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रविवार

टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रकार (Types of T.V. Programs)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 12, 2025    

 मानव जीवन में विविधताओं का भंडार है। खाना-पीना हो या कपड़ा पहनना, मित्र बनाना हो या मनोरंजन करना, पढ़ना-लिखना हो या सफर करना... सभी जगह विविधा उपलब्ध है। इसीलिए कहा जाता है कि-‘विभिन्नता में ही जीवन का रस है।‘ यहीं हाल टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों का भी है, क्योंकि टेलीविजन ऑन करने के बाद चैनल बदलते ही कार्यक्रम भी बदल जाते हैं। यहीं कारण है कि परिवार के सदस्य टेलीविजन का रिमोट बार-बार एक दूसरे से लेने का प्रयास करते हैं। कई बार एक ही समय में मां की पसंद का भजन-कीर्तन, बहन की पंसद का धारावाहिक, पिता के पसंद का समाचार और भाई के पसंद का क्रिकेट मैच प्रसारित होता है। ऐसी स्थिति में किसी एक को ही अपने पसंद का कार्यक्रम देखने को मिलता है तथा अन्य को नहीं।  

इस प्रकार, टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में विविधता होती है। कुछ कार्यक्रम निर्माता-निर्देशक के कल्पना की उपज होते हैं तो कुछ कार्यक्रम जीवन के यथार्थ का अनुभव कराने वाले। कुछ कार्यक्रम सच्ची घटनाओं पर आधारित होते हैं तो कुछ कार्यक्रम वास्तविकता और कल्पना का मिश्रण होता है। इस आधार पर टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के निम्नलिखित प्रकार हैं:-  

(A) निर्माण के आधार पर

  1. फिक्शन प्रोग्राम (Fiction Program) : टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले वे कार्यक्रम जो काल्पनिक कहानियों, पात्रों और घटनाओं पर आधारित होते हैं, उन्हें फिक्शन प्रोग्राम कहते हैं। ऐसे प्रोग्राम दर्शकों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं, जो कहानी लेखकों की रचनात्मकता और कल्पना पर आधारित होते है। फिक्शन प्रोग्रामिंग का उद्देश्य मुख्य रूप से मनोरंजन करना होता है, हालांकि यह सामाजिक मुद्दों को उठाने, भावनात्मक प्रभाव डालने तथा दर्शकों को प्रेरित करने का भी काम कर सकता है। टेलीविजन पर दीर्घकाल तक प्रसारित होने वाले धारावाहिक- ताड़क मेहता का उल्टा चश्मा (सब टीवी), ये रिश्ता क्या कहलाता है (स्टार प्लस), पवित्र रिश्ता (जी टीवी), हमलोग, घर एक मदिर, क्योंकि सास भी कभी बहू थी (दूरदर्शन) इत्यादि टेलीविजन पर दीर्घकाल तक प्रसारित होने वाले फिक्शन प्रोग्राम हैं। ऐसे फिक्शन प्रोग्राम दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़कर तनाव को कम करने, हँसी प्रदान करने और सामाजिक संदेश देने में सक्षम होते हैं। 
  2. नॉन-फिक्शन प्रोग्राम (Non-Fiction Program) : टेलीविजन पर ऐसे कार्यक्रम भी प्रसारित किये जाते है जो देश-दुनिया व पास-पड़ोस में होने वाली सच्ची घटनाओं पर आधारित होते हैं, जो वास्तविक आंकड़ों और तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं। इन कार्यक्रमों के प्रसारण का उद्देश्य समकालीन मुद्दों पर दर्शकों को शिक्षित करना होता हैं। ऐसे कार्यक्रमों को नॉन-फिक्शन प्रोग्राम कहते हैं। डॉक्यूमेंट्री, चैट शो, गीत-संगीत, नृत्य-शो, खेलकूद के कार्यक्रम, क्विज-शो, साक्षात्कार, परिचर्चा इत्यादि नॉन-फिक्शन प्रोग्राम हैं। नॉन-फिक्शन प्रोग्राम की रिकार्डिंग वास्तविक लोकेशन पर की जाती है, जो दर्शकों को वास्तविक दुनिया से जोड़ते हैं। 
  3. मिक्स्ड प्रोग्राम (Mixed Program): टेलीविजन पर कूुछ ऐसे कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं, जिनमें यर्थाथ के साथ-साथ कल्पना का मिश्रण भी होता है। ऐसे कार्यक्रमों को मिश्रित कार्यक्रम कहते हैं। जी टीवी पर प्रसारित धारावाहिक ‘जोधा अकबर‘ मिश्रित कार्यक्रम है, जिसका आधार भारतीय इतिहास है। यह बात अलग है कि दर्शको का मनोरंजन करने के लिए उसका काल्पनिक अभिनय किया गया है। दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण इत्यादि मिश्रित कार्यक्रम के उदाहरण हैं।

(B) प्रस्तुति के आधार पर 

  1. लाइव प्रोग्राम (Live Program) : अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘लाइव‘ का शाब्दिक अर्थ ‘सीधा‘ होता है। टेलीविजन प्रसारण के क्षेत्र में लाइव का तात्पर्य भी सीधा प्रसारण ही होता है। लाइव प्रसारण में ओबी वैन (आउट ब्राडकास्टिंग वैन) का उपयोग किया जाता है, जिसमें एक छोटे से वाहन के ऊपर छतरी लगी होती है तथा अंदर टेलीविजन प्रसारण का सामान रखा होता है, जिसके माध्यम से कैमरे के सामने के दृश्य को सीधा टेलीविजन स्क्रीन पर प्रसारित किया जाता है। वर्तमान समय में ओबी वैन की सहायता से क्रिकेट मैच, लालकिला के प्राचीर से प्रधानमंत्री के अभिभाषण, राजनीतिक दलों, केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों व जिम्मेदार व्यक्तियों के प्रेस कॉन्फ्रेेस का लाइव प्रसारण किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को लाइव कार्यक्रम कहा जाता है।  
  2. पैकेज्ड प्रोग्राम (Packaged Program) : वर्तमान समय में टेलीविजन चैनलों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण पैकेज्ड कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है। पैकेज्ड से तात्पर्य किसी कार्यक्रम को सजाकर टेलीविजन स्क्रीन पर प्रदर्शित करना है, क्योंकि प्रारंभ में टेलीविजन पर कार्यक्रमों का प्रसारण बड़े ही सामान्य तरीके से किया जाता था। एक सादे मेज के सामने बैठकर एंकर समाचार को पढ़ मात्र देता था, किन्तु वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। न्यू तकनीकी के आगमन के कारण समाचार ही नहीं अपितु सभी कार्यक्रमों को सजाने-सवारने के बाद दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इसमें रंग, सिग्नेचर ट्यून, स्क्रिप्ट तथा वीडियो फुटेज का विशेष योगदान होता है।
  3. मिक्स्ड प्रोग्राम (Mixed Program) : टेलीविजन पर कुछ ऐसी प्रस्तुति भी होती हैं, जिनमें लाइव और पैकेज्ड तत्वों का संयोजन होता है। ऐसी प्रस्तुति को मिक्स्ड प्रोग्राम कहते हैं। यह प्रोग्रामिंग दर्शकों को दोनों का सर्वश्रेष्ठ अनुभव कराते हैं, क्योंकि इनमें लाइव की तात्कालिकता और पैकेज्ड की गुणवत्ता होती है। रियलिटी शो इंडियन आइडियन मिक्स्ड प्रोग्राम का उदाहरण है, क्योंकि इसमें लाइव परफॉर्मेंस के साथ-साथ पहले से रिकॉर्डेड बैकग्राउंड स्टोरीज़ भी होती हैं। मिक्स्ड प्रोग्राम दर्शकों को एक गतिशील और आकर्षक अनुभव प्रदान करते हैं। यह लाइव की ताज़गी और पैकेज्ड की पॉलिश्ड प्रस्तुति को मिलाकर दर्शकों को बांधते है।

टेलीविजन प्रोग्रामों की विविधता, चाहे वह प्रकृति (फिक्शन, नॉन-फिक्शन, मिक्स्ड) के आधार पर हो या प्रस्तुति (लाइव, पैकेज्ड, मिक्स्ड) के आधार पर दर्शकों को मनोरंजन, शिक्षा और प्रेरणा प्रदान करते है। फिक्शन प्रोग्राम्स दर्शकों को काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं, नॉन-फिक्शन वास्तविकता से जोड़ते हैं और मिक्स्ड दोनों का संतुलन बनाते हैं। इसी तरह, लाइव प्रोग्रामिंग तात्कालिकता और उत्साह प्रदान करती है, पैकेज्ड प्रोग्रामिंग गुणवत्ता व नियंत्रण सुनिश्चित करती है। मिक्स्ड प्रोग्राम दोनों का सर्वश्रेष्ठ मिश्रण होता है। यह विविधता सुनिश्चित करती है कि हर दर्शक के लिए टेलीविजन पर कुछ न कुछ है।


टेलीविजन की ताकत और कमजोरी (Strengths and weaknesses of television)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 12, 2025    

 टेलीविजन की मदद से किसी भी घटना से जुड़ी तस्वीरों को न केवल आंखों से देखा जा सकता है, बल्कि उससे जुड़ी जानकारियों को कानों से सुना भी जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आंखों से देखी गई घटनाएं मानव को अधिक समय तक याद रहती हैं तथा उनका प्रभाव भी जीवन पर काफी अधिक पड़ता है। यह टेलीविजन की निम्नलिखित ताकतों के कारण ही संभव होता है। 

1. दृश्य-श्रव्य माध्यम: टेलीविजन संचार का दृश्य-श्रव्य माध्यम है, क्योंकि इसकी सहायता से हम मात्र सूचना/जानकारी को प्राप्त ही नहीं कर सकते हैं, अपितु उन्हें देख और सुन भी सकते हैं। अतः यह संचार का ऐसा माध्यम है जो दृश्यों और ध्वनियों को सम्मिश्रित कर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।

2. दर्शकों की विविधता: टेलीविजन भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जो न केवल भौगोलिक दृष्टि से अलग-अलग होते हैं, बल्कि शैक्षणिक, रुचि, अनुभव, सामाजिक, आर्थिक, लिंग, धर्म, समुदाय, संस्कृति आदि के आधार पर भी विविधता होती है।

3. प्रसारण की गति: रेडियो की तुलना में टेलीविजन के माध्यम से भेजी जाने वाली सूचना अपेक्षाकृत धीमी गति से पहुँचती है, क्योंकि तकनीकी जटिलताओं व बाध्यताओं के कारण विभिन्न घटनाओं में समय लगता है, किन्तु अपने दर्शकों के पास लगभग एक ही समय में पहुंचती हैं।

4. आर्थिक पक्ष: टेलीविजन संचार का सस्ता माध्यम है, जिसके चलते कम आय के लोग भी आसानी से खरीद लेते हैं। बाजार में प्रतिस्पर्धा के चलते आसान किश्तों में टेलीविजन उपलब्ध है, जिसके चलते जन-सामान्य तक इसकी पहुंच हो गई है। 

5. एकाग्रता में वृद्धि: टेलीविजन कार्यक्रम देखने और समझने के लिए रेडियो की तुलना में अधिक एकाग्रचित्त होने की जरूरत पड़ती है। कहने का तात्पर्य है कि टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रमों को देखते समय कोई अन्य कार्य करना संभव नहीं होता है। 

6. सरल तकनीकी: टेलीविजन सरल तकनीकी वाला संचार माध्यम है, जिसके चलते इसे आपरेट करने में अधिक तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। तभी तो छोटे बच्चों के साथ-साथ कम पढ़े-लिखे तथा अशिक्षित व्यक्ति आसानी से इसका उपयोग कर लेते हैं। 

कमजोरी

  1. टेलीविजन के माध्यम से संचारक से प्रापक की ओर सूचना का सम्प्रेषण तो सम्भव है, परन्तु प्रापक की प्रतिक्रिया को जानना संचारक के लिए संभव नहीं है।  
  2. टेलीविजन से शिक्षा ग्रहण करने के लिए अधिक ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता होती है।
  3. टेलीविजन के उपयोग के लिए बिजली तथा सूचना प्रसारण जैसी सुविधाओं का होना आवश्यक है, जो इसके उपयोग को सीमित करता है।
  4. टेलीविजन का बच्चों के शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, संवेगात्मक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  5. टेलीविजन संचार का एक तरफा माध्यम है।


शुक्रवार

टेलीविजन की विशेषताएँ (Characteristics of television)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 10, 2025    

टेलीविजन एक प्रमुख संचार माध्यम है, जो दृश्य और श्रव्य तत्वों का संयोजन करके दर्शकों के लिए सूचना, शिक्षा और मनोरंजन से सम्बन्धित कार्यक्रमों का प्रसारण करता है। इसका आविष्कार 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जॉन लोगी बेयर्ड ने किया। भारत में टेलीविजन का प्रसारण 1959 में प्रारंभ हुआ, जो वर्तमान समय में करोड़ों घरों में मौजूद है। टेलीविजन की विशेषताएँ इसे रेडियो, अखबार या इंटरनेट से अलग बनाती हैं। यह न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तनों का उत्प्रेरक भी है।


इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:- 

1. दृश्य-श्रव्य माध्यम: टेलीविजन की सबसे प्रमुख विशेषता इसका दृश्य-श्रव्य (ऑडियो-विजुअल) स्वरूप है। यह केवल ध्वनि या चित्र नहीं, बल्कि दोनों का जीवंत संयोजन प्रस्तुत करता है। दृश्य तत्व जैसे चित्र, रंग, गति और अभिनय दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं, जबकि श्रव्य तत्व संवाद, संगीत और ध्वनि प्रभाव गहराई प्रदान करते हैं। उदाहरणस्वरूप, एक समाचार प्रसारण में एंकर की आवाज के साथ घटनास्थल के वीडियो फुटेज दर्शक को घटना की सच्चाई का अहसास कराते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार दृश्य-श्रव्य माध्यम स्मृति को 65 प्रतिशत तक मजबूत करता है, जबकि केवल श्रव्य माध्यम 10 प्रतिशत ही प्रभावी होता है। भारत में दूरदर्शन के धारावाहिक जैसे ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने इसी विशेषता से करोड़ों दर्शकों को बांधा, जहां दृश्यों ने पौराणिक कथाओं को जीवंत कर दिया। 

2. विस्तृत पहुंच और व्यापक प्रभाव: टेलीविजन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता इसकी विस्तृत पहुंच है। यह सैटेलाइट, केबल और डिजिटल प्रसारण के माध्यम से ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक लाखों-करोड़ों दर्शकों तक पहुँचता है। भारत में दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क ने 1980 के दशक में पूरे देश को जोड़ा, जबकि आज एक हजार से अधिक चैनल उपलब्ध हैं। वैश्विक स्तर पर, बीबीसी या सीएनएन जैसे चैनल अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को तुरंत प्रसारित करते हैं। यह विशेषता इसे राजनीतिक अभियानों, चुनावों और आपातकालीन सूचनाओं के लिए आदर्श बनाती है। उदाहरण के लिए 2020 के कोविड-19 महामारी के दौरान टीवी ने लॉकडाउन नियमों और स्वास्थ्य जागरूकता को घर-घर पहुँचाया। हालांकि, डिजिटल विभाजन एक चुनौती है, लेकिन जीयो और एयरटेल जैसे डीटीएच सेवाओं ने इसे कम किया है। टेलीविजन की पहुंच न केवल भौगोलिक है, बल्कि सामाजिक भी यह सभी वर्गों, जातियों और भाषाओं के लोगों को एक मंच पर लाता है, जिससे सामाजिक एकीकरण बढ़ता है।

3. कार्यक्रमों की विविधता: टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में विविधता इसे बहुमुखी बनाता है। समाचार चैनल ताजा अपडेट देते हैं, मनोरंजन चैनल धारावाहिक और रियलिटी शो प्रसारित करते हैं, जबकि खेल चैनल लाइव मैच दिखाते हैं। शैक्षिक कार्यक्रम जैसे डिशक्वरी चैनल के वृत्तचित्र या इग्नू के दूरस्थ शिक्षा प्रसारण ज्ञानवर्धक होते हैं। भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के चैनल स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने टीवी को स्ट्रीमिंग के साथ एकीकृत कर दिया है, जहाँ दर्शक अपनी पसंद का कंटेंट चुन सकते हैं। यह विविधता दर्शकों की उम्र, रुचि और पृष्ठभूमि के अनुसार अनुकूलित होती है, लेकिन कभी-कभी सनसनीखेज सामग्री नकारात्मक प्रभाव भी डालती है। फिर भी, यह विशेषता टीवी को परिवारिक मनोरंजन का केंद्र बनाती है।

4. तात्कालिकता और लाइव प्रसारण: टेलीविजन की तात्कालिकता इसे अन्य माध्यमों से श्रेष्ठ बनाती है। लाइव प्रसारण के माध्यम से घटनाएँ वास्तविक समय में दिखाई जाती हैं, जैसे ओलंपिक खेल या संसद सत्र। 1969 के मून लैंडिंग प्रसारण ने दुनिया को एक साथ जोड़ा। भारत में 1990 के दशक में क्रिकेट विश्व कप के लाइव मैचों ने टीवी क्रांति ला दी। तकनीकी रूप से, 5जी और फाइबर ऑप्टिक्स ने लाइव स्ट्रीमिंग को बिना बफरिंग के संभव बनाया है। यह विशेषता आपदा प्रबंधन में उपयोगी है, जैसे 2004 के सुनामी या 2013 के उत्तराखंड बाढ़ में राहत सूचनाएँ। हालांकि, लाइव प्रसारण में त्रुटियाँ (जैसे गलत रिपोर्टिंग) तेजी से फैल सकती हैं, जिसके लिए फैक्ट-चेकिंग आवश्यक है।

5. मनोरंजन, शिक्षा और जागरूकता का संयोजन: टेलीविजन मनोरंजन को शिक्षा से जोड़ता है। कार्यक्रम जैसे सत्यमेव जयते ने सामाजिक मुद्दों (महिला सशक्तिकरण, बाल विवाह) पर जागरूकता फैलाई। शैक्षिक चैनल जैसे खान अकादमी की टीवी वर्जन बच्चों को सीखने में मदद करते हैं। विज्ञान कार्यक्रम पर्यावरण जागरूकता बढ़ाते हैं। भारत सरकार के ‘मन की बात’ जैसे कार्यक्रम नीतियों को जन-जन तक पहुँचाते हैं। यह विशेषता टीवी को ‘इन्फोटेनमेंट’ का माध्यम बनाती है, जहाँ मनोरंजन के बहाने शिक्षा दी जाती है।

6. विज्ञापन और आर्थिक महत्व: टेलीविजन विज्ञापन का शक्तिशाली माध्यम है। विज्ञापनदाता उत्पादों को दृश्य अपील से बेचते हैं, जैसे अमूल के हास्यपूर्ण ऐड। भारत में टीवी विज्ञापन उद्योग 2023 में 100 बिलियन रुपये का था। यह विशेषता ब्रांड बिल्डिंग में सहायक है, लेकिन ओवर-कमर्शियलाइजेशन दर्शकों को परेशान कर सकता है।

7. तकनीकी उन्नयन और स्मार्ट फीचर्स: आधुनिक टीवी में एलईडी और ओएलईडी स्क्रीन, स्मार्ट फीचर्स, वॉयस कंट्रोल और इंटरनेट इंटीग्रेशन हैं। 8K रिज़ॉल्यूशन और वीआर सपोर्ट भविष्य की दिशा हैं। भारत में स्मार्ट टीवी की बिक्री 2025 तक दोगुनी होने का अनुमान है। यह पोर्टेबिलिटी बढ़ाता है, क्योंकि कंटेंट मोबाइल पर भी उपलब्ध है।

8. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: टीवी संस्कृति को आकार देता है। ‘बिग बॉस’ जैसे शो वास्तविकता को प्रभावित करते हैं, जबकि समाचार चैनल राजनीतिक ध्रवीकरण बढ़ा सकते हैं। वैश्वीकरण से पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा, लेकिन क्षेत्रीय चैनल प्रतिरोध करते हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि टेलीविजन एक बहुमुखी माध्यम है, जो तकनीक, समाज और अर्थव्यवस्था को जोड़ता है। इसकी विशेषताएं इसे अपरिहार्य बनाती हैं। भविष्य में एआई और 6जी इसे और आधुनिक बनाएंगे।


गुरुवार

भारत में टेलीविजन का विकास (Development of television in India)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अक्टूबर 09, 2025    

प्रारंभिक चरण

भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा वयस्कों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से आकाशवाणी के अधीन दूरदर्शन के नाम से हुई। इसकी स्थापना के लिए यूनेस्को द्वारा 20,000 डॉलर का अनुदान प्रदान किया गया था। दूरदर्शन के पहले निदेशक शैलेंद्र शंकर थे। प्रसारण के लिए आकाशवाणी भवन, नई दिल्ली की पांचवीं मंजिल पर एक छोटे स्टूडियो में 500 वाट का ट्रांसमीटर स्थापित किया गया, जिसके माध्यम से 20 किलोमीटर के दायरे में प्रसारण संभव था।

1960-61 में दिल्ली के स्कूली बच्चों के लिए टेलीविजन पर शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू हुआ। वयस्कों की शिक्षा और स्कूलों के लिए कार्यक्रमों को बढ़ावा देने हेतु सरकार ने सामुदायिक टेलीविजन सेट वितरित किए। इसी वर्ष पहली बार स्वतंत्रता दिवस के ध्वजारोहण का सीधा प्रसारण किया गया। अक्टूबर 1961 में फोर्ड फाउंडेशन और शिक्षा निदेशालय, दिल्ली के सहयोग से एक शिक्षणात्मक योजना शुरू की गई, जिसमें प्रति सप्ताह स्कूली बच्चों के लिए भौतिकी, रसायन विज्ञान, भूगोल, समाजशास्त्र, हिंदी, और अंग्रेजी जैसे विषयों पर 20-20 मिनट के पाठ सुबह-शाम प्रसारित होने लगे। प्रख्यात समाजशास्त्री पाल न्यूरथ ने इस योजना को टेलीविजन को शिक्षा का प्रभावी साधन बनाने वाला कदम बताया।

नियमित प्रसारण और विस्तार

15 अगस्त, 1965 को एक घंटे का नियमित प्रसारण शुरू हुआ, और उसी दिन पहला समाचार बुलेटिन प्रसारित किया गया। इससे पहले टेलीविजन प्रसारण मुख्य रूप से स्कूली शिक्षा और ग्रामीण विकास पर केंद्रित था। 26 जनवरी, 1967 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किसानों को कृषि संबंधी नवीन तकनीकों और संसाधनों की जानकारी देने के लिए कृषि दर्शन कार्यक्रम शुरू किया। शुरुआत में यह कार्यक्रम बुधवार और शुक्रवार को 20-20 मिनट के लिए प्रसारित होता था, जिसे 15 जुलाई, 1970 से बढ़ाकर 30 मिनट कर दिया गया।

2 अक्टूबर, 1972 को बंबई में, 26 जनवरी, 1973 को श्रीनगर, और 29 सितंबर, 1973 को अमृतसर में दूरदर्शन केंद्र स्थापित किए गए। श्रीनगर और अमृतसर केंद्रों की स्थापना सरकार ने मजबूरी में की, क्योंकि इन क्षेत्रों में लाहौर और इस्लामाबाद से प्रसारित भारत विरोधी कार्यक्रमों का प्रभाव बढ़ रहा था। अगस्त 1975 में उपग्रह की मदद से आंध्र प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, और महाराष्ट्र के 2400 गांवों में दूरदर्शन सेवा शुरू की गई।

1975 में नए केंद्रों का विस्तार हुआरू 27 अप्रैल को जालंधर, 9 अगस्त को कोलकाता, 14 अगस्त को मद्रास, और नवंबर में लखनऊ में प्रसारण शुरू हुआ। कोलकाता और लखनऊ के केंद्र अस्थायी थे। जनवरी 1976 में इन सातों केंद्रों से समाचार, खेल, नाटक, फीचर फिल्म, गीत और विज्ञापनों का प्रसारण शुरू हुआ। अप्रैल 1976 में चंद्रा कमेटी की सिफारिश पर दूरदर्शन को आकाशवाणी से अलग कर एक स्वतंत्र इकाई बनाया गया।

रंगीन प्रसारण और तकनीकी प्रगति

15 अगस्त, 1982 को एशियाई खेलों के अवसर पर दूरदर्शन ने रंगीन प्रसारण शुरू किया, जिसने दर्शकों के अनुभव को और समृद्ध किया। 19 नवंबर, 1985 को इनटेक्सट नामक टेलीटेक्स्ट सेवा शुरू की गई, जो समाचार और अन्य जानकारी त्वरित रूप से प्रदान करती थी। 23 फरवरी, 1987 को प्रभातकालीन प्रसारण सेवा शुरू हुई, जिसने सुबह के समय दर्शकों के लिए नए कार्यक्रम उपलब्ध कराए।

1993 में मेट्रो चौनल की शुरुआत हुई, और विदेशी चैनलों का आगमन हुआ। राष्ट्रीय प्रसारण सेवा को डीडी-1, डीडी-2 और डीडी-3 में विभाजित किया गया, जबकि क्षेत्रीय भाषाओं के चैनलों को डीडी-4, डीडी-5 और डीडी-6 नाम दिया गया। 1996 में आय बढ़ाने के लिए विज्ञापन प्रसारण सेवा शुरू की गई, जिसने दूरदर्शन को वाणिज्यिक रूप से और सशक्त बनाया।

समाचार चैनल और आधुनिक युग

3 नवंबर, 2003 को दूरदर्शन ने डीडी न्यूज नामक 24X7 समाचार चैनल शुरू किया, जो समाचार बुलेटिन और समसामयिक मुद्दों पर परिचर्चा प्रसारित करता है। इसके अलावा डीडी नेशनल पर भी नियमित समाचार बुलेटिन प्रसारित होते हैं। आज टेलीविजन पर समाचार चैनलों की होड़ लगी है, जहां ब्रेकिंग न्यूज, लाइव कवरेज, और सबसे तेज जैसे नये चैनलों की लोकप्रियता को बढ़ा रहे हैं।

डिजिटल युग और वर्तमान स्थिति

2000 के दशक के मध्य में डिजिटल टेलीविजन और डायरेक्ट-टू-होम (DTH) सेवाओं ने भारत में टेलीविजन के परिदृश्य को बदल दिया। 2004 में दूरदर्शन ने डीडी डायरेक्ट प्लस (अब डीडी फ्री डिश) लॉन्च किया, जो मुफ्त DTH सेवा प्रदान करता है और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। इसने लाखों घरों तक मुफ्त में टेलीविजन चैनल पहुंचाए।

2010 के दशक में इंटरनेट और ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स के उदय ने टेलीविजन की परंपरागत अवधारणा को चुनौती दी। नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, और हॉटस्टार जैसे प्लेटफॉर्म्स ने दर्शकों को ऑन-डिमांड सामग्री प्रदान की। इसके बावजूद, दूरदर्शन और अन्य पारंपरिक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं और ग्रामीण दर्शकों के लिए प्रासंगिक बने रहे।

2020 तक भारत में 2000 से अधिक टेलीविजन चैनल उपलब्ध थे, जिनमें समाचार, मनोरंजन, खेल और क्षेत्रीय भाषा चैनल शामिल हैं। 2023 में दूरदर्शन ने अपनी डिजिटल उपस्थिति को मजबूत करने के लिए DD India को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और आकर्षक बनाया, जिसका उद्देश्य वैश्विक दर्शकों तक भारतीय संस्कृति और समाचार पहुंचाना है।

भविष्य की संभावनाएं

भारत में टेलीविजन का भविष्य डिजिटल और पारंपरिक प्रसारण के संयोजन में निहित है। 5G तकनीक और स्मार्ट टीवी के बढ़ते उपयोग ने इंटरैक्टिव और हाइब्रिड सामग्री की मांग को बढ़ाया है। दूरदर्शन भी अपनी सामग्री को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध कराने के लिए कदम उठा रहा है, जैसे यूट्यूब और अन्य स्ट्रीमिंग सेवाएं। साथ ही, एआई-आधारित सामग्री अनुशंसा और वर्चुअल रियलिटी (VR) जैसे नवाचार टेलीविजन के अनुभव को और समृद्ध कर रहे हैं।

आज भारत का टेलीविजन उद्योग शिक्षा, मनोरंजन और सूचना के क्षेत्र में एक शक्तिशाली माध्यम बना हुआ है, जो विविधता और नवाचार के साथ निरंतर विकसित हो रहा है।

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भारत में टेलीविजन के विकास पर आधारित अति लघु उत्तरी प्रश्न और उत्तर

  • प्रश्न: भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत कब हुई? उत्तर: 15 सितंबर, 1959 को।
  • प्रश्न: दूरदर्शन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था? उत्तर: वयस्कों को शिक्षा प्रदान करना।
  • प्रश्न: दूरदर्शन के पहले निदेशक कौन थे? उत्तर: शैलेंद्र शंकर।
  • प्रश्न: भारत में टेलीविजन प्रसारण के लिए पहला ट्रांसमीटर कितनी शक्ति का था? उत्तर: 500 वाट।
  • प्रश्न: दिल्ली में स्कूली बच्चों के लिए टेलीविजन कार्यक्रम कब शुरू हुए? उत्तर: 1960-61 में।
  • प्रश्न: स्वतंत्रता दिवस के ध्वजारोहण का पहला सीधा प्रसारण कब हुआ? उत्तर: 1960 में।
  • प्रश्न: फोर्ड फाउंडेशन के सहयोग से शिक्षणात्मक योजना कब शुरू हुई? उत्तर: अक्टूबर 1961 में।
  • प्रश्न: नियमित प्रसारण और समाचार बुलेटिन की शुरुआत कब हुई? उत्तर: 15 अगस्त, 1965 को।
  • प्रश्न: कृषि दर्शन कार्यक्रम की शुरुआत किसने की? उत्तर: इंदिरा गांधी।
  • प्रश्न: बंबई में दूरदर्शन केंद्र कब खोला गया? उत्तर: 2 अक्टूबर, 1972 को।
  • प्रश्न: उपग्रह के माध्यम से दूरदर्शन सेवा कब शुरू हुई? उत्तर: अगस्त 1975 में।
  • प्रश्न: दूरदर्शन को आकाशवाणी से कब अलग किया गया? उत्तर: अप्रैल 1976 में।
  • प्रश्न: रंगीन प्रसारण की शुरुआत कब हुई? उत्तर: 15 अगस्त, 1982 को।
  • प्रश्न: इनटेक्सट सेवा कब शुरू की गई? उत्तर: 19 नवंबर, 1985 को।
  • प्रश्न: डीडी न्यूज चैनल की शुरुआत कब हुई? उत्तर: 3 नवंबर, 2003 को।
  • प्रश्न: डीडी डायरेक्ट प्लस (डीडी फ्री डिश) कब लॉन्च हुआ? उत्तर: 2004 में।
  • प्रश्न: मेट्रो चैनल की शुरुआत कब हुई? उत्तर: 1993 में।
  • प्रश्न: विज्ञापन प्रसारण सेवा कब शुरू की गई? उत्तर: 1996 में।
  • प्रश्न: प्रभातकालीन प्रसारण सेवा कब शुरू हुई? उत्तर: 23 फरवरी, 1987 को।
  • प्रश्न: 2023 में दूरदर्शन ने किस चैनल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आकर्षक बनाया? उत्तर: डीडी इंडिया।

रविवार

इंटरनेट : इतिहास और विकास (INTERNET: History and development)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 10, 2025    

इंटरनेट सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि एक प्लेटफार्म है। इसका पूरा नाम ‘इंटरनेशनल नेटवर्क’ है। इंटरनेट के माध्यम से अलग-अलग स्थानों पर लगे कम्प्यूटरों को आपस में जोडकर सूचना एवं जानकारी सम्प्रेषित करने की विशेष प्रणाली विकसित की गई है। यह नेटवर्को का नेटवर्क है, जिसके माध्यम से समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं व किताबों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर न केवल प्रकाशित किया जा सकता है, बल्कि पढ़ा भी जा सकता है, जो कहीं भुगतान के बदले तो कहीं बिलकुल मुफ्त उपलब्ध हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक ‘ग्लोबल नेटवर्क’ है, जिसमें हजारों छोटे नेटवर्क परस्पर सम्पर्क के लिए प्रोटोकॉल भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रोटोकॉल नियमों का संकलन वह भाषा है, जिसे नेटवर्क में परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट को ‘सूचना राजपथ’ व ‘अंर्तजाल’ कहा जाता हैं। 

इंटरनेट से सूचनाओं का प्रवाह विभिन्न नेटवर्को के जरिए अंतरिक्ष में स्थित एक काल्पनिक पथ से होता है, जिसे ‘साइबर स्पेस’ कहा जाता है। इस आधार पर इंटरनेट के अध्ययन को ‘साइबरनेटिक्स’ विधा के अंतर्गत् रखा गया है। ‘साइबरनेटिक्स’ अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो ग्रीक भाषा के ‘काइबरनैतीज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- कर्णधार। अर्थात् जो नाव का कर्ण नियंत्रित करें, दिशा दें। 


इतिहास और विकास  


द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीतयुद्ध के परिणाम स्वरूप इंटरनेट का आविष्कार हुआ। उस समय अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक एक ऐसे कमाण्ड कंट्रोल की संरचना विकसित करना चाहते थे, जिस पर सोवियत संघ के परमाणु हमले का प्रभाव न पड़ेे। इसके लिए अमेरिकी वैज्ञानिको ने विकेंद्रित सत्ता वाला नेटवर्क बनाया, जिसमें सभी कम्प्यूटरों को बराबर का दर्जा दिया गया। इस नेटवर्क का उद्देश्य परमाणु हमले की स्थिति में अमेरिकी सूचना संसाधनों का संरक्षण करना था।

अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की पहल पर 2 सितंबर, 1969 को ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया’ और ‘लॉस एंजिल्स’ में मौजूद दो कम्प्यूटरों के बीच पहली बार आंकड़ों का आदान-प्रदान किया गया। इसके बाद ‘एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी’ (एआरपीए) ने एक परियोजना शुरू की, जिसमें अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के रिसर्च सेंटरों को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ा गया। इस परियोजना की सफलता के बाद अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालय भी स्वयं को नेटवर्क में शामिल करने की मांग करने लगे। सन् 1970 में एआरपीए ने अपने नेटवर्क को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया। पहला, एमआईएल नेट और दूसरा, एआरपीए नेट। एमआईएल नेट से प्रतिरक्षा विभाग तथा एआरपीए नेट से गैर-प्रतिरक्षा विभाग के संस्थानों को जोड़ा गया। 


रे टॉम लिनसन ने पहली बार सन् 1972 में ई-मेल का प्रयोग किया और यूजर आईडी बनाने के लिए / का प्रयोग किया। सन् 1973 में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल/इंटरनेट प्रोटोकाल (टीसीपी/आईपी) को डिजाइन किया गया। इससे उपभोक्ताओं को फाइल डाउनलोड करने में मदद मिलने लगी। सन् 1983 में इंटरनेट दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का साधन बन गया। तब तक इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 562 हो गयी थी। सन् 1984 में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढकर 1024 हो गयी। इस प्रकार, एआरपीए नेट की सफलता को देखते हुए अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ ने सन् 1986 में एनएसएफ नेट की शुरूआत की, जिसके माध्यम से विज्ञान से संबंधित रिसर्च सेंटरों को आपस में जोड़ा गया। यह नेटवर्क भी सफल रहा और धीरे-धीरे एआरपीए नेट का स्थान लेने में कामयाब रहा।


भारत में इंटरनेट क विकास

भारत में इंटरनेट का आगमन एजूकेशनल एण्ड रिसर्च नेटवर्क के प्रयासों से 1987-88 में हो गया था, लेकिन तब सीमित संख्या में कुछ सभ्रांत लोग ही इसका उपयोग करते थे। 15 अगस्त, 1995 को विदेश संचार निगम लिमिटेड (VNSL) ने गेटवे सर्विस के तहत पहली बार भारतीय कम्प्यूटरों को दुनिया के कम्प्यूटरों से जोड़ा। तब कहीं जाकर इंटरनेट आम लोगों को उपयोग के लिये उपलब्ध हो सका। परिणामतः राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों के 32 हजार इंटरनेट उपभोक्ता हो गये। इसका शीघ्र ही मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलौर, पुणे, कानपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, पटना आदि शहर में विस्तार किया गया। प्रारंभ में सॉफ्टवेयर निर्यातक, सलाहकार, वैज्ञानिक, प्रशिक्षण संस्थान और व्यावसायिक संस्थान इंटरनेट उपभोक्ता थे। नवम्बर 1998 में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी हुआ। 12 नवम्बर, 1998 को ‘सत्यम इनफो’ और ‘सी-डॉट’ के बीच लाइसेंस का समझौता हुआ। ‘सत्यम इनफो’ भारत की दूसरी ( VSNL के बाद) और निजी क्षेत्र की पहली इंटरनेट प्रदाता कम्पनी है, जो ‘सत्यम ऑनलाइन’ के नाम से देश के प्रमुख शहरों में इंटरनेट सुविधा प्रदान करती है। 1998 के अंत तक देश में करीब 7 लाख इंटरनेट उपभोक्ता थे। यह संख्या 31 दिसंबर, 2000 तक बढक़र 18 लाख हो गयी।   

भारत सरकार ने मार्च 2002 में देश के सभी जिला मुख्यालय को इंटरनेट से जोडऩे की योजना शुरू की।  इसके बाद इंटरनेट शहर की सीमा को तोडक़र गांवों में पहुंच गया। मार्च 2009 में टेलीकॉम रेङ्गयूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया कि इंटरनेट के क्षेत्र में देश में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। तब देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या एक करोड़ से अधिक बतायी गयी थी। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मार्च 2009 तक देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 120.85 लाख थी और वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत थी।  एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक देश में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 90 करोड हो जायेगी। 

कन्वर्जेन (Convergence)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 10, 2025    

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कन्वर्जेंस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न प्रकार की तकनीकों, प्रणालियों और सेवाओं का एकीकरण होता है। इसके परिणाम स्वरूप उनके बीच की पारंपरिक सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। यह डिजिटल युग की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जो तकनीकी नवाचारों, नेटवर्किंग और डेटा प्रबंधन की प्रगति के साथ तेजी से विकसित हो रही है। कन्वर्जेंस ने न केवल तकनीकी के क्षेत्र को बल्कि सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित किया है। 

अंग्रेजी भाषा के Convergence का शाब्दिक अर्थ ‘अभिसरण’, ‘मिलन’ या ‘एक साथ आना’ होता है। सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में यह विभिन्न तकनीकों, उपकरणों और सेवाओं के एकीकरण को संदर्भित करता है, जिससे सभी एक सामान्य मंच पर कार्य कर सकें। टेलीफोन, टेलीविजन और कंप्यूटर अलग-अलग उपकरण हैं। सभी अलग-अलग कार्यो के लिए उपयोग किए जाते थे, लेकिन कन्वर्जेंस ने सभी को एक ही डिवाइस या प्लेटफॉर्म पर एकीकृत कर दिया है।

इस प्रकार, कन्वर्जेंस तकनीकी का उपकरण होने के कारण स्मार्टफोन केवल कॉल करने के लिए उपयोग  नहीं किया जाता है, बल्कि इससे इंटरनेट ब्राउजिंग, वीडियो स्ट्रीमिंग, गेमिंग और यहाँ तक कि कार्यालयी कार्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है। कन्वर्जेंस का यह प्रभाव न केवल व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए बल्कि व्यवसायों, उद्योगों और समाज के लिए भी क्रांतिकारी रहा है। यह तकनीकी सीमाओं को तोड़ता है और नवाचार के नए द्वार खोलता है।

कन्वर्जेंस के प्रकार

सूचना प्रौद्योगिकी में कन्वर्जेंस को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी एकीकरण को दर्शाते हैं।

  1.  टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस: टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस तब होता है जब विभिन्न प्रकार के उपकरण और तकनीकें एक ही डिवाइस या प्लेटफॉर्म में एकीकृत हो जाती हैं। उदाहरण- स्मार्टफोन एक ऐसा उपकरण है जो टेलीफोन, कैमरा, म्यूजिक प्लेयर और कंप्यूटर के कार्यों को एक साथ करता है। पहले, ये सभी कार्य अलग-अलग उपकरणों द्वारा किए जाते थे। यह उपयोगकर्ताओं के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि एक ही डिवाइस से कई कार्य किए जा सकते हैं। साथ ही, यह उपकरणों की लागत और जटिलता को कम करता है। टेक्नोलॉजी कन्वर्जेंस को संभव बनाने में हार्डवेयर की प्रगति (जैसे अधिक शक्तिशाली प्रोसेसर) और सॉफ्टवेयर की लचीलापन (जैसे मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  2. नेटवर्क कन्वर्जेंस: नेटवर्क कन्वर्जेंस में विभिन्न प्रकार के नेटवर्क जैसे टेलीफोन नेटवर्क, इंटरनेट और केबल टीवी नेटवर्क, सभी एक ही नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कार्य करते हैं। जैसे- VoIP (Voice over Internet Protocol) तकनीक, जो इंटरनेट के माध्यम से वॉयस कॉल को संभव बनाती है। यह नेटवर्क कनवर्जेंस का प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा IPTV (Internet Protocol Television½ ने पारंपरिक केबल टीवी को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ला दिया है। इस प्रकार, नेटवर्क कन्वर्जेंस ने डेटा, वॉयस और वीडियो को एक ही IP आधारित नेटवर्क पर एकीकृत किया है, जिससे लागत कम हुई है और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। उच्च गति के ब्रॉडबैंड नेटवर्क, जैसे 5G और फाइबर ऑप्टिक्स ने नेटवर्क कन्वर्जेंस को बढ़ावा दिया है।
  3. इंडस्ट्री कन्वर्जेंस: इंडस्ट्री कन्वर्जेंस तब होता है जब IT का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है, जिससे उनके बीच की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं। स्वास्थ्य सेवा में टेलीमेडिसिन का उपयोग, जहाँ मरीज और डॉक्टर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ते हैं। शिक्षा में ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स ने पारंपरिक कक्षा शिक्षण को डिजिटल रूप दिया है। इंडस्ट्री कन्वर्जेंस के कारण उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ता है और नए बिजनेस मॉडल्स का विकास होता है। उदाहरण- मनोरंजन और गेमिंग उद्योग, जो क्लाउड गेमिंग और स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ एकीकृत हो रहे हैं। AI, IoT और बिग डेटा एनालिटिक्स ने इंडस्ट्री कन्वर्जेंस को संभव बनाया है।
  4. डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस: डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस में विभिन्न डेटा स्रोतों और सॉफ्टवेयर एप्लिकेशनों का एकीकरण होता है। क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे । AWS या Google Cloud डेटा स्टोरेज, AI और IoT सेवाओं को एक ही मंच पर प्रदान करते हैं। यह व्यवसायों को तेजी से निर्णय लेने, डेटा प्रबंधन को सरल बनाने और स्केलेबल समाधानों को लागू करने में सक्षम बनाता है। बिग डेटा, मशीन लर्निंग APIs ने डेटा और एप्लिकेशन कन्वर्जेंस को गति दी है।

कन्वर्जेंस के लाभ और चुनौतियां

कन्वर्जेंस ने IT और उससे संबंधित अन्य क्षेत्रों में निम्नलिखित लाभ प्रदान किए हैं।

  1. दक्षता में बढ़ोत्तरी: एकीकृत प्रणालियाँ और उपकरण अपने उपयोगकर्ताओं के समय और संसाधनों की बचत करते हैं। उदाहरण के लिए एक स्मार्टफोन से कई कार्य करने की क्षमता उपयोगकर्ताओं के लिए समय बचाती है और व्यवसायों के लिए परिचालन लागत कम करती है।
  2. नवाचार: कन्वर्जेंस ने नए उत्पादों और सेवाओं के विकास को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए स्मार्ट होम डिवाइसेज (जैसे  Amazon Echo) ने IoT और AI को एकीकृत करके घरेलू स्वचालन को संभव बनाया है।
  3. बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव: कन्वर्जेंस से उपयोगकर्ताओं को एक सहज और एकीकृत अनुभव मिलता है। उदाहरण के लिए एक ही ऐप से वीडियो कॉल, मैसेजिंग और फाइल शेयरिंग करना संभव हो गया है।
  4. लागत में कमी: नेटवर्क और उपकरणों का एकीकरण लागत को कम करता है। उदाहरण के लिए  कॉल्स पारंपरिक टेलीफोन कॉल्स की तुलना में सस्ते होते हैं।
  5. स्केलेबिलिटी: क्लाउड-आधारित समाधान और एकीकृत नेटवर्क व्यवसायों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सेवाओं को स्केल करने की सुविधा प्रदान करते हैं।

उपरोक्त लाभों को प्रदान करने के बावजूद कन्वर्जेंस को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  

  1. सुरक्षा जोखिम: एकीकृत प्रणालियों में साइबर हमलों का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए एक स्मार्ट डिवाइस हैक होने पर उपयोगकर्ता की गोपनीय जानकारी खतरे में पड़ सकती है।
  2. जटिलता: विभिन्न तकनीकों और प्रणालियों का एकीकरण जटिल हो सकता है। उदाहरण के लिए विभिन्न डिवाइसों और सॉफ्टवेयर के बीच अंतर संचालनीयता सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है।
  3. नियामक चुनौतियाँ: कन्वर्जेंस ने डेटा गोपनीयता और नियामक अनुपालन से संबंधित नई चुनौतियाँ पैदा की हैं। उदाहरण के लिए GDPR जैसे नियम डेटा प्रबंधन के लिए सख्त दिशा-निर्देश लागू करते हैं।
  4. तकनीकी निर्भरता: एकीकृत प्रणालियों पर अत्यधिक निर्भरता तकनीकी विफलताओं के जोखिम को बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिए यदि एक क्लाउड सर्वर डाउन हो जाता है, तो कई सेवाएँ प्रभावित हो सकती हैं।

निष्कर्ष

सूचना प्रौद्योगिकी में कन्वर्जेंस ने तकनीकी, व्यावसायिक, और सामाजिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। यह विभिन्न तकनीकों, नेटवर्कों और उद्योगों के बीच की सीमाओं को धुंधला करके अधिक एकीकृत और कुशल समाधान प्रदान करता है। हालांकि, इसके साथ आने वाली चुनौतियाँ, जैसे सुरक्षा और जटिलता, को संबोधित करना भी आवश्यक है। भविष्य में, नई तकनीकों के साथ कन्वर्जेंस और अधिक गति पकड़ेगा, जो नवाचार और उपयोगकर्ता अनुभव को और बेहतर बनाएगा।


सोमवार

रेडियो के मजबूत और कमजोर पक्ष (Strengths and Weaknesses of Radio)

Dr Awadhesh K. Yadav (Assistant Professor)     अगस्त 04, 2025    

रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जो 20वीं सदी की शुरुआत से ही सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत रहा है। इसकी सादगी, व्यापक पहुँच और कम लागत ने इसे विश्व भर में लोकप्रिय बनाया है। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अन्य आधुनिक संचार माध्यमों की पहुँच सीमित है। भारत जैसे देश में जहाँ विविधता भरी आबादी और भौगोलिक चुनौतियाँ हैं, रेडियो ने सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन, डिजिटल युग में इंटरनेट, टीवी, और स्मार्टफोन के बढ़ते प्रभाव के कारण रेडियो को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी, रेडियो के मजबूत एवं कमजोर पक्ष निम्नलिखित हैं:-

  • मजबूत पक्ष  (Strengths)

  1. विस्तृत पहुँच: रेडियो की सबसे बड़ी ताकत इसकी व्यापक पहुँच है। यह उन क्षेत्रों में भी प्रभावी है जहाँ इंटरनेट, टेलीविजन या बिजली की सुविधा सीमित है। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जहाँ स्मार्टफोन या ब्रॉडबैंड कनेक्शन उपलब्ध नहीं हैं, रेडियो... समाचार, मनोरंजन और जानकारी का एकमात्र स्रोत हो सकता है। उदाहरण के लिए भारत में आकाशवाणी और सामुदायिक रेडियो स्टेशन ग्रामीण समुदायों तक स्थानीय भाषाओं में जानकारी पहुँचाते हैं। रेडियो कम लागत वाले उपकरणों (जैसे ट्रांजिस्टर रेडियो) के माध्यम से हर वर्ग, आयु और शिक्षा स्तर के लोगों तक पहुँचता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो पढ़-लिख नहीं सकते, क्योंकि यह केवल श्रवण पर आधारित है। भारत के दूरदराज के गाँवों में, जहाँ साक्षरता दर कम है, वहां रेडियो के माध्यम से स्वास्थ्य, कृषि और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है।
  2. कम लागत और सुलभता: रेडियो प्रसारण और रिसीविंग डिवाइस दोनों ही अन्य संचार माध्यमों की तुलना में बहुत किफायती हैं। एक साधारण रेडियो सेट की कीमत स्मार्टफोन या टीवी की तुलना में बहुत कम होती है, और इसे बैटरी या सौर ऊर्जा से भी चलाया जा सकता है। प्रसारण की लागत भी अपेक्षाकृत कम है, जिसके कारण छोटे समुदाय भी अपने रेडियो स्टेशन शुरू कर सकते हैं। रेडियो सेट्स की कम कीमत और रखरखाव की आसानी इसे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सुलभ बनाती है। साथ ही, रेडियो प्रसारण के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता नहीं होती, जैसा कि इंटरनेट या टीवी के लिए होता है। 
  3. आपातकालीन संचार में विश्वसनीय: आपदा या संकट की स्थिति में जब बिजली, इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क बाधित हो जाते हैं, रेडियो का उपयोग विश्वसनीय संचार साधन के रूप में किया जाता है। यह त्वरित और प्रभावी ढंग से महत्वपूर्ण जानकारी (जैसे- मौसम की चेतावनी, राहत कार्यों की सूचना या सरकारी निर्देश) लोगों तक पहुँचाता है। रेडियो की बैटरी-आधारित प्रकृति और सिग्नल की व्यापक रेंज इसे प्राकृतिक आपदाओं (जैसे- बाढ़ व भूकंप) के दौरान उपयोगी बनाती है। 2004 के हिंद महासागर सुनामी या 2013 के उत्तराखंड बाढ़ के दौरान रेडियो ने लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचने और राहत कार्यों की जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  4. स्थानीय और सांस्कृतिक प्रासंगिकता: रेडियो स्थानीय भाषाओं, संस्कृति, और समुदायों की जरूरतों के अनुरूप सामग्री प्रदान करता है। सामुदायिक रेडियो स्टेशन विशेष रूप से स्थानीय मुद्दों (जैसे- कृषि तकनीक, स्वास्थ्य जागरूकता, और शिक्षा) पर ध्यान केंद्रित होते हैं। यह स्थानीय कलाकारों, संगीत और परंपराओं को बढ़ावा देने में भी मदद करता है। रेडियो स्थानीय समुदायों को उनकी भाषा और सांस्कृतिक संदर्भ में जानकारी और मनोरंजन प्रदान करता है, जिससे यह समावेशी और प्रासंगिक बनता है। हिमाचल प्रदेश में सामुदायिक रेडियो स्टेशन, जैसे ‘रेडियो नग्गर’ स्थानीय समुदायों के लिए उनकी भाषा में कार्यक्रम प्रसारित करता है।
  5. मोबिलिटी और लचीलापन: रेडियो की पोर्टेबल प्रकृति इसे एक अत्यंत लचीला माध्यम बनाती है। इसे घर, खेत, गाड़ी या यात्रा के दौरान कहीं भी सुना जा सकता है। छोटे और हल्के रेडियो सेट्स इसे आसानी से ले जाने योग्य बनाते हैं। रेडियो का उपयोग बिना किसी जटिल सेटअप के किया जा सकता है, और यह उन लोगों के लिए भी सुलभ है जो निरंतर गतिशील रहते हैं, जैसे किसान या मजदूर। ट्रक चालक लंबी यात्राओं के दौरान रेडियो पर समाचार और संगीत सुनते हैं, जो उन्हें सूचित और मनोरंजित रखता है।
  6. मनोरंजन और शिक्षा का स्रोत: रेडियो मनोरंजन (संगीत, नाटक, कहानियाँ) और शिक्षा (स्वास्थ्य जागरूकता, कृषि सलाह, सरकारी योजनाएँ) दोनों प्रदान करता है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी है जहाँ शिक्षा का स्तर कम है। रेडियो के शैक्षिक कार्यक्रम लोगों को नई जानकारी और कौशल सिखाने में मदद करते हैं, जबकि मनोरंजन कार्यक्रम तनाव कम करने और सामाजिक जुड़ाव बढ़ाने में सहायक हैं। आकाशवाणी के ‘कृषि जगत’ जैसे कार्यक्रम किसानों को मौसम, फसल प्रबंधन और नई कृषि तकनीकों की जानकारी देते हैं।
  7. वास्तविक समय की जानकारी: रेडियो तत्काल समाचार, खेल स्कोर, यातायात अपडेट और मौसम की जानकारी प्रदान करने में सक्षम है। यह इसे एक गतिशील और समयबद्ध माध्यम बनाता है। रेडियो की त्वरित प्रसारण क्षमता इसे समाचार और अपडेट के लिए एक विश्वसनीय स्रोत बनाती है। क्रिकेट मैचों के दौरान लाइव कमेंट्री या यातायात की स्थिति पर अपडेट रेडियो के माध्यम से तुरंत उपलब्ध होते हैं।

  • कमजोर पक्ष (Weaknesses)

  1. केवल श्रव्य माध्यम: इसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि रेडियो केवल श्रव्य माध्यम पर है। इसमें दृश्य तत्व (विजुअल्स) की कमी के कारण जटिल जानकारी (जैसे- ग्राफिक्स, चार्ट या वीडियो) को समझाना मुश्किल होता है। दृश्य सामग्री के बिना कुछ विषयों (वैज्ञानिक अवधारणाएँ या जटिल डेटा विश्लेषण) को समझाना कठिन होता है। एक नक्शे या ग्राफ को केवल शब्दों में वर्णन करना टीवी या इंटरनेट की तुलना में कम प्रभावी होता है।
  2. सीमित इंटरैक्टिविटी: रेडियो एकतरफा संचार माध्यम है, जिसमें श्रोताओं की तत्काल प्रतिक्रिया या भागीदारी की गुंजाइश सीमित होती है। हालांकि कुछ रेडियो स्टेशन फोन-इन प्रोग्राम या एसएमएस के माध्यम से इंटरैक्शन की सुविधा देते हैं, जो इंटरनेट या सोशल मीडिया की तुलना में बहुत कम है। श्रोताओं के पास अपनी राय व्यक्त करने या सवाल पूछने का सीमित अवसर होता है।
  3. आधुनिक माध्यमों से प्रतिस्पर्धा: इंटरनेट, टीवी और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग ने रेडियो की लोकप्रियता (खासकर शहरी क्षेत्रों में) को प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी यूट्यूब, पॉडकास्ट और लाइव स्ट्रीमिंग सेवाओं की ओर अधिक आकर्षित हो रही है। हालांकि, पॉडकास्ट की ऑन-डिमांड सेवा रेडियो के निर्धारित समय के प्रसारण से अधिक सुविधाजनक हो सकती है।
  4. सीमित कार्यक्रम प्रसारित: रेडियो पर सीमित कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। कई रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित कार्यक्रमों का दोहराव होता है। एक ही गाने को कई बार बजाया जाता है। सीमित विषयों पर बार-बार चर्चा की जाती है, जो श्रोताओं के मन में ऊबन पैदा करते हैं। प्रसारण सामग्री की कमी या दोहराव के कारण श्रोता अन्य माध्यमों की ओर आकर्षित होते हैं। 
  5. सिग्नल और तकनीकी समस्याएँ: रेडियो सिग्नल की गुणवत्ता... मौसम, भौगोलिक स्थिति या तकनीकी बाधाओं पर निर्भर करती है। पहाड़ी क्षेत्रों, घने जंगलों या दूरदराज के इलाकों में सिग्नल कमजोर हो सकता है। सिग्नल की खराब गुणवत्ता या रेंज की कमी रेडियो की प्रभावशीलता को कम हो जाती है।
  6. विज्ञापन पर निर्भरता: कई वाणिज्यिक रेडियो स्टेशन अपनी आय के लिए विज्ञापनों पर निर्भर होते हैं, जिसके कारण कार्यक्रमों के बीच बार-बार विज्ञापन प्रसारित करते हैं। यह श्रोताओं के लिए कष्टप्रद होता है। अत्यधिक विज्ञापन का प्रसारण रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और श्रोताओं के अनुभव को भी खराब करता है।
  7. पुरानी तकनीक और सीमित नवाचार: डिजिटल युग में रेडियो की पारंपरिक तकनीक (AM/FM) को कुछ हद तक पुराना माना जाने लगा है। हालांकि, डिजिटल रेडियो और इंटरनेट रेडियो ने इस कमी को कुछ हद तक दूर किया है, लेकिन ये सुविधाएँ अभी भी सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं। आधुनिक तकनीकों की तुलना में रेडियो की तकनीकी सीमाएँ इसे कम आकर्षक बनाती हैं।

निष्कर्ष

रेडियो एक सुलभ, किफायती और विश्वसनीय संचार माध्यम है, जो विशेष रूप से ग्रामीण और कम संसाधन वाले क्षेत्रों में प्रभावी है। इसकी व्यापक पहुँच, कम लागत और आपातकालीन संचार में विश्वसनीयता इसे आज भी प्रासंगिक बनाती है। हालांकि, इसकी ऑडियो-आधारित प्रकृति, सीमित इंटरैक्टिविटी और डिजिटल माध्यमों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा इसे कुछ मामलों में कम प्रभावी बनाती है।

आधुनिक युग में रेडियो की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए नवाचार आवश्यक है। डिजिटल रेडियो, इंटरनेट स्ट्रीमिंग और सामुदायिक रेडियो जैसे कदम इस दिशा में सकारात्मक हैं। यदि रेडियो बदलते समय के साथ तालमेल बिठा सके, तो यह भविष्य में भी सूचना और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना रहेगा।


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