरकार होती है। डेस्कटॉप के साथ अब तो इंटरनेट कनेक्शन जोड़ने के लिए फोन की बाध्यता भी नहीं रह गई है। मीडिया कंपनियां कंप्यूटर के सीपीयू के साथ लगे यूएसबी सॉकेट में फिट होने लायक डूंगल निकाल चुकी हैं।

ब्रॉडबैंड की दुनिया में बेतार अर्थात वायरलेस तकनीक के कारण क्रांति आयी। आज के वेब को वायरलेस वेब भी कहा जाता है। मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है। इसमें और विस्तार देखा जा रहा है, लिहाजा इंटरनेट को मोबाइल तकनीक के साथ सामंजस्य बैठाने योग्य बना दिया गया है। लैपटॉप कंपयूटर इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वाईफाई तकनीक यानी वायरलैस फिडेलिटी तकनीक ने इंटरनेट को बेतार कर दिया है। आने वाले दिनों में यह तय माना जा रहा है कि डूंगल या किसी और माध्यम की जरूरत इंटरनेट के लिए नहीं रहेगी। वह मोबाइल फोन के नेटवर्क की तरह कमोबेश हर जगह उपलब्ध रहेगा।

मोबिलिटी यानी गतिशीलता आज के जनसंचार की एक प्रमुख विशेषता बन गई है। वाईफाई इस दिशा में पहला कदम माना जाता है। इसके आगे वाईमैक्स तकनीक है जो बेतार इंटरनेट को समस्त महानगरीय, शहरी, उपशहरी क्षेत्रों तक सुगम बना देगा। वाईफाई डिवाइस को कनेक्ट करने के लिए मद्धम शक्ति (लो-पावर) रेडियो सिग्नलों का इस्तेमाल करता है, वहीं वाईमैक्स वाईफाई जैसा ही है लेकिन कम दूरी या डेढ़ सौ से दो सौ फुट की दूरी को कवर करने के बजाय 16 किलोमीटर जितनी लम्बी दूरियों को अपने दायरे में लेता है। इस तरह वाइमैक्स नेटवर्क आज के सेलफोन नेटवर्क की तरह व्यापक होगा। 

ब्रॉडबैंड की इसी व्यापकता ने वेब 2.0 को संभव किया है। विकसित होता इंटरनेट और इसका नया इंटरैक्टिव इस्तेमाल ही वेब 2.0 के रूप में जाता है। ये एक प्रारंभिक शब्दावली है और इसकी कई व्याख्याएं की जा सकती हैं लेकिन आमतौर पर दूसरी पीढ़ी यानी टूजी वेब सेवाओं को ये नाम दिया गया है। इसके तहत शेयरिंग और सहयोग आधारित सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें (फेसबुक, ट्विटर आदि), यूजर जनेरेटड वेबसाइटें जैसे यू ट्यूब (इसकी थीम ही है-ब्रॉडकास्ट योअरसेल्फ यानी खुद को प्रसारित करो) और सामूहिक भागीदारी की विकिपीडिया जैसी वेबसाइटें आती हैं। डब्ल्यूएपी, वैप मोबाइल फोन जैसी वायरलेस तकनीक में इंटरनेट संभव हो गया है। मल्टीमीडिया मैसेजिंग सिस्टम (एमएमएस) मोबाइल फोन में उपलब्ध ऐसी तकनीक है जिसके जरिए टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो और तस्वीर सबकुछ भेजा जा सकता है। मोबाइल और सेलफोन-रेडियो, डिजिटल कैमरा, रिकॉर्डर, एमपी-3 प्लेयर, मूवी प्लेयर, वीडियोस्ट्रीमिंग डिवाइस, टीवी प्रोग्राम, जीपीएस, इंटरनेट-एक साथ कई रूपों में काम कर रहे हैं। 

पहली पीढ़ी के वेब यानी वेब 1.0 में यूजर कंटेंट को उपभोग करते थे लेकिन वेब 2.0 में यूजर कंटेंट बना रहे हैं और उसे परस्पर शेयर भी कर रहे हैं। वेब 1.0 स्थिर था, वेब 2.0 डायनेमिक यानी गतिशील है। ऐसा नहीं है कि वेब 2.0 की गतिशीलता और तीव्रता और बहुआयामिता सिर्फ उपभोक्ताओं, यूजरों और ऑडियंस के लिए ही है और सबकुछ जनहित में ही है। वेब 2.0 एक व्यावसायिक उपक्रम के रूप में बहुत सफल है और बड़ी-बड़ी कंपनियां वेब के इस नए अवतार से भली भांति परिचित हैं। वे वेबसाइटों पर विज्ञापनों के जरिए या सोशल मीडिया नेटवर्कों में अप्रत्यक्ष रूप से राजस्व बटोरेने के लिए उत्सुक रहती हैं। वेब का बाजार बहुत तीव्र गति से फल-फूल रहा है। इंटरनेट एडवर्टाइजिंग एक बड़ा बिजनेस बन गया है। अरबों-खरबों डॉलरों का कारोबार इंटरनेट से जुड़ा है।


बुधवार

बुलेटिन बोर्ड (Bulletin Board)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 23, 2024    

 बुलेटिन बोर्ड ऑनलाइन सार्वजनिक इलेक्ट्रॉनिक मंच है, जो अपने उपयोगकर्ताओं को संदेश पोस्ट करने तथा पढ़ने की अनुमति देता है। जब कोई सूचना को इंटरनेट के माध्यम से अनेक उपयोगकर्ताओं को एक साथ उपलब्ध करानी होती है, तो उसे बुलेटिन बोर्ड पर पोस्ट कर दिया जाता है। इस संदेश को बुलेटिन बोर्ड पर अनेक इंटरनेट उपयोगकर्ता देख-पढ़ सकते है। उन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते है। प्रतिक्रिया भी अनेक उपयोगकर्ताओं को देखने, पढ़ने के लिए उपलब्ध होती है। एसोसिएशन फॉर क्वालिटेटिव रिसर्च ने इसे ऑनलाइन फ़ोरम के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें शोध प्रतिभागी सवालों के जवाब देने, विचारों व जानकारियों को एक दूसरे के साथ साझा करने के लिए लॉग कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में एक मॉडरेटर भी भाग लेता है, जो उपयोगकर्ताओं के बातचीत को निर्देशित करता है। मॉडरेटर सवालों का जवाब देने और प्रासंगिक डेटा को सुविधाजनक बनाने में मदद करता है। 

सामान्यतः एक बुलेटिन बोर्ड किसी एक विषय विशेष पर केंद्रीत होता है। इसका उद्देश्य सम्बन्धित विषय की समस्त सूचनाएं उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध कराना होता है। इसे विश्व के किसी भी कोने में बैठकर देखा-पढ़ा जा सकता है। कुछ बुलेटिन बोर्ड पर अनेक उपयोगी सॉफ्टवेयर सशुल्क उपलब्ध होते हैं, तो कुछ पर निःशुल्क। इन्हें कोई भी उपयोगकर्ता अपने कंप्यूटर पर डाउनलोड कर सकता है।


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